कभी किसी जमाने में शोकेन नामक एक योद्धा रहता था. उसके घर में एक बहुत बड़ा और विशाल शैतान चूहा था. यह चूहा बड़ा ही ढीठ और उत्पाती था. शोकेन ने उसे मारने के बहुत प्रयत्न किये पर सफल नहीं हुआ. तंग आकर शोकेन एक व्यक्ति के पास गया जो चूहों को मारने के लिए बिल्लियों को प्रशिक्षण देता था. शोकेन ने उससे चूहे को मारने के लिए एक बिल्ली माँगी.
बिल्लीवाले ने शोकेन को अदरक जैसे रंगवाली बड़ी चपल बिल्ली दी जिसके दांत और नाखून बेहद नुकीले थे. उस बिल्ली ने जब चूहे का सामना किया तो चूहा उसे देखकर निर्भय खड़ा रहा और उल्टे बिल्ली भयभीत हो गयी. शोकेन बिल्ली को वापस बिल्लीवाले के पास ले गया.
"चूहा वाकई बड़ा बदमाश है", बिल्लीवाले ने कहा और शोकेन को एक दुबली चितकबरी बिल्ली दी. "इस बिल्ली को मैंने कई वर्ष सिखाया है और यह बहुत कुशल है".
दूसरी बिल्ली ने चूहे का डटकर सामना किया पर चूहे ने उसे भी आसानी से हरा दिया.
शोकेन वापस बिल्लीवाले के पास गया और इसबार एक खूंखार काली बिल्ली लेकर आया. यह बिल्ली दिखने में आत्मविश्वास से परिपूर्ण लगती थी. बिल्लीवाले ने कहा, "इस बिल्ली ने ध्यान के द्वारा अपने मन को एकाग्र करना सीखा है. इसकी तकनीक अचूक है. यह उस चूहे को ज़रूर मार भगायेगी." लेकिन वह बिल्ली भी चूहे से हार बैठी.
अबकी बार जब शोकेन बिल्लीवाले के पास गया तो बिल्लीवाले ने कहा, "कोई बात नहीं, इस बार मैं तुम्हें अपनी सभी बिल्लियों की बूढ़ी गुरु बिल्ली देता हूँ." यह बिल्ली बूढ़ी और बेढब थी. उसमें ज़रा भी आकर्षण नहीं था. शोकेन उस बिल्ली को चूहे के पास ले गया. चूहा बिल्ली के पास आया पर बिल्ली ने उसकी ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया. अचानक ही चूहा उसे देखकर भय से जड़वत हो गया. बूढ़ी बिल्ली ने इत्मीनान से अपना पंजा उठाया और एक वार में ही चूहे को ढ़ेर कर दिया.
शोकेन बिल्ली को बिल्लीवाले के पास लेकर गया और उससे पूछा, "इस बिल्ली ने चूहे को इतनी आसानी से कैसे मार दिया जबकि अन्य बिल्लियाँ युवा और मजबूत होते हुए भी हार गयीं?"
बिल्लीवाले ने कहा, "आप मेरे साथ आइये, मुझे यकीन है कि बिल्लियाँ इस बारे में बात ज़रूर करेंगी, और चूंकि वे मार्शल आर्ट के बारे में गहराई से जानती हैं इसलिए यह बात उनसे सुनना बहुत रोचक होगा". वे छुपकर बिल्लियों की बातचीत सुनने लगे.
पहली बिल्ली ने कहा, "मैं बहुत कठोर हूँ".
"तो फिर तुम चूहे को क्यों नहीं हरा पाईं?", बूढ़ी बिल्ली ने कहा, "क्योंकि कठोर होना ही पर्याप्त नहीं है. किसी कठोर बिल्ली को उससे कठोर चूहा कभी भी मिल सकता है."
चितकबरी बिल्ली ने कहा, "मैंने कई साल चूहे मारने के अचूक तरीके सीखे, फिर भी मैं उस चूहे से क्यों हार गयी?". बूढ़ी बिल्ली ने जवाब दिया, "ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तुम सालों तक कुछ-एक ही दांव आजमाती रहीं और उस मुकाबले में वे दांव काम नहीं आये".
"लेकिन मैंने तो ध्यान साधना के द्वारा अपने मन और शरीर को परिपूर्ण कर लिया था", काली बिल्ली ने कहा, "मेरा कौशल अपरिमित होने और मुझे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो जाने के बाद भी मैं उस चूहे से कैसे हार गयी?"
"तुम्हारा कौशल निस्संदेह परिपूर्ण है और तुमने शारीरिक और आध्यात्मिक शक्तियां अर्जित कर ली हैं तिसपर भी तुम विषयों एवं कामनाओं से रिक्त नहीं हो. जब तुमने उस चूहे का सामना किया तब तुम्हारे मन में उसका वध करने की इच्छा प्रबल हो उठी. तुम अपनी इच्छा का अधिक्रमण नहीं कर सकीं और चूहे ने इसे भांप लिया. इस बात में वह तुमसे अधिक परिपक्व था. चूंकि तुम अपने मन को निर्विकार नहीं कर सकीं इसलिए तुम्हारी शक्तियों, तकनीकों, और चेतना का एकीकरण नहीं हुआ. चूहे को मारते समय मैंने इन तीनों तत्वों को साध लिया इसलिए मैं उसे निष्प्रयास ही मार सकी. यही मेरी सफलता का कारण है."
"लेकिन मैं एक और बिल्ली को जानती हूँ जो यहाँ से कुछ दूर एक गाँव में रहती है. पकी उम्र की होने के कारण उसके बाल सन जैसे सफ़ेद हो गए हैं. वह देखने में बिलकुल कठोर नहीं लगती. वह मांस नहीं खाती बल्कि चावल सब्जी से अपना पेट भरती है. उसने कई सालों से एक भी चूहा नहीं मारा है क्योंकि चूहे उससे अत्यंत भयभीत रहते हैं और जैसे ही वह किसी घर में दाखिल होती है तो वहां के सारे चूहे फ़ौरन घर छोड़ देते हैं. वह बिल्ली अपनी नींद में भी चूहों को अचेत कर देती है. हम सभी को उस बिल्ली जैसा ही होना चाहिए - वह हिंसा व अहिंसा के परे है. उसकी कोई तकनीक नहीं है, उसके मन में चूहों को मारने की इच्छा तक नहीं है."
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