गुरुवार, 15 मार्च 2012

भैया दूज

भारतीय बहनें इस पर्व पर भाई की मंगल कामना कर अपने को धन्य मानती हैं। उत्तर और मध्य भारत में यह पर्व मातृ द्वितीया भैया दूज के नाम से जाना जाता है, पूर्व में भाई-कोटा पश्चिम में भाईबीज और भाऊबीज कहलाता है। इस पर्व पर बहनें प्राय: गोबर से मांडना बनाती हैं, उसमें चावल और हल्दी के चित्र बनाती हैं तथा सुपारी फल, पान, रोली, धूप, मिष्ठान आदि रखती हैं, दीप जलाती हैं। इस दिन यम द्वितीया की कथा भी सुनी जाती है। ये पौराणिक एवं लोक कथाओं के रूप में है। भविष्य पुराण में उल्लेखित यह द्वितीया की कथा सर्वमान्य एवं महत्वपूर्ण है, इसके अनुसार काल देवता यमराज की लाडली बहन का नाम -यमुना है, यमुना अपने प्रिय भाई यमराज को बार-बार अपने घर आने के लिए संदेश भेजती थीं और निराशा ही पाती थीं। उसका एक अनुरोध सफल हुआ और यमराज अपनी बहन यमुना के घर जा पहुँचे। यमुना उन्हें द्वार पर देखकर हर्ष-विभोर हो उठीं। अपने घर में उसने भाई का जी भर कर आदर सत्कार किया। उन्हें मंगल-टीका लगाया तथा अपने हाथों से बना हुआ स्वादिष्ट भोजन कराया। यमराज बहन के स्नेह को देखकर प्रसन्न हो गए और उन्होंने बहन से कुछ मांगने का आग्रह किया। यमुना भाई के आगमन से ही सब कुछ पा चुकी थीं। भाई के आग्रह पर बस एक ही वरदान मांगा था, और वह वरदान था- आज का दिन भाई-बहन के स्नेह पर्व बनाकर सदा स्मरणीय रहे। उस दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया थी, तब से यह दिन भाई बहन के प्रेम का पर्व बन गया। इस दिन प्रत्येक बहन अपनी सामथ्र्य के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने भाई को खिलाती हैं और उसका भाई उसे यथा योग्य भेंट अर्पित करता है, लोक धारणा है कि बहन के घर भोजन करने से भाई को यम बाधा नहीं सताती तथा उसकी कीर्ति एवं समृद्घि में वृद्घि होती है। इस पर्व से संबंधित भाट भाटिन की कथा, राजा चम्बर की कथा बहन के टीका की कथा जैसी अनेक कथाएं प्रचलित हैं, सभी कथाओं के घटनाक्रम अनेक रूपी होते हुए भी उनमें भावनात्मक एकता निहित हैं, इसमें स्नेहमयी बहन के त्याग, स्नेह और सुरक्षात्मक भावना के प्रमाण मिलते हैं। बहन के टीका की कथा में निर्धन भाई, भैया दूज के टीका के लिए बहन के घर जाता है, रास्ते में उसे शेर, नदी, पर्वत सभी रोकते हैं और कहते हैं कि तुम्हारी माता ने तुम्हारे जन्म की कामना कर हमें चढ़ावा चढ़ाने की मनौती मांगी थी जो आज तक पूरी नहीं हुई। अत: हम तुम्हारी ही बलि लेंगे, उस निर्धन युवक ने कहा कि बहन का टीका लगवाकर आऊँगा तब आप मेरी बलि ले लीजिएगा। भाई बहन के घर पहुँचा, संपन्न बहन उसे देखकर निहाल हो गई, बहन ने उसका स्वागत किया। टीका किया और भोजन कराया, साथ ही यम देवता से उसके लिए जीवन का वर मांगा।
भाई बहन के अनुरोध पर उसे लिवा कर वापिस जाने लगा। बहन का मंगल टीका उसके मस्तिष्क पर शोभित था। अत: इस बार न उसे नदी ने रोका, न पह़ाड ने, किंतु बहन ने नदी, पह़ाड, वनराज आदि सभी की यथोचित पूजा से संतुष्ट किया। उन सभी ने उसे अनेक आशीर्वाद दिए। इस लोक कथा के अनुसार तब से यह पर्व बहन का भाई के प्रति त्याग के रूप में भी मनाया जाता है।
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