बुधवार, 21 मार्च 2012

बुरे दिन हैं! ये टोटके आजमाएं...

जब दिन-रात मेहनत करने पर भी रूखी-सूखी मिले। चलते उद्योग-व्यापार में अथवा कारोबार में तरक्की की बजाय अवनति होने लगे तब समझ लें कि दुर्भाग्य ने हमारा दामन थाम लिया है। जो भाग्य में लिखा है, वह भोगना ही पडता है, परंतु फिर भी इस प्रभाव को कम तो किया ही जा सकता है। पूजा-पाठ और ईश्वर को याद करने के अलावा भी हिन्दू तन्त्र-शास्त्र और मुस्लिम टोने-टोटकों में अनेक ऎसे उपाय हैं जिनका प्रयोग करके भाग्य के आगे पडे पर्दे को न केवल हटाया जा सकता है बल्कि सौभाग्य को बढाया भी जा सकता है। जब बुरे दिन चल रहे हों तब इस अध्याय में वर्णित टोने-टोटकों, गंडे-तावीजों और यन्त्र-मन्त्रों का प्रयोग अवश्य कीजिए,भगवान की कृपा से आपके बुरे दिन भी अच्छे दिनों में बदल जाएंगे।
ये करें...,दुर्भाग्य टालें

  • कागजों पर छोटे अक्षरों में राम-राम लिखें। अधिक से अधिक संख्या में ये नाम लिखकर सबको अलग-अलग काट लें। अब आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर एक-एक कागज उनमें लपेट लें और नदी या तालाब पर जाकर मछलियों और कछुओं को ये गोलियां खिलाएं। पूर्णमासी से पूर्णमासी तक अथवा कम से कम एक मास तक ऎसा करें।
  • कछुओं और मछलियों को नित्य आटे की गोलियां खिलाएं।
  • चीटियों को भुने हुए आटे में बूरा मिलाकर बनाई पंजीरी खिलाएं।
  • शनिवार को एक कटोरी में सरसों का तेल और सिक्का (रूपया-पैसा) डालकर उसमें अपनी परछाई देखें और तेल मांगने वाले को दे दें।
  • यथाशक्ति पूजा-आराधना और दान प्रतिदिन नियमित रूप से करें।
  • बुरे वक्त को शान्ति से काटें। उत्तेजना से बचें और शान्त बने रहने का प्रयास करें।
  • उदास होकर बैठ जाना किसी समस्या का हल नहीं। अपने सभी कार्य नियमित रूप से करें।
आजमाएं ये तांत्रिक टोटका
यह एक बहुत ही शक्तिशाली टोटका है। नीचे चित्र में प्रदर्शित यन्त्र को पर्याप्त बडे ग्यारह सफेद कागजों पर अनार की कलम से केसर और कस्तूरी मिश्रित स्याही से लिखें। धूप-दीप जलाकर अपने उपास्य देव को याद करें और उनसे दुर्भाग्य हटाकर अच्छे दिन देने की प्रार्थना करें। सच्चे दिल से भगवान से प्रार्थना करने के बाद पर्याप्त मात्रा में आटा लेकर गूंध लें। उस आटे की ग्यारह लोइयां बनाकर प्रत्येक में तह करके एक-एक यन्त्र रखें और इस प्रकार गोले बनाएं कि कागज पूरी तरह आटे में छिप जाए। आटे के इन गोलों को किसी नदी में डाल दें। यह कार्य लगातार ग्यारह दिन किया जाता है और वह भी सूर्य छिपने से पहले। शाम को प्रतिदिन एक निश्चित समय पर और सभी से छिपाकर इस टोटके को करने पर इसका प्रभाव और भी बढ जाता है।


सफलता के लिए साधना

यह यन्त्र कृष्णपक्ष की अष्टमी रविवार या चतुर्दशी रविवार को पूर्व दिशा की ओर मुंह कर अनार की कलम और अष्टगंध स्याही से भोजपत्र पर लिखें। फिर यन्त्र को पूजा-स्थल पर स्थापित करके एक हजार की संख्या में प्रतिदिन मन्त्र का जप करें। मन्त्र-जप पूरे 45 दिन तक किया जाता है। मन्त्र का जप करते समय दृष्टि यन्त्र पर ही टिकी रहनी चाहिए। तत्पश्चात् यन्त्र को चांदी या तांबे के तावीज में भरकर, काले धागे की सहायता से भुजा या गले में धारण करें। इस तावीज के प्रभाव से व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलताएं प्राप्त करता चला जाता है, असफलता उससे कोसों दूर रहती है।
मंत्र :- विपंच्या गायन्ती विविधमपदानं पुर रिपो
स्त्वयारब्धे वक्तु चलितशिरसा साधुवचने
तदीयैर्मा धुर्यैपल पितन्त्री कलरवां
निजां वीणां वाणी निचुलयति चोलेन निभृतम् ।


विघ्न
हटाने का तावीज
इस यन्त्र को सिद्धयोग, दीपावली या होली के दिन अनार की कलम से, अष्टगंध स्याही से भोजपत्र पर लिखकर धूप-दीप, नैवेद्य से पूजन करें। फिर स्वर्ण के तावीज में डालकर, दाहिनी भुजा में काले धागे से बांध लें। यह सर्व प्रकार की विघ्न-बाधाओं को हटा अत्यंत शुभ देने वाला है।


परेशानियां घटाने का तावीज

अगर कोई रोग या शोक हो, यात्रा-व्यापार में व्यवधान आया हो अथवा किसी भी तरह की कोई परेशानी हो, तो उपरोक्त यन्त्र लिखकर बनाया तावीज सभी परेशानियों को हटाने का काम करेगा। चमेली की कलम द्वारा मुश्क, गुलाब और जाफरान से लिखकर इस नक्श को अपने बाजू पर बांध लें। कामयाबी जरूर मिलेगी।


हर कष्ट मिटाए सुलेमानी तावीज


यह एक अत्यंत शक्तिशाली तावीज है, जिसे सुलेमानी तावीज भी कहा जाता है शुद्ध केसर में कस्तूरी घोलकर अनार की कलम से सफेद कागज पर इसे लिखा जाता है। इस प्रकार के दो यन्त्र तैयार करें। लोबान की धूनी देकर एक को धोकर पी लें और दूसरे को कपडें में सीकर दायीं भुजा मे बांध लें। ईश्वर की कृपा से बुरे दिन शीघ्र ही अच्छे दिनों में बदल जाएंगे।


