गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

रावण के जीवन की वो बातें जो अधिकतर लोग नहीं जानते....

 दशहरा पर्व राम की विजय और रावण की हार का दिन है। दस सिर और नाभि में अमृत कलश होने के बाद भी रावण पराजित हुआ। बुराई का प्रतीक माने जाने वाले रावण में कई बुरी आदतें थी, जो उसके लिए विनाश का कारण बनी। साथ ही कुछ ऐसे गुण भी थे जो उसे महान विद्वान बनाते थे।





रावण जितना दुष्ट था, उसमें उतनी खुबियां भी थीं, शायद इसीलिए कई बुराइयों के बाद भी रावण को महाविद्वान और प्रकांड पंडित माना जाता था। रावण से जुड़ी कई रोचक बातें हैं, जो आम कहानियों में सुनने को नहीं मिलती। विभिन्न ग्रंथों में रावण को लेकर कई बातें लिखी गई हैं। फिर भी रावण से जुड़ी कुछ रोचक बातें हैं, जो कई लोगों को अभी भी नहीं पता है।





आज हम जानते हैं कि किन बुराइयों के कारण रावण का पतन हुआ। किन अच्छाइयों के कारण उसे विद्वान माना जाता है।

महिलाओं के प्रति दुर्भावना - रावण के मन में महिलाओं के प्रति हमेशा दुर्भावना रही। वो उन्हें सिर्फ उपभोग की वस्तु मानता था। जिसके कारण उसे रंभा और सीता सहित कई महिलाओं के शाप भी लगे, जो उसके लिए विनाशकारी बने। भगवान महिलाओं का अपमान करने वालों को कभी माफ नहीं करता क्योंकि दुनिया में जो पहली पांच संतानें पैदा हुई थीं, उनमें से पहली तीन संतानें लड़कियां ही थीं। भगवान ने महिलाओं को पुरुषों से आगे रखा है। रावण अपनी शक्ति के अहंकार में ये बात समझ नहीं पाया।
सिर्फ तारीफ सुनना - रावण की दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि उसे अपनी बुराई पसंद नहीं थीष गलती करने पर भी वह दूसरों के मुंह से अपने लिए सिर्फ तारीफ ही सुनना चाहता था। जिसने भी उसे उसकी गलतियां दिखाईं, उसने उन्हें अपने से दूर कर दिया, जैसे भाई विभीषण, नाना माल्यवंत, मंत्री शुक आदि। वो हमेशा चापलूसों से घिरा रहता था। 
शराब से दुर्गंध मिटाना - रावण शराब से बदबू भी मिटाना चाहता था। ताकि संसार में शराब का सेवन करके लोग अधर्म को बढ़ा सके।
स्वर्ग तक सीढ़ियां बनाना - भगवान की सत्ता को चुनौती देने के लिए रावण स्वर्ग तक सीढ़ियां बनाना चाहता था ताकि जो लोग मोक्ष या स्वर्ग पाने के लिए भगवान को पूजते हैं वे पूजा बंद कर रावण को ही भगवान माने। 
अपने बल पर अति विश्वास - रावण को अपनी शक्ति पर इतना भरोसा था कि वो बिना सोचे-समझे किसी को भी युद्ध के लिए ललकार देता था। जिससे कई बार उसे हार का मुंह देखना पड़ा। रावण युद्ध में भगवान शिव, सहस्त्रबाहु अर्जुन, बालि और राजा बलि से हारा। जिनसे रावण बिना सोचे समझे युद्ध करने पहुंच गया।
रथ में गधे होते थे - वाल्मीकि रामायण के मुताबिक सभी योद्धाओं के रथ में अच्छी नस्ल के घोड़े होते थे लेकिन रावण के रथ में गधे हुआ करते थे। वे बहुत तेजी से चलते थे। 
खून का रंग सफेद हो जाए - रावण चाहता था कि मानव रक्त का रंग लाल से सफेद हो जाए। जब रावण विश्वविजयी यात्रा पर निकला था तो उसने सैकड़ों युद्ध किए। करोड़ों लोगों का खून बहाया। सारी नदियां और सरोवर खून से लाल हो गए थे। प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा था और सारे देवता इसके लिए रावण को दोषी मानते थे। तो उसने विचार किया कि रक्त का रंग लाल से सफेद हो जाए तो किसी को भी पता नहीं चलेगा कि उसने कितना रक्त बहाया है वो पानी में मिलकर पानी जैसा हो जाएगा।
