भारत
के वनांचलों, खेत खलिहानों, आँगन के बाडों आदि में इसे प्रचुरता से उगता
हुआ देखा जा सकता है। इसके बीजों को देखने से स्पष्ठरूप से शिवलिंग की रचना
दिखाई देती है और इसी वजह से इसे शिवलिंगी कहते हैं। बाजार में अक्सर इसके
बीजों को चमत्कारिक गुणों वाला बीज बोलकर बेचा जाता है। वैसे अनेक रोगों
के निवारण के लिए महत्वपूर्ण मानी जाने वाली इस बूटी को आदिवासी मुख्यत:
संतान प्राप्ति के लिए उपयोग में लाते हैं। शिवलिंगी का वानस्पतिक नाम
ब्रयोनोप्सिस लेसिनियोसा होता है।
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चलिए जानते हैं आदिवासी किस तरह से शिवलिंगी को
हर्बल चिकित्सा के रूप में अपनाते हैं।पातालकोट के गोंड और भारिया जनजाति
के लोग इस पौधे को पूजते है, इन आदिवासियों का मानना है कि संतानविहीन
दंपत्ती के लिये ये पौधा एक वरदान है। पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकारों
के अनुसार महिला को मासिक धर्म समाप्त होने के 4 दिन बाद प्रतिदिन सात
दिनों तक संजीवनी के 5 बीज खिलाए जाए तो महिला के गर्भधारण की संभावनांए बढ
जाती है।इन आदिवासीयों द्वारा शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड के साथ
पीसकर संतानविहीन महिला को खिलाया जाता है, महिला को जल्द ही संतान सुख की
प्राप्ति होती है।आदिवासी महिलाएं इसकी पत्तियों की चटनी बनाती है, इनके
अनुसारे ये टॉनिक की तरह काम करती है। जिन महिलाओं को संतानोत्पत्ति के लिए
इसके बीजों का सेवन कराया जाता है उन्हें विशेषरूप से इस चटनी का सेवन
कराया जाता हैपत्तियों को बेसन के साथ मिलाकर सब्जी के रूप में भी खाया
जाता है, आदिवासी भुमकाओं (हर्बल जानकार) के अनुसार इस सब्जी का सेवन
गर्भवती महिलाओं को करना चाहिए जिससे होने वाली संतान तंदुरुस्त पैदा होती
है।
इन आदिवासियों का भी मानना है कि शिवलिंगी न
सिर्फ साधारण रोगों में उपयोग में लायी जाती है अपितु ये नर संतान प्राप्ति
के लिये भी कारगर है, हलाँकि इस तरह के दावों को आधुनिक विज्ञान नकार सकता
है लेकिन इन आदिवासी हर्बल जानकारों के दावों को एकदम नकारना ठीक नही।इन
आदिवासियों का भी मानना है कि शिवलिंगी न सिर्फ साधारण रोगों में उपयोग में
लायी जाती है अपितु ये नर संतान प्राप्ति के लिये भी कारगर है, हलाँकि इस
तरह के दावों को आधुनिक विज्ञान नकार सकता है लेकिन इन आदिवासी हर्बल
जानकारों के दावों को एकदम नकारना ठीक नही।
डाँग- गुजरात के आदिवासी शिवलिंगी के बीजों का
उपयोग कर एक विशेष फार्मुला तैयार करते हैं ताकि जन्म लेने वाला बच्चा
चुस्त, दुरुस्त और तेजवान हो। शिवलिंगी, पुत्रंजीवा, नागकेशर और पारस पीपल
के बीजों की समान मात्रा लेकर चूर्ण बना लिया जाता है और इस चूर्ण का आधा
चम्मच गाय के दूध में मिलाकर सात दिनों तक उस महिला को दिया जाता है जिसने
गर्भधारण किया होता है।डाँगी आदिवासी इसके बीजों के चूर्ण को बुखार
नियंत्रण और बेहतर सेहत के लिए उपयोग में लाते हैं। अनेक हिस्सों में इसके
बीजों के चूर्ण को त्वचा रोगों को ठीक करने के लिए भी इस्तमाल किया जाता
है।