यदि किसी व्यक्ति को किसी भी वजह से कोई परेशानी और मुश्किल पेश आ रही हो (जैसे-कारोबारी मंदी, बेकारी, निर्धनता, मुकदमा, घरेलू झंझट आदि), तो उपरोक्त नक्श को वह गुलाब व जाफरान से शुरू महीने में, मुश्तरी या जोहरा की घडी में लिखें और अपने दाहिने बाजू पर बांध ले। (स्त्री अपने बाएं बाजू पर बांधे)। हर मुश्किल और परेशानी दूर हो जाएगी। घरेलू मुश्किलें समाप्त हो जाएंगी, निर्धनता की जगह सम्पन्नता का मार्ग प्रशस्त होगा तथा मुकदमों एवं विवादों से छुटकारा मिल जाएगा। ध्यान रहे कि नक्श को नहा-धोकर एवं साफ-सुथरे कपडे पहनने के बाद ही लिखें।

तंगी से बचाने वाला तावीज
मुंह-हाथ धोकर, मुश्क और जाफरानी से उपरोक्त नक्श को लिखें तथा तह करके, गंडा बनाकर अपने दाहिने बाजू पर बांध लें। हर तंगी व परेशानी से निजात मिल जाएगी। यह एक चमत्कारिक नक्श है। इसके धारण करने से मात्र कुछ ही दिनों में शुभ फल प्राप्त होने लगता है।


गरीबी दूर करने का गंडा

इस नक्श को जाफरान व गुलाब-जल से लिखकर, मोमजामा कर, भुजा पर धारण करने से व्यक्ति की हर तरह की जरूरत पूरी हो जाती है तथा किसी भी कार्य में कोई अडचन नहीं आती।




उपरोक्त नक्श के स्थान पर निम्न नक्श का प्रयोग भी किया जा सकता है। साधक दोनों में से किसी भी एक का प्रयोग कर सकते हैं, दोनों ही समान रूप से प्रभावशाली हैं। यह नक्श भी जाफरान और गुलाब-अर्क से लिखकर, पॉलीथीन में बंद कर, बाजू पर धारण किया जाता है। यह भी हर जरूरत में काम आने वाला है। हर काम यूं आसान इस नक्श को मुश्तरी या जोहरी की घडी में लिखकर, पॉलीथीन में बंद कर पुरूष अपने दाहिने और स्त्री अपने बाएं हाथ पर बांधे। दिन कितने भी खराब हों, इस नक्श के प्रभाव से किसी भी कार्य में आने वाली मुश्किल और परेशानी दूर हो जाएगी। हर काम आसानी से हल हो जाएगा।


सबसे असरकारी नक्श
इस मुस्लिम ताçन्त्रक यन्त्र के अनेक उपयोग हैं। दुर्भाग्य हटाने और सितारों की गर्दिश दूर करने के लिए तो यह अमोघ अस्त्र है ही, बीमारी और भूत बाधा हटाने में भी बेहद असरकारी है। जिस तरह तिरछे अंक लिखे हैं। उसी प्रकार तिरछे अंक लिखने और विधि-विधान पूर्वक लोबान की धूनी देने से इस नक्श का प्रभाव और भी बढ जाता है।


उपरोक्त नक्श को मुश्क,जाफरान और गुलाब-अर्क से लिखें। अगर नौकरी या व्यवसाय आदि की कोई समस्या हो तो इस नक्श को पॉलीथीन में बंद कर बाजू पर बांध लें और यदि रोगी के लिए प्रयोग किया जाना हो, तो नक्श को कुएं के पानी में धोकर वह पानी रोगी को पिला दें। किसी पर बुरी नजर या ऊपरी हवा का असर हो तो नक्श की बत्ती बनाकर, उसकी धूनी रोगी को दें। हर तरह की परेशानी का हल इस नक्श से सहज ही हो जाता है।
एक बीमार व्यक्ति कितना ही पौष्टिक भोजन और व्यामाम करे वह पहलवान हो ही नहीं सकता। जब शरीर अन्दर से अस्वस्थ होता है तो सब किया-धा व्यर्थ हो जाता है। ठीक यही स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण यानी बुरे दिनों की है। जब कोई दुर्भाग्य से पीडित हो तब सौभाग्यवृद्धि के लिए टोना-टोटका अथवा अन्य प्रयास करने के पहले दुर्भाग्यनाशी उपाय पहले कर लें, इसके बाद ही सौभाग्यवर्द्धन और धन प्रापि्त के क्षेत्र में कदम बढाएं। यहां विशेष ध्यान रखने की बात है कि व्यक्ति के बुरे दिनों के कारणों के साथ-साथ बहुधा ग्रहों का दुष्प्रभाव भी होता है। यही कारण है कि बुरे दिन और विपत्तियां आने पर आप इस अध्याय में वर्णित उपायों का प्रयोग करें, ग्रह शान्ति के लिए भी अनुष्ठान करें।