काला रंग गोरा करना - रावण खुद काला था इसलिए वो चाहता था कि मानव प्रजाति में जितने भी लोगों का रंग काला है वे गौरे हो जाएं, जिससे कोई भी महिला उनका अपमान ना कर सके। 
संगीत और विद्वान - रावण संगीत का बहुत बड़ा जानकार था, सरस्वती के हाथ में जो वीणा है उसका अविष्कार भी रावण ने किया था। रावण ज्योतिषी तो था ही तंत्र, मंत्र और आयुर्वेद का भी विशेषज्ञ था।
सोने में सुगंध डालना - रावण चाहता था कि सोने (स्वर्ण) में खुश्बु होनी चाहिए। रावण दुनियाभर के स्वर्ण पर खुद कब्जा जमाना चाहता था। सोना खोजने में कोई परेशानी नहीं हो इसलिए वो उसमें सुगंध डालना चाहता था। 
समुद्र के पानी को मीठा बनाना - रावण सातों समुद्रों के पानी को मीठा बनाना चाहता था।
संसार से हरि पूजा को निर्मूल करना - रावण का इरादा था कि वो संसार से भगवान की पूजा की परंपरा को ही समाप्त कर दे ताकि फिर दुनिया में सिर्फ उसकी ही पूजा हो।
वीर योद्धा भी था रावण - रावण जब भी युद्ध करने निकलता तो खुद बहुत आगे चलता था और बाकी सेना पीछे होती थी। उसने कई युद्ध तो अकेले ही जीते थे। रावण ने यमपुरी जाकर यमराज को भी युद्ध में हरा दिया था और नर्क की सजा भुगत रही जीवात्माओं को मुक्त कराकर अपनी सेना में शामिल किया था। 
ऐसा था रावण का वैभव - रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि रावण के दरबार में सारे देवता और दिग्पाल हाथ जोड़कर खड़े रहते थे। रावण के महल में जो अशोक वाटिका थी उसमें अशोक के एक लाख से ज्यादा वृक्ष थे। इस वाटिका में सिवाय रावण के किसी अन्य पुरुष को जाने की अनुमति नहीं थी।
कैसे-कैसे हारा रावण - बालि ने रावण को अपनी बाजू में दबा कर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी। बालि इतना ताकतवर था कि वो रोज सवेरे चार समुद्रों की परिक्रमा कर सूर्य को अर्घ्य देता था। रावण जब पाताल के राजा बलि से युद्ध करने पहुंचा तो बलि के महल में खेल रहे बच्चों ने ही उसे पकड़कर अस्तबल में घोड़ों के साथ बांध दिया था। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने अपनी हजार हाथों से नर्मदा के बहाव को रोक कर पानी इकट्ठा किया और उस पानी में रावण को सेना सहित बहा दिया। बाद में जब रावण युद्ध करने पहुंचा तो सहस्र्बाहु ने उसे बंदी बनाकर जेल में डाल दिया। रावण ने शिव से युद्ध में हारकर उन्हें अपना गुरु बनाया था। 

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मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012





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हक और हिम्मत की प्रतीक बनी ‘मलाला यूसुफजई’



तालिबान के खिलाफ आवाज उठाकर 14वर्षीय पाकिस्‍तानी बालिका मलाला यूसुफजई आज हक और हिम्मित की मिसाल बन गई है। लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज उठाकर शांति कार्यकर्ता मलाला ने सिर्फ दहशतगर्दों के खिलाफ बड़ी आवाज बनी बल्कि उसके प्रयासों ने अंधियारे के बीच उम्मीद की एक किरण जगा दी है। यही नहीं, उसकी बहादुरी ने पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया को आतंकवाद के खतरे के खिलाफ नए सिरे से एकजुट होने की प्रेरणा दी है।

