फिल्म समीक्षा
बैनर : बीजीवी फिल्म्स
निर्माता : विक्रम भट्ट
निर्देशक : विवेक अगि्नहोत्री
संगीत : हर्षित सक्सेना
कलाकार : पाउली दाम, निखिल द्विवेदी, गुलशन देवैया, मोहन कपूर
-राजेश कुमार भगताणी
कभी "सैक्स" शब्द पर आपत्ति उठाने वाले भारतीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने क्योंकर विक्रम भट्ट की फिल्म को "ए" सर्टिफिकेट के साथ प्रदर्शित करने की इजाजत दी है, यह एक गम्भीर और विचारणीय प्रश्न है। पूरी फिल्म अश्लीलता की उस पराकाष्ठा को दर्शाती है जिसे पोर्न सिनेमा कहा जाता है। फिल्म का अस्सी प्रतिशत हिस्सा ऎसा है जहां सिर्फ और सिर्फ सैक्स है, इसके सिवा और कुछ नहीं। बॉलीवुड की फिल्मों में अपने आप को सैक्सी और हॉट कहलाने वाली अभिनेत्रियां इस फिल्म को देखने के बाद अपने आप में शर्मिन्दगी महसूस करेंगी इसलिए नहीं कि वो अपने आप में सैक्सी बनती है बल्कि इसलिए कि जिस अंदाज और तरीके से बंगाली फिल्मों की नायिका पाउली दाम ने स्वयं को पेश किया है उसे देखकर।
हमारी नजरों में शायद ही बॉलीवुड में ऎसी कोई अभिनेत्री आई होगी जिसने इस तरह से खुलकर परदे पर अंग प्रदर्शन किया होगा या जिसने अपनी भाव भंगिमाओं से प्रणय के दृश्यों को इतनी जीवंतता के साथ परदे पर उतारा होगा। हालांकि फिल्म को देखते वक्त निर्माता, निर्देशक और अदाकारा के प्रति घृणा का सैलाब पैदा होता है लेकिन फिर भी दर्शक का मस्तिष्क इस फिल्म को फिर से देखने के लिए प्रेरित होता है। यदि दर्शक की यह इच्छा ज्यादा जोर मारने में सफल हो जाती है तो निश्चित रूप से विक्रम भट्ट की "हेट स्टोरी" बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी का नया इतिहास रचेगी।
विक्रम भट्ट अब तक हॉरर बेचते थे, अब उन्होंने सेक्स का सहारा लिया है। हेट स्टोरी की कहानी यही सोच कर लिखी गई है कि इसमें ज्यादा से ज्यादा सेक्स सीन हो। सेंसर बोर्ड ने कुछ काट दिए और कुछ दृश्यों को कम कर दिया। हेट स्टोरी एक रिवेंज ड्रामा है, जिसमें फिल्म की हीरोइन अपना बदला लेने के लिए अपने जिस्म का इस्तेमाल करती है।
काव्या (पाउली दाम) एक पत्रकार है जो एक सीमेंट कंपनी के खिलाफ लेख लिखती है, जिससे उस कंपनी की प्रतिष्ठा को काफी नुकसान पहुंचता है। उस कंपनी के मालिक का बेटा सिद्धार्थ (गुलशन देवैया) इसका बदला लेने के लिए काव्या को अपने प्रेम जाल में फंसाता है। दोनों सारी हदें पार कर जाते हैं। इसके बाद सिद्धार्थ उसे छोड देता है क्योंकि उसने अपना बदला ले लिया है। काव्या प्रेग्नेंट हो जाती है और यह बात सिद्धार्थ को बताती है ताकि उसकी आधी जायदाद पाकर वह बदला ले सके। सिद्धार्थ न केवल उसका बच्चा कोख में ही मार देता है बल्कि काव्या की ऎसी हालत कर देता है कि वह कभी मां नहीं बन पाए।