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शनिवार, 17 मार्च 2012

शनि और रावण

आसुरी संस्कृति में महान् व्यक्तित्व उत्पन्न हुए, जिनका बल-पौरूष और विद्वत्ता अतुलनीय रही थी। शुम्भ-निशुम्भ, मधु-कैटभ, हिरण्यकश्यप, बलि या रावण, सभी अतुल पराक्रमी और महा विद्वान थे। यह अलग बात है कि उन्होंने अपनी शक्तियों का प्रयोग असामाजिक कृत्य और भोगों की प्राप्ति हेतु किया।
इनमें रावण का नाम असुर कुल के विद्वानों में अग्रणी रहा है। रावण चूंकि बाम्हण वंश में उत्पन्न हुए। उनके पिता ऋषि विश्रवा और दादा पुलस्त्य ऋषि महा तपस्वी और धर्मज्ञ थे किन्तु माता असुर कुल की होने से इनमें आसुरी संस्कार आ गए थे। ऋषि विश्रवा के दो पत्नियाँ थीं। एक का नाम इडविडा था जो बाम्हण कुल से थीं और जिनके कुबेर और विभीषण, ये दो संतानें उत्पन्न हुई। दूसरी पत्नी का नाम कैकसी था,  जो असुर कुल से थीं और इनके रावण, कुंभकर्ण और सूर्पणखा नामक संतानें उत्पन्न हुई।
कुबेर इन सब में सबसे बडे थे और रावण विभीषणादि जब बाल्यावस्था में थे, तभी कुबेर धनाघ्यक्ष की पदवी प्राप्त कर चुके थे। कुबेर की पद-प्रतिष्ठा से रावण की माँ ईष्र्या करती थीं और रावण को कोसा करती थीं। रावण के मन को एक दिन ठेस लगी और अपने भाइयों ( कुंभकर्ण-विभीषण ) को साथ में लेकर तपस्या करने चला गया। रावण का भातृ प्रेम अप्रतिम था। इनकी तपस्या सफल हुई और तीनों भाइयों ने ब्रम्हाजी से स्वेच्छापूर्ण वरदान प्राप्त किया।
रावण इतना अधिक बलशाली था कि सभी देवता और ग्रह-नक्षत्र उससे घबराया करते थे। ऎसा पढने को मिलता है कि रावण ने लंका में दसों दिक्पालों को पहरे पर नियुक्त किया हुआ था। रावण चूंकि बाम्हण कुल में जन्मा था सो पौरोहित्य कर्म में पूर्ण पारंगत था। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि शिवजी ने लंका का निर्माण करवाया और रावण ने उसकी वास्तु शांति करवाई, नगर-प्रवेश करवाया और दक्षिणा में लंका को ही मांग लिया था तथा लंका विजय के प्रसंग में सेतुबन्ध रामेश्वर की स्थापना, जब श्रीराम कर रहे थे, तब भी मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा आदि का पौरोहित्य कार्य रावण ने ही सम्पन्न करवाया।
रावण की पत्नी मंदोदरी जब माँ बनने वाली थी (मेघनाथ के जन्म के समय) तब रावण ने समस्त ग्रह मण्डल को एक निश्चित स्थिति में रहने के लिए सावधान कर दिया। जिससे उत्पन्न होने वाला पुत्र अत्यंत तेजस्वी, शौर्य और पराक्रम से युक्त हो। यहाँ रावण का प्रकाण्ड ज्योतिष ज्ञान परिलक्षित होता है।
उसने ऎसा समय (मुहूर्त) साध लिया था, जिस समय पर किसी का जन्म होगा तो वह अजेय और अत्यंत दीर्घायु से सम्पन्न होगा लेकिन जब मेघनाथ का जन्म हुआ, ठीक उसी समय शनि ने अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लिया, जिस स्थिति में शनि के होने पर रावण अपने पुत्र की दीर्घायु समझ रहा था, स्थिति परिवर्तन से वह पुत्र अब अल्पायु हो गया। रावण अत्यंत क्रोधित हो गया। उसने क्रोध में आकर शनि के पैरों पर गदा का प्रहार कर दिया। जिससे शनि के पैर में चोट लग गयी और वे पैर से कुछ लाचार हो गये, अर्थात् लँगडे हो गये।
शनि देव ही आयु के कारक हैं, आयु वृद्घि करने वाले हैं, आयुष योग में शनि का स्थान महत्वपूर्ण है किन्तु शुभ स्थिति में होने पर शनि आयु वृद्घि करते हैं तो अशुभ स्थिति में होने पर आयु का हरण कर लेते हैं। मेघनाथ के साथ भी ऎसा ही हुआ। मेघनाथ की पत्नी शेषनाग की पुत्री थी और महासती थी। मेघनाथ भी परम तेजस्वी और उपासना बल से परिपूर्ण था। इन्द्र को भी युद्घ में जीत लेने से उसका नाम च्च्इन्द्रजीतज्ज् पड गया था लेकिन दुर्भाग्यवश लक्ष्मण जी के हाथों उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रसंग में शनिदेव आयु के कारक और नाशक होते हैं, यह सिद्घ होता है।
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सरल उपायों से बच्चों को बनाएं कुशाग्र विद्यार्थी

यदि आपके बच्चो का पढाई में मन नहीं लगता या फिर पढने के बावजूद वह अपने पाठ को याद नहीं रख पता तो अब घबराने की जरूरत नहीं। हम आपको कुछ ऎसे उपाय बताने जा रहे हैं जिससे आपके बच्चो का पढाई में मन भी लगेगा और साथ ही उसे सब कुछ याद भी रहेगा।

ये सरल उपाय अपनाकर आप अपने बच्चो को पढाई में कुशाग्र बना सकते हैं।
1. बच्चों की अच्छी पढाई के लिए स्टडी टेबल हमेशा ही कमरे के पूर्व कोने में इस तरह से रखें कि पढाई करते समय आपके बच्चे का मुंह पूर्व दिशा की ओर रहे।
2. बच्चों को पढाई मे कुशाग्र बनाने के लिए उन्हें पढाई से पहले गायत्री मंत्र का पाठ करने के लिए कहें व पढते समय बच्चो के सिर पर पिरामिडिकल कैप लगाएं। ऎसा करने से उसके द्वारा याद किया हुआ सबक या पाठ उसे हमेशा के लिए याद रहेगा और बुद्धि कुशाग्र होगी।
3. बच्चों के उत्तर-पूर्व दीवार में लाल पट्टी के चायनीज बच्चों की युगल फोटों लगाएं। ऎसा करने से घर में खुशियां आएंगी और आपके बच्चो का करियर अच्छा बनेगा। इन उपायों को अपनाकर आप अपने बच्चे को एक अच्छा करियर दे सकते हैं और जीवन में सफल बना सकते हैं।
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बृहस्पति और मोटापा

