कालसर्प योग विवाद का विषय है। इस योग के दुष्परिणाम एवं उनका अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन की अनदेखी किए जाने पर भी एक बात निर्विवाद माननी पडती है कि इस योग में निश्चित रूप से तथ्यांश है। इसका कारण यह है कि कालसर्प योग में जन्मे व्यक्ति का कोई न कोई पक्ष कमजोर रहता है। अनवरत कष्ट सहने के बावजूद यश प्राप्ति न होना तथा स्थिरता का अभाव होना आदि कालसर्प योग के प्रमुख लक्षण हैं। यह योग तब होता है जब राहु और केतु के एक ओर सभी ग्रह आ जाते हैं। नक्षत्र, ग्रह, राहु-केतु का उलटा भ्रमण तथा स्थानों के क्रमानुसार अनंत, कुलिक और वासुकि आदि 12 तरह के कालसर्प योग हैं। इसके दुष्परिणामों के संबंध में मतभिन्नता न होते हुए भी कालसर्प निवारण उपायों में मतभिन्नता पाई जाती है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक आदि में इस योग की शांति करने का प्रावधान है।
श्रद्धा के साथ शांति कर्म करने पर कालसर्प योग के दुष्परिणाम दूर होकर जातक के आत्मबल में वृद्धि होती है। कालसर्प योग के जातक दुर्भाग्यशाली होते हैं, ऎसी गलतफहमी समाज में व्याप्त है। परंतु सूक्ष्म निरीक्षण करने से यह बात ध्यान में आती है कि यह योग आध्यात्मिक दृष्टि से उच्च कोटि का है। ऎसे लोगों को सुख-दुख, मान-अपमान तथा उन्नति-अवनति आदि के बारे में परस्पर विरोधी अवस्थाओं से गुजरना पडता है।
वे हमेशा आह्वानात्मक जीवन जीते है। स्वामी समर्थ, महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, मुसोलिनी, हिटलर तथा लता मंगेशकर आदि का जीवन सच्चे अर्थो में क्रांतिकारी कहा जा सकता है। ऎसे व्यक्तियों ने अपने जीवन में कीर्ति एवं मान-सम्मान आदि का अति उच्च शिखर प्राप्त किया लेकिन इसके साथ ही साथ अनेक कष्ट भी झेले। कई राष्ट्रपुरूष साहित्य, संगीत, शिल्पकला, स्थापत्य शास्त्र, विज्ञान एवं ज्योतिष आदि विविध क्षेत्रों में भी शिखर पर पहुंचे।
इन पुरूषों की कुंडलियों में कालसर्प योग के स्पष्ट दर्शन होते है। दत्त के महावतार श्री स्वामी समर्थ की जन्मकुंडली में भी कालसर्प योग दिखाई देता है। ऎसे जातक जहां कीर्ति, यश ऎश्वर्य, साक्षात्कार तथा उच्च कोटि की ज्ञान साधना प्राप्त करने में समर्थ होते हैं वहीं वे समाज की ओर से निर्भत्सना, अपयश एवं न्याय आदि कष्ट भी पाते हैं। इसलिए कालसर्प योग या इस योग की छाया से युक्त कुंडली वाले जातक सच्चे अर्थो में स्थितप्रज्ञ योगी होते हैं। यदि विवाह तय होने के समय लडके या लडकी की कुंडली में कालसर्प योग हो तो उसे त्याज्य न समझकर उसका स्वागत करना चाहिए। ऎसे लोग आह्वानात्मक जीवन जी कर देश, परिवार और समाज के लिए उपयोगी होते हैं।
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श्रद्धा के साथ शांति कर्म करने पर कालसर्प योग के दुष्परिणाम दूर होकर जातक के आत्मबल में वृद्धि होती है। कालसर्प योग के जातक दुर्भाग्यशाली होते हैं, ऎसी गलतफहमी समाज में व्याप्त है। परंतु सूक्ष्म निरीक्षण करने से यह बात ध्यान में आती है कि यह योग आध्यात्मिक दृष्टि से उच्च कोटि का है। ऎसे लोगों को सुख-दुख, मान-अपमान तथा उन्नति-अवनति आदि के बारे में परस्पर विरोधी अवस्थाओं से गुजरना पडता है।
वे हमेशा आह्वानात्मक जीवन जीते है। स्वामी समर्थ, महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, मुसोलिनी, हिटलर तथा लता मंगेशकर आदि का जीवन सच्चे अर्थो में क्रांतिकारी कहा जा सकता है। ऎसे व्यक्तियों ने अपने जीवन में कीर्ति एवं मान-सम्मान आदि का अति उच्च शिखर प्राप्त किया लेकिन इसके साथ ही साथ अनेक कष्ट भी झेले। कई राष्ट्रपुरूष साहित्य, संगीत, शिल्पकला, स्थापत्य शास्त्र, विज्ञान एवं ज्योतिष आदि विविध क्षेत्रों में भी शिखर पर पहुंचे।
इन पुरूषों की कुंडलियों में कालसर्प योग के स्पष्ट दर्शन होते है। दत्त के महावतार श्री स्वामी समर्थ की जन्मकुंडली में भी कालसर्प योग दिखाई देता है। ऎसे जातक जहां कीर्ति, यश ऎश्वर्य, साक्षात्कार तथा उच्च कोटि की ज्ञान साधना प्राप्त करने में समर्थ होते हैं वहीं वे समाज की ओर से निर्भत्सना, अपयश एवं न्याय आदि कष्ट भी पाते हैं। इसलिए कालसर्प योग या इस योग की छाया से युक्त कुंडली वाले जातक सच्चे अर्थो में स्थितप्रज्ञ योगी होते हैं। यदि विवाह तय होने के समय लडके या लडकी की कुंडली में कालसर्प योग हो तो उसे त्याज्य न समझकर उसका स्वागत करना चाहिए। ऎसे लोग आह्वानात्मक जीवन जी कर देश, परिवार और समाज के लिए उपयोगी होते हैं।
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भारत में इस्लामी फासीवाद वृद्धि
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