इसके बाद काव्या अपने जिस्म का इस्तेमाल करती है। सिद्धार्थ की कंपनी के ऊंचे अफसरों के साथ सोती है ताकि उनसे कंपनी के राज मालूम कर सकें। नेताओं के साथ बिस्तर शेयर कर ऊंचा पद हासिल करती है और अंत में सिद्धार्थ की कंपनी को खत्म कर देती है। इस फिल्म के निर्देशक विवेक अगि्नहोत्री ने फिल्म को इरोटिक थ्रिलर कहा था, लेकिन फिल्म में कहीं भी थ्रिल नजर नहीं आता है। फिल्म की पटकथा में इतनी खामियां हैं कि दर्शक इसे देखते हुए स्वयं को ग्लानि में डूबा पाता है कि क्योंकर वह यह फिल्म देखने आया। क्या सिर्फ इसलिए कि इसमें इतने अश्लील दृश्य हैं या यूं कहें कि यह सेमी पोर्न फिल्म है। सारे किरदार आला दर्जे के बेवकूफ हैं।
काव्या ने जिस कंपनी के खिलाफ लेख लिखा है उसी कंपनी के भ्रष्ट मालिक सिद्धार्थ को वह एक ही मुलाकात के बाद अपना दिल कैसे दे देती है। सबसे बडी बात वह पत्रकारिता छोडकर उसकी कंपनी में नौकरी करने लगती है। जिस तरह निर्देशक ने काव्या के सेक्स जाल में नेता और अफसरों को फंसते हुए और राज उगलते हुए बताया है उसे देखकर निर्देशकीय सोच पर अफसोस होता है कि करोडों का कारोबार करने वाले यह व्यापारी क्या इतने अंधे और मूर्ख हैं जो एक लडकी के बहकावे में आकर अपनी कम्पनी की गुप्त बातों को उजागर करने लग जाते हैं।
लेखक ने जो रिवेंज ड्रामा लिखा है वो थर्ड क्लास है। ऎसे ड्रामे तो दक्षिण की उन सी ग्रेड फिल्मों में दिखाये जाते थे जिन्हें हिन्दी में डब करके प्रदर्शित किया जाता था। कथा-पटकथा के साथ-साथ निर्देशन भी जबरदस्त ढीला है। विवेक अगि्नहोत्री ने जिस अंदाज में नायिका को बदले लेते हुए दिखाया है वह दर्शक को हजम नहीं होता है। हां फिल्म की गति अविश्वसनीय रूप से बेहद तेज है। मुख्य किरदार के रूप में पाउली दाम अभिनय के नाम पर अप्रभावी हैं किन्तु उन्होंने जिस अंदाज में गरम दृश्यों को परदे पर उतारा है उसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है। उन्होंने सिर्फ कपडों को ही नहीं उतारा है, बल्कि अपने बदन को जिस अंदाज में कैमरे के सामने पेश किया है वह लाजवाब है। जिस तरह से उन्होंने कामुक अंदाज में अपने शारीरिक भाव दर्शाये हैं उतने ही वे अगर अभिनय में भी दर्शाती तो बात ही कुछ और होती।
गुलशन देवैया का अभिनय औसत दर्जे का है। जिस अंदाज में उन्होंने स्वयं को हकला पेश किया है वह ओवर एक्ट है। हालांकि उन्हें इस भूमिका में देखकर शाहरूख की फिल्म "डर" में निभाई गई भूमिका याद आती है। निखिल द्विवेदी न होते तो भी चलता। कुछ दृश्यों में नजर आए निखिल ने जरूर प्रभावित किया है। फिल्म का गीत संगीत भी कथा पटकथा, निर्देशन और संवादों की तरह बेजान है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जिस तरह से आजकल सैक्स बेचा और देखा जा रहा है उसे देखते हुए माउथ पब्लिसिटी के जरिए यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अपनी लागत के साथ-साथ मुनाफा कमाने में कामयाब हो सकती है। हालांकि इसकी शुरूआत बेहद धीमी रही है। फिल्म देख चुके दर्शक इसके सैक्सी दृश्यों की तारीफ जरूर करेंगे इसमें कोई शक नहीं है। यही तारीफ बॉक्स ऑफिस पर भीड जुटाने में कामयाब होगी।
utkarsh-shukla.blogspot.com
बहुत बढ़िया समीक्षा उत्कर्ष भाई !
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