बृहस्पति आशावाद के प्रतीक हैं, गुरू हैं, ग्रह हैं तथा देवताओं के मुख्य सलाहकार हैं। वे उपदेशक हैं, प्रवाचक हैं तथा सन्मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं। वे विज्ञान हैं, दृष्टा हैं तथा उपाय बताते हैं जिनसे मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो। यदि गुरू अपने सम्पूर्ण अंश दे दें तो व्यक्ति महाज्ञानी हो जाता है।
मैंने बृहस्पति को लेकर जब परीक्षण करने शुरू किये तो ब़डे अजीब पैरामीटर्स मैंने तय किये यथा जब बृहस्पति नीच राशि में हों तब व्यक्ति की चर्बी कम होगी या अधिक होगी। मुझे यह देखकर ब़डा आश्चर्य हुआ कि जिन çस्त्रयों की कुंडलियों में बृहस्पति नीच राशि में हैं उनमें मोटापा अधिक बढ़ता है। जिनमें बृहस्पति अत्यन्त शुभ अंशों में हों उनमें भी ऎसा देखने को मिल सकता है। जो लोग बृहस्पति के लगन में जन्म लेते हैं उनमे भी वसा तत्व अधिक मिलेगा और मोटापे को रोक नहीं पायेंगे। जिन लोगों की धनु या मीन राशि है उनको भी कालान्तर में यह समस्या उत्पन्न होगी। बृहस्पति एक तरफ ज्ञान, विज्ञान व विद्वत्ता देते हैं, दूसरी तरफ इस तरह के कष्ट भी देते हैं। हम सब जानते हैं कि परिश्रम करने से या कसरत करने से मोटापा कम होता है अर्थात् बृहस्पति के अंश अधिक होने से कसरत करनी प़डती है यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है। आधुनिक गुरूओं ने कसरत को योगा बना दिया है। कसरत का फैशन उत्पन्न नहीं हुआ बल्कि योगा का फैशन हो गया है। टी.वी. के पर्दे पर भांति-भांति की बालाएं जब योगा प्रस्तुत करती हैं तो लोगों को यकीन हो जाता है कि इसे कर लेना चाहिए। महर्षि पातंजलि के मन पर क्या बीत रही होगी जब वे योगा के इस विचित्र प्रसार को देख रहे होंगे। अब योगा आश्रम से बाहर निकल कर बाजार में आ गया है और दुनिया की सबसे अधिक बिकाऊ वस्तुओं में से एक हो गया है। जितने अधिक रूपये जलेंगे उतनी ही अधिक चर्बी जलेगी। शरीर को कष्ट नहीं हो इसलिए यंत्र भी बिक रहे हैं परन्तु बृहस्पति देवता हैं कि कुछ खास कृपा ही नहीं करते। मैं बहुत ऑर्थोडॉक्स कहलाऊंगा यदि यह प्रस्ताव मैं करूं कि यदि बृहस्पति का पूजा-पाठ करेंगे तो अवश्य ही मोटापा घटाने के लौकिक उपाय सफल हो जायेंगे अन्यथा बार-बार व्यायाम शालाओं में जाना पडे़गा और खर्चे का मीटर भी बढे़गा।
मैंने जो बहुत मजेदार परीक्षण किया वह यह कि जन्मचक्र में बृहस्पति का गोचर प्रयोग करते हुऎ यह देखा कि बृहस्पति किस भाव पर दृष्टि डाल रहे हैं तथा वह भाव किस दिशा में प़डता है। उदाहरण के लिए बृहस्पति जन्म चक्र के तीसरे भाव में भ्रमण कर रहे हैं तथा सातवें भाव पर, नवें भाव पर व एकादश भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं तो इनमें से सातवां भाव पत्नी से सम्बन्धित हैं व उसकी भाव की दिशा पश्चिम है। बृहस्पति की अमृत दृष्टि है अत: वह सप्तम भाव पर शुभ प्रभाव डालते हुऎ पत्नी के जीवन में शुभ लायेंगे। पत्नी का पद बढे़गा, उसको सुख बढे़गा, उनके जेवर बनेंगे व साथ के साथ उनका स्वास्थ्य भी बढे़गा। इसका अर्थ यह निकला कि उनको भोजन भी अच्छा मिलेगा, दावतों में भी शामिल होंगे व पति का सानिध्य अधिक मिलेगा। जिन लोगों के तलाक की स्थितियां हैं उनके तलाक रूक जायेंगे परन्तु जिनके तलाक सम्बन्धित कार्यवाहियां सप्तम भाव पर बृहस्पति की दृष्टि से पूर्व ही हो चुकी हैं उनके पुनर्विवाह के योग बनेंगे। ठीक इसी समय आप पायेंगे कि मकान के पश्चिम दिशा में या तो निर्माण होंगे या निर्माण कराने जैसी परिस्थितियां नहीं हैं तो पश्चिम दिशा में स्थित शयन कक्षों में इन्टीरियर अर्थात आंतरिक सज्जा में परिवर्तन आयेगा। इन कक्षों में रहने वालों के जीवन स्तर में परिवर्तन आयेगा। उनके सुख में वृद्धि होगी और उसके परिणामस्वरूप उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा। यह परिस्थितियां तब तक रहेंगी जब तक बृहस्पति देवता की दृष्टि सप्तम भाव पर अर्थात पश्चिम दिशा पर है।बृहस्पति आशावाद के प्रतीक हैं, गुरू हैं, ग्रह हैं तथा देवताओं के मुख्य सलाहकार हैं। वे उपदेशक हैं, प्रवाचक हैं तथा सन्मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं। वे विज्ञान हैं, दृष्टा हैं तथा उपाय बताते हैं जिनसे मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो। यदि गुरू अपने सम्पूर्ण अंश दे दें तो व्यक्ति महाज्ञानी हो जाता है।
मैंने बृहस्पति को लेकर जब परीक्षण करने शुरू किये तो ब़डे अजीब पैरामीटर्स मैंने तय किये यथा जब बृहस्पति नीच राशि में हों तब व्यक्ति की चर्बी कम होगी या अधिक होगी। मुझे यह देखकर ब़डा आश्चर्य हुआ कि जिन çस्त्रयों की कुंडलियों में बृहस्पति नीच राशि में हैं उनमें मोटापा अधिक बढ़ता है। जिनमें बृहस्पति अत्यन्त शुभ अंशों में हों उनमें भी ऎसा देखने को मिल सकता है। जो लोग बृहस्पति के लगन में जन्म लेते हैं उनमे भी वसा तत्व अधिक मिलेगा और मोटापे को रोक नहीं पायेंगे। जिन लोगों की धनु या मीन राशि है उनको भी कालान्तर में यह समस्या उत्पन्न होगी। बृहस्पति एक तरफ ज्ञान, विज्ञान व विद्वत्ता देते हैं, दूसरी तरफ इस तरह के कष्ट भी देते हैं। हम सब जानते हैं कि परिश्रम करने से या कसरत करने से मोटापा कम होता है अर्थात् बृहस्पति के अंश अधिक होने से कसरत करनी प़डती है यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है। आधुनिक गुरूओं ने कसरत को योगा बना दिया है। कसरत का फैशन उत्पन्न नहीं हुआ बल्कि योगा का फैशन हो गया है। टी.वी. के पर्दे पर भांति-भांति की बालाएं जब योगा प्रस्तुत करती हैं तो लोगों को यकीन हो जाता है कि इसे कर लेना चाहिए। महर्षि पातंजलि के मन पर क्या बीत रही होगी जब वे योगा के इस विचित्र प्रसार को देख रहे होंगे। अब योगा आश्रम से बाहर निकल कर बाजार में आ गया है और दुनिया की सबसे अधिक बिकाऊ वस्तुओं में से एक हो गया है। जितने अधिक रूपये जलेंगे उतनी ही अधिक चर्बी जलेगी। शरीर को कष्ट नहीं हो इसलिए यंत्र भी बिक रहे हैं परन्तु बृहस्पति देवता हैं कि कुछ खास कृपा ही नहीं करते। मैं बहुत ऑर्थोडॉक्स कहलाऊंगा यदि यह प्रस्ताव मैं करूं कि यदि बृहस्पति का पूजा-पाठ करेंगे तो अवश्य ही मोटापा घटाने के लौकिक उपाय सफल हो जायेंगे अन्यथा बार-बार व्यायाम शालाओं में जाना पडे़गा और खर्चे का मीटर भी बढे़गा।
मैंने जो बहुत मजेदार परीक्षण किया वह यह कि जन्मचक्र में बृहस्पति का गोचर प्रयोग करते हुऎ यह देखा कि बृहस्पति किस भाव पर दृष्टि डाल रहे हैं तथा वह भाव किस दिशा में प़डता है। उदाहरण के लिए बृहस्पति जन्म चक्र के तीसरे भाव में भ्रमण कर रहे हैं तथा सातवें भाव पर, नवें भाव पर व एकादश भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं तो इनमें से सातवां भाव पत्नी से सम्बन्धित हैं व उसकी भाव की दिशा पश्चिम है। बृहस्पति की अमृत दृष्टि है अत: वह सप्तम भाव पर शुभ प्रभाव डालते हुऎ पत्नी के जीवन में शुभ लायेंगे। पत्नी का पद बढे़गा, उसको सुख बढे़गा, उनके जेवर बनेंगे व साथ के साथ उनका स्वास्थ्य भी बढे़गा। इसका अर्थ यह निकला कि उनको भोजन भी अच्छा मिलेगा, दावतों में भी शामिल होंगे व पति का सानिध्य अधिक मिलेगा। जिन लोगों के तलाक की स्थितियां हैं उनके तलाक रूक जायेंगे परन्तु जिनके तलाक सम्बन्धित कार्यवाहियां सप्तम भाव पर बृहस्पति की दृष्टि से पूर्व ही हो चुकी हैं उनके पुनर्विवाह के योग बनेंगे। ठीक इसी समय आप पायेंगे कि मकान के पश्चिम दिशा में या तो निर्माण होंगे या निर्माण कराने जैसी परिस्थितियां नहीं हैं तो पश्चिम दिशा में स्थित शयन कक्षों में इन्टीरियर अर्थात आंतरिक सज्जा में परिवर्तन आयेगा। इन कक्षों में रहने वालों के जीवन स्तर में परिवर्तन आयेगा। उनके सुख में वृद्धि होगी और उसके परिणामस्वरूप उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा। यह परिस्थितियां तब तक रहेंगी जब तक बृहस्पति देवता की दृष्टि सप्तम भाव पर अर्थात पश्चिम दिशा पर है।
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राधा तू ब़डभागिनी