बीते दिनों तालिबानियों ने मलाला के सिर में गोली मारकर उसकी जान लेने की कोशिश की। उसकी सलामती के लिए दुनिया भर में करोड़ों हाथ दुआ में उठने लगे हैं। इस जघन्य घटना से तालिबानियों की बरबस खींझ का पता चलता है, जो जाहिर तौर पर लड़कियों और महिलाओं में शिक्षा और शांति की अलख नहीं जलने देना चाहते।

तालिबानियों के इस जघन्य कारनामे की घोर निंदा दुनिया भर में हो रही है। दरकार है इससे सबक लेने और इसके खिलाफ उठ खड़े होने की। जिसकी बानगी बीते कुछ दिनों के भीतर पाकिस्तान की सड़कों पर भी दिखी है। महिलाएं, बच्चे, छात्राएं, बुजुर्ग सभी मलाला के समर्थन में उतर गए और तालिबान के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे। यूं कहें कि हमले की इस घटना ने एक ‘क्रांति’ को जन्म दे दिया है, जो आने वाले समय में न सिर्फ पाकिस्तानी समाज बल्कि अन्य मुल्कों में भी एक नजीर बनेगी।

आज पाकिस्तान में स्कूली लड़कियां सड़कों पर उतरकर ‘मैं मलाला हूं’ के नारे लगा रही हैं। वहीं, मुंबई में भी मलाला के समर्थन में छात्राएं सड़क पर उतर गईं। विदेशों में भी मलाला के समर्थन में आवाजें बुलंद होने लगी हैं। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन ने तो दुनिया भर के लोगों से अपील की कि हर किसी को मलाला को अपनी बेटी समझना चाहिए।

मासूम मलाला ने कम उम्र में ही शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि आज हर पाकिस्तानी के दिलों में रच बस गई है। कभी किसी ने कल्‍पना नहीं की होगी कि इतनी कम उम्र में कोई बच्ची शिक्षा के प्रति इतनी संजीदा होगी। छोटे स्तर पर ही सही, पर वह अपने मुहिम में इस कदर जुटी है कि समाज और आसपास की कोई भी लड़की शिक्षा से अछूती न रहे। वह इसमें कामयाब भी हो रही थी, पर दहशतगर्दों को यह बात नागवार गुजरी। पर इसके उलट न सिर्फ पाकिस्तान और इस्ला‍मी समाज बल्कि दुनिया भर के सामने इस मासूल बाला ने एक दुर्लभ उदाहरण पेश किया।

मलाला के समर्थन में सोशल साइटों पर दुनिया भर में लाखों लोग समर्थन में उतर आए हैं। हालांकि पाकिस्तान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो रोज तालिबान और उसके जुल्मों के खिलाफ लड़ रहे हैं। लेकिन मलाला की इस ‘पाक’ मुहिम ने अब दुनिया को तालिबान के खिलाफ लड़ाई छेड़ने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

संभवत: इसी का असर है कि मलाला के साथ तालिबान के हमले में घायल हुई लड़कियां शाजिया और कायनात ने आगे भी पढ़ाई जारी रखने का संकल्प लिया है। इन हमलों से घबराए बिना वह दोनों डाक्ट़र बनने के फैसले पर अडिग है और आगे हर कठिनाइयों के बावजूद शिक्षा जारी रख एक अभूतपूर्व संदेश देने को तैयार है। इन्हीं संकल्पों का असर है कि आज विदेशों से भी उनके लिए मदद की पेशकश होने लगी है। वहीं, घायल लड़कियों की मदद के लिए पाक सरकार का आगे आना एक सकारात्मक कदम है। इससे न सिर्फ जुल्म की शिकार लड़कियां बल्कि अन्य भी अपनी जिंदगी की बेहतरी के लिए कदम उठाने से नहीं हिचकेंगी क्योंकि इन कदमों से उनमें साहस का संचार होगा। पाक के हुक्मरानों का इनके समर्थन में उतरना भी काफी प्रशंसनीय है।

वहीं, तहरीक-ए-तालिबान का यह कहना कि मलाला पर हमला इसलिए किया गया क्योंकि वह ‘पश्चिमी’ विचारों और धर्म निरपेक्ष सरकार का समर्थन कर रही थी। पर इन तालिबानियों को कौन समझाए कि शिक्षा की ज्योति जगाने से पश्चिम के किन्‍हीं विचारों का समर्थन नहीं होता। मौजूदा हालात में यदि मलाला पर फिर हमला करने का दुस्साहस किया जाता है तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे।