राघाजी भगवान श्री कृष्ण की परम प्रिया हैं तथा उनकी अभिन्न मूर्ति भी। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बरसाना के श्री वृषभानु जी के यहां राघा जी का जन्म हुआ था। श्रीमद्देवी भागवत में कहा गया है कि श्री राघा जी की पूजा नहीं की जाए तो मनुष्य श्री कृष्ण की पूजा का अघिकार भी नहीं रखता। राघा जी भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अघिष्ठात्री देवी हैं, अत: भगवान इनके अघीन रहते हैं। राघाजी का एक नाम कृष्णवल्लभा भी है क्योंकि वे श्रीकृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली हैं।
माता यशोदा ने एक बार राघाजी से उनके नाम की व्युत्पत्ति के विषय में पूछा। राघाजी ने उन्हें बताया कि च्राज् शब्द तो महाविष्णु हैं और च्घाज् विश्व के प्राणियों और लोकों में मातृवाचक घाय हैं। अत: पूर्वकाल में श्री हरि ने उनका नाम राघा रखा। भगवान श्रीकृष्ण दो रूपों में प्रकट हैं—द्विभुज और चतुर्भुज। चतुर्भुज रूप में वे बैकुंठ में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा और तुलसी के साथ वास करते हैं परन्तु द्विभुज रूप में वे गौलोक घाम में राघाजी के साथ वास करते हैं। राधा-कृष्ण का प्रेम इतना गहरा था कि एक को कष्ट होता तो उसकी पीडा दूसरे को अनुभव होती। सूर्योपराग के समय श्रीकृष्ण, रूक्मिणी आदि रानियां वृन्दावनवासी आदि सभी कुरूक्षेत्र में उपस्थित हुए। रूक्मिणी जी ने राधा जी का स्वागत सत्कार किया। जब रूक्मिणी जी श्रीकृष्ण के पैर दबा रही थीं तो उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में छाले हैं। बहुत अनुनय-विनय के बाद श्रीकृष्ण ने बताया कि उनके चरण-कमल राधाजी के ह्वदय में विराजते हैं। रूक्मिणी जी ने राधा जी को पीने के लिए अधिक गर्म दूध दे दिया था जिसके कारण श्रीकृष्ण के पैरों में फफोले पड गए।
राधा जी श्रीकृष्ण का अभिन्न भाग हैं। इस तथ्य को इस कथा से समझा जा सकता है कि वंदावन में श्रीकृष्ण को जब दिव्य आनंद की अनुभूति हुई तब वह दिव्यानंद ही साकार होकर बालिका के रूप में प्रकट हुआ और श्रीकृष्ण की यह प्राणशक्ति ही राधा जी हैं।
श्री राधा जन्माष्टमी के दिन व्रत रखकर मन्दिर में यथाविधि राधा जी की पूजा करनी चाहिए तथा श्री राधा मंत्र का जाप करना चाहिए। राधा जी लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं अत: इनकी पूजा से धन-धान्य व वैभव प्राप्त होता है।
राधा जी का नाम कृष्ण से भी पहले लिया जाता है। राधा नाम के जाप से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर दया करते हैं। राधाजी का श्रीकृष्ण के लिए प्रेम नि:स्वार्थ था तथा उसके लिए वे किसी भी तरह का त्याग करने को तैयार थीं। एक बार श्रीकृष्ण ने बीमार होने का स्वांग रचा। सभी वैद्य एवं हकीम उनके उपचार में लगे रहे परन्तु श्रीकृष्ण की बीमारी ठीक नहीं हुई। वैद्यों के द्वारा पूछे जाने पर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया कि मेरे परम प्रिय की चरण धूलि ही मेरी बीमारी को ठीक कर सकती है। रूक्मणि आदि रानियों ने अपने प्रिय को चरण धूलि देकर पाप का भागी बनने से इनकार कर दिया अंतत: राधा जी को यह बात कही गई तो उन्होंने यह कहकर अपनी चरण धूलि दी कि भले ही मुझे 100 नरकों का पाप भोगना पडे तो भी मैं अपने प्रिय के स्वास्थ्य लाभ के लिए चरण धूलि अवश्य दूंगी।
कृष्ण जी का राधा से इतना प्रेम था कि कमल के फूल में राधा जी की छवि की कल्पना मात्र से वो मूर्चिछत हो गये तभी तो विद्ववत जनों ने कहा
राधा तू बडभागिनी, कौन पुण्य तुम कीन।
तीन लोक तारन तरन सो तोरे आधीन।।

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शुक्रवार, 16 मार्च 2012

महिलाओं को कैसे करे आकर्षित

औसत व्यक्तिव के साथ महिलाओं को कैसे करे आकर्षित महिलाओं को अपनी ओर आर्कषित करना वास्तव मे बहुत कठिन कार्य है। सामान्य तथा औसत लुक वाले पुरूषों में ज्यादातर यह धारणा पाई जाती है कि महिलाओं को अपना बनाने के लिए कुछ गुणो को होना बेहद जरूरी है जो आपको सौगात में मिलता है तथा शायद यह उनके पास नही है। इस तरह के पुरूषों में बहुत से गुण होते हुए भी वह अपने आप को इस काबिल नही समझ पाते है कि वो किसी महिला को अपनी ओर आकर्षित कर सके, इसलिए वह स्वंय को दूसरो से हीन महसूस करते है। वास्तव में महिलाओं को आकर्षित करने की कला का गुण आपके साथ जन्म नही लेता है। कोई भी पुरूष चाहे वह कैसी भी जीवन शैली रखता हो अपना ध्यान केंद्रित करके समय के साथ चलते हुए इस गुर को आसानी से सीख सकता है और सबसे अच्छी बात यह है कि जब आप इसका सही तरीका सीख जायेगे तब आप पायेगें कि आप अपने खूबसूरत पल अपने पंसदीदा साथी के साथ बिता रहे है। यह कला सीखाने से पहले अनुरोध है कि आप इस बात का विशेष ध्यान रखे कि इस लेख के द्वारा किसी भी पुरूष को महिलाओं को वस्तुओं की तरह समझने की और प्रोत्साहित नही किया जा रहा है। यह लेख सिर्फ उन पुरूषो के लिए जो वास्तविक रूप से किसी महिला को अपना बनाना चाहते है, अगर आप केवल मजे लूटने के लिए किसी महिला का साथ चाहते है तो यह लेख आपकी मदद नही कर सकता है। हम आपको पहले से प्रयोग कि गए कुछ तरीको के बारे में बताते है:
    seduce a girl 1) पहला सबक यह है कि एक मजबूत रिश्ते को बनाने के लिए एक दूसरे की पंसद नापसंद को जानना बहुत जरूरी है। अपने रिश्ते मे ईमानदार बनिए, अपने साथी द्वारा की गई कोई बात अगर आप सच में पसंद करते है तो उसकी तारीफ करना ना भूलिए आपको चाहिए कि आप उनकी आंखो, बालों, बुद्धि और उनसे जु़डी अन्य खूबसूरत चीजों की तारीफ करे ध्यान रखिए जरूरत से ज्यादा प्रशंसा भी निष्ठाहीन लगती है, एक या दो ही सही दिल से की गई प्रशंसा कारगार साबित होती है।
  2) अपने साथी को ज्यादा से ज्यादा सुने वो स्वयं ही आपको सुराग देगी कि वह क्या पसंद करती है, आप कुछ दिनो पश्चात ऎसा कुछ करे जिसे वह पसंद करती है, यह आपके लिए फायदेमंद साबित होगा।
  3) अपनी वास्तविकता को झूठ का आंचल मत उ़डाइये जो है वही दिखाए आपकी यह सोच कि थोडा सा असत्य आपकी मदद करेगा बिलकुल गलत है, हो सकता है कुछ वक्त के लिए यह काम कर जाए पर सच्चाई आने पर यह आपके रिश्ते के लिए नुकसानदेय हो सकता है।
  4) जब तक पूछा ना जाए कोई सलाह मत दो, बस सुनो और सहायक बनो
  5) जब तक दूसरी तरफ से पहल न हो यौन-संबंध का प्रस्ताव न रखें क्योंकि यह आपकी मानसिकता को दर्शाता है।
  6) स्वयं के बारे में ज्यादा बातें बताने से कतरायें, उसे बोलने दे अगर वह जानना चाहेगी तब स्वयं पूछेगी। अपने बारे में डीगे ना मारे इस तरह की बाते जैसे कि ""आपकी मसलस बहुत अच्छी है"", ""आप कार बहुत बडिया चलाते हो"", ""आपके पास बहुत पैसा है"" इत्यादि से बचे दूसरी और बहुत अधिक चुप भी ना रहे, आसपास खासकर अपनी साथी महिला के बारे में बात करें।
 7) जब आप उसके साथ हो तो अपनी नजरों को दूसरी ल़डकियों पर न डाले, किसी और महिला या आपकी पुरानी गर्लफ्रेड की बाते भी न करें। अगर आप उसके साथ बाहर है तो इस बात का पूरा ध्यान रखे कि आपकी नजर और ध्यान पूरी तरह उन पर ही है और आप उसकी भावनाओं की कदर करते है।
  8) उसके साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करें, जब तक कि आप दोनो की दोस्ती इतनी नही हो जाए कि आप एक दूसरे को निक नेम से बुला सके, तब तक उसके पूरे नाम से ही बुलाए। सम्मान बहुत जरूरी है, एक अच्छी महिला आपके साथ यौन-संबंध बनाने मे तब तक दिलचस्पी नही लेगी जब तक उसे यह महसूस नही होगा कि आप उसका सम्मान करते है।
   9) उसे इस बात का एहसास कभी मत कराइये कि आप उस पर पैसा खर्च कर रहे है इसलिए उसे आपके साथ यौन-संबंध बनाने चाहिए, आपका यह व्यवहार विपरीत प्रभाव डालेगा और उसे यह महसूस होगा कि जो भी आपने अब तक उसके लिए खरीदा है वो सब सिर्फ उसके साथ यौन-संबंध बनाने के लिए था। बाकी सब आप पर र्निभर करता है।
   10) ज्यादातर महिलाऎं अहंकारी पुरूषो को नापंसद करती है। अगर आप एक महिला को आर्कषित करना चाहते है तो आपको यह सीखना होगा कि खुद को आत्मविश्वासी परंतु अंहकारी होने से कैसे बचायें।
  11) ज्यादातर महिलाएं आपके अचानक और सहज किए कार्यो से अधिक प्रभावित होती है, वैसे अधिकांश पुरूषों का महिलाओं के साथ इश्कबाजी करने का तरीका एक सा ही होता है परन्तु अपने तरीकों मे नयापन लाकर आप जल्दी ही महिला साथी के प्रभावित कर सकते है।
  12) डांस सीखे, यह महिला को आपकी ओर आर्कषित करने तथा यौन-संबंध बनाने के लिए प्रेरित करने में अग्रदूत साबित हो सकता है, ज्यादातर पुरूष डांस के लिए बाहर जाना पंसद नही करते है पर अगर आप अपनी यह मानसिकता छो़ड देगे तो जल्द ही उसे प्रभावित कर पाऎगें। जरूरी नही है कि आप इसमें परफेक्ट हो पर कोशिश जरूर कीजिए। डांस करते वक्त बांहो में भरकर एक दूसरो को निहारना, सांसो की गहराई में डूबना इत्यादि आपकी महिला साथी को प्रभावित करने में मदद कर सकता है।
   13) प्राकृतिक रूप से महिलाएं बहुत रोमांटिक होती है इसलिए रोमांस में डूबा हुआ रोमांच उन्हे बहुत पंसद होता है। अपनी हर डेट को महत्वपूर्ण और अलग बनाये, अपनी साथी को यह एहसास कराए कि वो दुनिया की सबसे सुंदर औरत है।
  14) आंखो से संपर्क बनाना महिलाओं को सडयूस करने का शानदार तरीका है आप अपनी उंगलियो के साथ उसके हाथों को धीरे-धीरे दबाएं, उसके बालो को हल्के से छुए और बस अपनी नजरो के माध्यम से अपने भावनाओं को व्यक्त करे, आप जितना अधिक बेहतर तरीके से अपनी भावनाऎं व्यक्त करेंगे उतना ही अधिक यह अर्थपूण होगा।
  15) रिश्ते मे जल्दबाजी न करे, पहले दिल जीते फिर कदम बढ़ाये, अपनी बातों को दिलचस्प बनायें वह क्या कहना चाहती है उसे सुने।
  16) अगर आप एक महिला के जज्बातों को समझ कर उसे भावनात्मक रूप से जीत सकते है तो उसे शारीरिक रूप से अपना बनाने में कोई मुश्किल नही होगी। पंरन्तु यह ध्यान अवश्य रखे कि केवल शारीरिक सुख के लिए उसकी भावनाओ के साथ न खेलें।
  17) अपने साथी के पंसदीदा संगीत की जानकारी लें, अधिकतर महिलाऎं जब अपने साथी के साथ होती है और उनका पंसदीदा संगीत भी होता है तो जल्द ही सडयूस हो जाती है।
  18) आप अपनी साथी महिला को एक अच्छी मसाज दे सकते है और साथ मे बबल बॉंथ भी ले सकते है, या किसी सोफे पर आराम से बैठकर बात भी कर सकते है, हर अवस्था मे उसे सहज और आपके लिए विशेष बनाइये।
   19) आप जो भी कर रहे बराबर की भागीदारी करे कुछ छे़डखानी वाले गेम्स भी खेल सकते है जो कि उसे उत्तेजित करने मे मदद करे, यौन-संबंधो की कुछ नई ट्रिक सीखे और कुछ नयापन लाकर अपने साथी को भी सिखाऎ।