दूसरी तरफ, किशोरी मलाला की हत्या के प्रयास को ‘गैर इस्लामी’ करार देना और सुन्नी मौलवियों का फतवा जारी करना यह दर्शाता है कि पाक के समाज में परिवर्तन की बयार बहने लगी है और वे जुल्मों के खिलाफ अब आवाज बुलंद करने लगे हैं। संभवत: यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार है कि धर्म गुरुओं ने किसी बालिका के हक में फतवा जारी कर ‘निन्दा दिवस’ मनाया और मलाला के प्रति एकजुटता दिखाई।

हालांकि मलाला के कई गुनहगार हत्थेा तो चढ़े हैं, लेकिन इन्हें यदि कठोर दंड नहीं दिया गया तो मलाला जैसी और कई मासूमों को भी ये निशाना बनाने से बाज नहीं आएंगे। मलाला पर हमले की घटना ने लोगों को तालिबान के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया है, जोकि एक सकारात्‍मक पहल है। बीते समय में पाकिस्तान में यह देखा गया है कि तालिबान जब भी इस तरह के घृणित अपराधों को अंजाम देता है तो उनके खिलाफ कस्बों तक में भावनाएं भड़कती हैं।

गम और गुस्से के माहौल के बीच इस तरह की क्रूर मानसिकता के समर्थक लोगों के खिलाफ पूर्ण लड़ाई की सख्त जरूरत है। इसे पूरी तरह कुचलना ही एकमात्र निदान है। हम सभी मलाला के अद्वितीय साहस को सलाम करते हैं।

http://zeenews.india.com/hindi/news/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%B2/%E0%A4%B9%E0%A4%95-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE/150426
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रविवार, 19 अगस्त 2012

एक था टाइगर : एक्शन के साथ रोमांचक थ्रिलर


एक था टाइगर : एक्शन के साथ रोमांचक थ्रिलर



 Entertainment ek tha tiger फिल्म समीक्षा
निर्माता : आदित्य चोपडा
निर्देशक : कबीर खान
कलाकार : सलमान खान, कैटरीना कैफ, रणवीर शौरी, गिरीश कर्नाड


अपेक्षाओं से बढकर एक था टाइगर ने ओपनिंग ली है। इस फिल्म के प्रति दर्शकों में किस कदर उत्साह है उसका नजारा सिनेमा घरों पर टूटी भीड को देखकर लगाया जा सकता है। सलमान खान की इस फिल्म ने पहले दिन ऑपनिंग में करीब 30 करोड का व्यवसाय कर एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। इसमें टिकट वृद्धि का भी भारी सहयोग रहेगा। कबीर खान ने जिस अंदाज में सलमान खान की फिल्म में एंट्री करवाई है, वह बेमिसाल है। इस दृश्य को देखते ही इस बात का अहसास हो जाता है कि दर्शकों को जबरदस्त एक्शन थ्रिलर देखने को मिलेगा।
सलमान खान ने फिल्म में रॉ के जासूस "टाइगर" की भूमिका निभाई है, जिसे एक वैज्ञानिक पर नजर रखने के लिए भेजा जाता है। टाइगर अपने मिशन को सफल बनाने के लिए वैज्ञानिक के घर में नौकरानी का काम करने वाली जोया से इश्क-मोहब्बत का नाटक करते-करते सच में चाहने लगता है लेकिन जब उसे उसकी असलियत पता चलती है तो उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है। आदित्य चोपडा के लिए काबुल एक्सप्रेस और न्यूयार्क जैसी बेहतरीन फिल्में बना चुके निर्देशक कबीर खान की यह इस बैनर के लिए तीसरी फिल्म है। सलमान खान ने कबीर खान की फिल्मों के कुछ दृश्य देखने के बाद ही काम करने की हामी भर दी थी।