आप इन कुछ सरल उपायो के अभ्यास से जल्द ही उसके दिन, मन शरीर और आत्मा की जीत का मार्ग सुनिश्चित कर सकते है। तो अगर आप किसी को पसंद करते पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ महसूस करते है तो विश्वासी बनिए और उसके पास जाइए और कहिए कि आप उसे कितना पसंद करते है और वो आपके लिए कितनी विशेष है। आशा है यह लेख आपके लिए उपयोगी होगा तथा आपके अपने पंसदीदा साथी को पाने मे मददगार साबित होगा।

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गुरुवार, 15 मार्च 2012

अखिलेश के दिल पर चलता है सिर्फ 'डिंपल' का राज

आज देश में चारों ओर केवल एक ही व्यक्ति की बात हो रही है और वो है देश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की। जिनकी ताजपोशी 15 मार्च को है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह का लाडला और अपनी मां का छोटा टीपू आज प्रदेश का सुल्तान बन गया है।

यह सुल्तान प्रदेश की सत्ता पर तो आज काबिज हो रहा है लेकिन आज से करीब 12 साल पहले किसी के हाथों शिकस्त खा चुका है। जिसका परिणाम यह है कि आज भी अखिलेश के दिल पर उन्ही की हुकूमत चलती है। आप जानना चाहेंगे कि कौन हैं वो खुशनसीब तो वो हैं डिंपल अखिलेश यादव।

जिनकी मुहब्बत में गिरफ्तार अखिलेश यादव आज से 12 साल पहले हुए थे। मात्र 25 साल की उम्र में अखिलेश यादव को उत्तराखंड की पहाड़ी बाला डिंपल से मुहब्बत हो गई थी। अपने से चार साल छोटी लड़की की मुहब्बत में अखिलेश इस कदर पागल हुए कि उन्होंने शादी करके ही दम लिया और अपने प्यार को एक खूबसूरत मकाम दे दिया।

फौजी पिता की सुपत्री डिंपल रिटायर्ड आर्मी कर्नल एस . सी . रावत की बेटी हैं। डिंपल की और भी दो बहने हैं। डिंपल और अखिलेश को शादी से तीन बच्चे अदिति, टीना और अर्जुन हैं। जिनमें से टीना और अर्जुन जुड़वा है। घर में छोटों के लिए वे अखिलेश दादा हैं, लेकिन डिंपल के लिए 'एडी'। वो अखिलेश के लिए यही संबोधन इस्तेमाल करती हैं।

तमाम व्यस्ताओं के बावजूद अखिलेश अपने परिवार को समय देना नहीं भूलते हैं। डिंपल को इसी बात का काफी गुमान रहता है। एक आदर्श भारतीय पत्नी की तरह डिंपल अखिलेश यादव के हर फैसले में साथ होती हैं, जिसका परिणाम यह है कि डिंपल ने अपने पति की जीती सीट फिरोजाबाद के लिए लोकसभा चुनाव लड़ा था। डिंपल को पूरा भरोसा है कि अखिलेश एक अच्छे बेटे, पति और पिता की तरह अच्छे सीएम भी साबित होंगे।
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भैया दूज

भारतीय बहनें इस पर्व पर भाई की मंगल कामना कर अपने को धन्य मानती हैं। उत्तर और मध्य भारत में यह पर्व मातृ द्वितीया भैया दूज के नाम से जाना जाता है, पूर्व में भाई-कोटा पश्चिम में भाईबीज और भाऊबीज कहलाता है। इस पर्व पर बहनें प्राय: गोबर से मांडना बनाती हैं, उसमें चावल और हल्दी के चित्र बनाती हैं तथा सुपारी फल, पान, रोली, धूप, मिष्ठान आदि रखती हैं, दीप जलाती हैं। इस दिन यम द्वितीया की कथा भी सुनी जाती है। ये पौराणिक एवं लोक कथाओं के रूप में है। भविष्य पुराण में उल्लेखित यह द्वितीया की कथा सर्वमान्य एवं महत्वपूर्ण है, इसके अनुसार काल देवता यमराज की लाडली बहन का नाम -यमुना है, यमुना अपने प्रिय भाई यमराज को बार-बार अपने घर आने के लिए संदेश भेजती थीं और निराशा ही पाती थीं। उसका एक अनुरोध सफल हुआ और यमराज अपनी बहन यमुना के घर जा पहुँचे। यमुना उन्हें द्वार पर देखकर हर्ष-विभोर हो उठीं। अपने घर में उसने भाई का जी भर कर आदर सत्कार किया। उन्हें मंगल-टीका लगाया तथा अपने हाथों से बना हुआ स्वादिष्ट भोजन कराया। यमराज बहन के स्नेह को देखकर प्रसन्न हो गए और उन्होंने बहन से कुछ मांगने का आग्रह किया। यमुना भाई के आगमन से ही सब कुछ पा चुकी थीं। भाई के आग्रह पर बस एक ही वरदान मांगा था, और वह वरदान था- आज का दिन भाई-बहन के स्नेह पर्व बनाकर सदा स्मरणीय रहे। उस दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया थी, तब से यह दिन भाई बहन के प्रेम का पर्व बन गया। इस दिन प्रत्येक बहन अपनी सामथ्र्य के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने भाई को खिलाती हैं और उसका भाई उसे यथा योग्य भेंट अर्पित करता है, लोक धारणा है कि बहन के घर भोजन करने से भाई को यम बाधा नहीं सताती तथा उसकी कीर्ति एवं समृद्घि में वृद्घि होती है। इस पर्व से संबंधित भाट भाटिन की कथा, राजा चम्बर की कथा बहन के टीका की कथा जैसी अनेक कथाएं प्रचलित हैं, सभी कथाओं के घटनाक्रम अनेक रूपी होते हुए भी उनमें भावनात्मक एकता निहित हैं, इसमें स्नेहमयी बहन के त्याग, स्नेह और सुरक्षात्मक भावना के प्रमाण मिलते हैं। बहन के टीका की कथा में निर्धन भाई, भैया दूज के टीका के लिए बहन के घर जाता है, रास्ते में उसे शेर, नदी, पर्वत सभी रोकते हैं और कहते हैं कि तुम्हारी माता ने तुम्हारे जन्म की कामना कर हमें चढ़ावा चढ़ाने की मनौती मांगी थी जो आज तक पूरी नहीं हुई। अत: हम तुम्हारी ही बलि लेंगे, उस निर्धन युवक ने कहा कि बहन का टीका लगवाकर आऊँगा तब आप मेरी बलि ले लीजिएगा। भाई बहन के घर पहुँचा, संपन्न बहन उसे देखकर निहाल हो गई, बहन ने उसका स्वागत किया। टीका किया और भोजन कराया, साथ ही यम देवता से उसके लिए जीवन का वर मांगा।
भाई बहन के अनुरोध पर उसे लिवा कर वापिस जाने लगा। बहन का मंगल टीका उसके मस्तिष्क पर शोभित था। अत: इस बार न उसे नदी ने रोका, न पह़ाड ने, किंतु बहन ने नदी, पह़ाड, वनराज आदि सभी की यथोचित पूजा से संतुष्ट किया। उन सभी ने उसे अनेक आशीर्वाद दिए। इस लोक कथा के अनुसार तब से यह पर्व बहन का भाई के प्रति त्याग के रूप में भी मनाया जाता है।
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Astro Saathi – ganesh chaturthi

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क्यों पहनते हैं जनेऊ ...

यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है। इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है। शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कटि प्रदेश तक स्थित होती है। यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म नस है। इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह होता है। यदि यह नस संकोचित अवस्था में हो तो मनुष्य काम-क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता। अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है इसका मात्र एहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से परावृत्त होने लगता है। यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने के कारण उसमें निहित विकार कम हो जाए तो कोई आश्यर्च नहीं है। इसीलिए सभी धर्मों में किसी न किसी कारणवश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। सारनाथ की अति प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर यज्ञोपवीत की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है। यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है, अतएव एसका सदैव धारण करना चाहिए। शास्त्रों में दाएं कान में माहात्म्य का वर्णन भी किया गया है। आदित्य, वसु, रूद्र, वायु, अगि्न, धर्म, वेद, आप, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है। यदि ऎसे पवित्र दाएं कान पर यज्ञोपवीत रखा जाए तो अशुचित्व नहीं रहता।
यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत। अर्थात अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है। अपनी अशुचि अवस्था को सूचित करने के लिए भी यह कृत्य उपयुक्त सिद्ध होता है। हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान पर से उतारें। इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि शरीर के नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है। दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है। मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की संभावना रहती है। दाएं कान को ब्रrासूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है। यह बात आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है। यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो दायां कान ब्रrासूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है।
बिस्तर में पेशाब करने वाले लडकों को दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रूक जाती है। किसी भी उच्छृंखल जानवर का दायां कान पकडने से वह उसी क्षण नरम हो जाता है। अंडवृद्धि के सात कारण हैं। मूत्रज अंडवृद्धि उनमें से एक है। दायां कान सूत्रवेष्टित होने पर मूत्रज अंडवृद्धि का प्रतिकार होता है। इन सभी कारणों से मूत्र तथा पुरीषोत्सर्ग करते समय दाएं कान पर जनेऊ रखने की शास्त्रीय आज्ञा है।
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Astro Saathi – why use kusha aashan

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Astro Saathi – Godlike

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