कबीर खान ने जहां अपने निर्देशन में कसावट रखी है वहीं उन्होंने कथानक में कोई भी पेच ढीला नहीं छोडा, जिसकी वजह से दर्शक एकटक होकर फिल्म को देखता है। उनकी इस सफलता में एक्शन का भारी सहयोग रहा है। हिन्दी फिल्मों में हॉलीवुड स्तर का एक्शन बहुत कम नजर आता है, लेकिन यहाँ कबीर खान ने पूरी तरह से जेम्स बॉण्ड स्टाइल का एक्शन दर्शकों को दिखाया है। क्यूबा और ईराक में फिल्माए गए दृश्यों को देखकर जेम्स बॉण्ड की कई फिल्मों की याद ताजा हो जाती है।

पहली बार सलमान खान अपनी टपोरी और बेदिमागी कॉमेडी से बाहर आए हैं। जैसे ही परदे से एक्शन हटता है सलमान खान और कैटरीना कैफ की साफ-सुथरी हास्य स्थिति परदे पर देखकर दर्शक हंसने लगता है। पांच साल के लम्बे इंतजार के बाद सलमान और कैटरीना की जोडी परदे पर नजर आयी है। इन दोनों की लव स्टोरी और केमिस्ट्री में दम है। जब एक्शन नहीं होता, तो सलमान और कैटरीना अपनी कॉमिक टाइमिंग, रोमांस और इमोशनल सीन्स से दिल बहलाते हैं। टाइगर अपने दोस्त से कहता है कि मेरे इतने नाम हैं कि मां-बाप ने क्या नाम रखा था, वह भी भूल गया। वैसे भी टाइगर तो कुत्तों का नाम होता है।

कबीर खान ने अपने निर्माता की छवि को आकाश से टूटते हुए तारे के दृश्य में दर्शाया है। यशराज की हर फिल्म में नायक-नायिका आकाश से टूटते हुए तारे को देखते हैं और यहां भीर यही दृश्य फिल्माया गया है। इसके साथ ही कबीर खान ने न चाहते हुए दर्शकों की मांग को ध्यान में रखते हुए सलमान खान से शर्ट उतरवाई है, वैसे फिल्म में इस दृश्य को कतई आवश्यकता नहीं थी। निर्देशकों की नजर में यह भ्रम बैठा हुआ है कि जिस फिल्म में सलमान शर्ट उतार देते हैं वह बॉक्स ऑफिस पर हिट हो जाती है। सलमान, कैटरीना और कबीर खान के बाद इस फिल्म का छायांकन, संगीत (विशेष रूप से पाश्र्व संगीत), विदेशी लोकेशन्स और बेहतरीन और ताजा डांस स्टेप्स फिल्म को दर्शनीय बनाते हैं। एक्शन दृश्यों में गूंजता पाश्र्व संगीत दृश्यों के प्रभावीकरण में सहायक है।

गिरीश कनार्ड और रणवीर शौरी ने अपने अभिनय की गहरी छाप छोडी है। सब कुछ होते हुए भी कबीर खान मध्यान्तर के बाद कहानी पर कम और एक्शन पर ज्यादा निर्भर रहे हैं। ऎसा नहीं कि कथानक कमजोर पड जाता है या उसकी आवश्यकता नहीं रहती है लेकिन इस हिस्से में उन्होंने सलमान के एक्शन पर ज्यादा निर्भरता जताई है। सलमान ने उन्हें कहीं निराश नहीं किया है। हॉलीवुड स्टाइल में फिल्माया गया यह देसी बांड दर्शकों को रोमांचित करने के साथ-साथ हैरान भी करता है। इस फिल्म को देखने के बाद एक बात हम जरूर कहना चाहेंगे कि एक था टाइगर सलमान खान की लोकप्रियता का शिखर बिन्दु है। इस देखने के बाद दिमाग में एक प्रश्न कौंधता है कि अब सलमान खान अपने दर्शकों के लिए नया क्या लेकर आएंगे, क्योंकि पिछले पांच वर्ष में उन्होंने अपनी पांच फिल्मों के जरिए अभिनय की हर विद्या को दर्शा दिया है। इस फिल्म की सफलता के बाद निश्चित तौर पर दिसम्बर पर प्रदर्शित होने वाली दबंग की सफलता पर प्रश्न चिह्न खडा होता है। अगर अरबाज कुछ नया नहीं दे पाए तो निश्चित रूप से उन्हें झटका लगेगा।

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सोमवार, 23 जुलाई 2012

BBC says about Taj Mahal—Hidden Truth – Never say it is a Tomb



Aerial view of the Taj Mahal.
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The interior water well
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Frontal view of the Taj Mahal and dome
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Close up of the dome with pinnacle
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Close up of the pinnacle
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Inlaid pinnacle pattern in courtyard
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Red lotus at apex of the entrance
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Rear view of the Taj & 22 apartments
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View of sealed doors & windows in back
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Typical Vedic style corridors
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The Music House–a contradiction
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A locked room on upper floor
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A marble apartment on ground floor
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The OM in the flowers on the walls
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Staircase that leads to the lower levels
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300 foot long corridor inside apartments
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One of the 22 rooms in the secret lower level
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Interior of one of the 22 secret rooms
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Interior of another of the locked rooms
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Vedic design on ceiling of a locked room
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Huge ventilator sealed shut with bricks
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Secret walled door that leads to other rooms
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Secret bricked door that hides more evidence
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Palace in Barhanpur where Mumtaz died
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Pavilion where Mumtaz is said to be buried
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NOW READ THIS…….
No one has ever challenged it except Prof. P. N. Oak, who believes the whole world has been duped. In his book Taj Mahal: The True Story, Oak says the Taj Mahal is not Queen Mumtaz’s tomb but an ancient Hindu temple palace of Lord Shiva (then known as Tejo Mahalaya ) . In the course of his research Oak discovered that the Shiva temple palace was usurped by Shah Jahan from then Maharaja of Jaipur, Jai Singh. In his own court ch ronicle, Badshahnama,Shah Jahan admits that an exceptionally beautiful grand mansion in Agra was taken from Jai SIngh for Mumtaz’s burial . The ex-Maharaja of Jaipur still retains in his secret collection two orders from Shah Jahan for surrendering the Taj building. Using captured temples and mansions, as a burial place for dead courtiers and royalty was a common practice among Muslim rulers.
For example, Humayun,Akbar, Etmud-ud-Daula and Safdarjung are all buried in such mansions. Oak’s inquiries began with the name of Taj Mahal. He says the term ” Mahal ” has never been used for a building in any Muslim countries from Afghanisthan to Algeria .. “The unusual explanation that the term TajMahal derives from Mumtaz Mahal was illogical in atleast two respects.
Firstly, her name was never Mumtaz Mahal but Mumtaz-ul-Zamani,” he writes. Secondly, one cannot omit the first three letters ‘Mum’ from a woman’s name to derive the remainder as the name for the building.”Taj Mahal, he claims, is a corrupt version of Tejo Mahalaya, or Lord Shiva’s Palace . Oak also says the love story of Mumtaz and Shah Jahan is a fairy tale created by court sycophants, blundering historians and sloppy archaeologists Not a single royal chronicle of Shah Jahan’s time corroborates the love story.
Furthermore, Oak cites several documents suggesting the Taj Mahal predates Shah Jahan’s era, and was a temple dedicated to Shiva, worshipped by Rajputs of Agra city. For example, Prof. Marvin Miller of New York took a few samples from the riverside doorway of the Taj. Carbon dating tests revealed that the door was 300 years older than Shah Jahan. European traveler Johan Albert Mandelslo,who visited Agra in 1638 (only seven years after Mumtaz’s death), describes the life of the cit y in his memoirs. But he makes no reference to the Taj Mahal being built. The writings of Peter Mundy, an
English visitor to Agra within a year of Mumtaz’s death, also suggest the Taj was a noteworthy building well before Shah Jahan’s time.
Prof. Oak points out a number of design and architectural inconsistencies that support the belief of the Taj Mahal being a typical Hindu temple rather than a mausoleum. Many rooms in the Taj ! Mahal have remained sealed
since Shah Jahan’s time and are still inaccessible to the public . Oak asserts they contain a headless statue of Lord Shiva and other objects commonly used for worship rituals in Hindu temples Fearing political backlash, Indira Gandhi’s government t ried to have Prof. Oak’s book withdrawn from the bookstores, and threatened the Indian publisher of the
first edition dire consequences . There is only one way to discredit or validate Oak’s research.
Open all sealed rooms in front of media. Let experts investigate.
Source :: One forwarded email.
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शुक्रवार, 20 जुलाई 2012