शनिवार, 28 अप्रैल 2012

लव आज और कल


कबीरदास जी ने कहा था "ढाई अक्षर प्रेम का पढे़ सो पंडित होय", लेकिन आज अपने आसपास नजर डालें तो पायेंगे की इन ढाई अक्षरो को कोई नहीं पढ़ रहा। वे ढाई अक्षर अब बडे़ रेलवे स्टेशनों के बाहर खडे़ स्टीम इंजनों की तरह हो गए हैं। जिन्हे अब उपयोग में नहीं लिया जाता, वे सिर्फ दर्शनीय हो गयें हैं। अंदर की पटरियों पर तो "143" की मेट्रो ट्रेनें धकाधक दौ़ड रही हैं। 143 मतलब "आई लव यू"। इस भागदौ़ड के समय में इतना धैर्य किसके पास है जो "आई लव यू" जैसा लंबा जुमला उछाले, इसलिए इसे "अंकगणित" में बदल दिया गया और यह हो गया "143"। इधर से 143 तो उधर से 143 बस हो गया प्रेम। आजकल की पीढ़ी "प्रेम" जैसी धीर-गंभीर पोथी को शार्टकट में पढ़ना चाहते हैं। फिल्मी गीतकारों ने यू तो हमारी युवा पीढ़ी को हजारों संदेश दिए हैं। इनमें "कम्बख्त इश्क़" या "इश्क कमीना " जैसे नेगेटिव संदेश भी आए, जो प्रेमियों को प्रभावित नहीं कर सके। एक गीतकार ने तो इस पीढ़ी की मौसम ज्ञान संबंधी भ्रांतियां दूर कीं और पांचवा मौसम "प्यार" का बताया। एक जमाना वो था जब आदमी एक ही औरत से 50-60 सालों तक प्रेम किया करता था, अब हालात बदल गए हैं। जैसे एक आम आदमी इन दिनो एक साथ गरीबी, बेकारी, भूखमरी, जातिवाद, भ्रष्टाचार और पूंजीवाद से ल़ड रहा है। उसी तरह हमारे प्रेमी-प्रेमिकाओं का 143 एक साथ कई लाइनों पर चल रहा है। एक-एक प्रेम दीवानी एक साथ 10-10 दीवानों से इश्क फरमा रही हैं, दीवानों का भी यही हाल हैं।
इनमें से कि सी भी प्रेमी को अपनी प्रेमिकाओं का ताजा स्कोर बताने में कोई संकोच नहीं होता है। अगर किसी ल़डकी के प्रेमियों की गिनती 32 तक पहुंच रही हैं तो वो 35 प्रेमियो वाली अपनी फ्रेंड से इंफीरियर महसूस करती है। प्रेमियों की ये पीढ़ी साल में जितने कप़डे नहीं बदलती उतने प्रेमी बदल रही हैं। एक प्रेम का एसएमएस 10 प्रेमिकाओं को एक साथ भेजा जाता है और रोटेशन में वही एसएमएस लौटकर प्रेमी के पास आ जाता है। इन दिनों 143 की शुरूआत प्राइमरी के समापन और मिडिल की शुरूआत से हो रही हैं। पहले मिडिल , फिर हायर सेकंडरी, फिर कोचिंग क्लासेस, फिर कॉलेज की खुली हवा एक साथ कई प्रेमियों को ले बैठती है। लडकियों को आजकल नौकरी का शौक भी खूब चढ़ रहा है।
थर्ड क्लास ग्रेजुएट भी पांच-सात सौ की किसी प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी पा कर अपने प्रेमियो की सूची में इजाफा करती हैं। कई बालाएं तो विवाह की वेदी पर किसी कुंआरे की बलि लेने से पहले 10-20 ल़डको का शिकार कर चुकी होती हैं। ये सारे पंडित प्रेम की भाषा पढ़ने के बजाए 143 के जरिये देह का भूगोल पढ़ रहे हैं। इनका प्रेम शरीरी है जो इस देह से शुरू होकर इसी देह पर खत्म हो जाता है। आज के दौर में प्रेम विवाह भी बहुतायत में होने लगें हैं, लेकिन मजे की बात यह है कि प्रेम विवाह के बाद भी इन्सान प्रेम की तलाश में जुटा हुआ है। आज अगर कबीर होते तो अपने ढाई अक्षरों को 143 में बदलते देख फिर कहते- दिया कबीरा रोय।
utkarsh-shukla.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thanks for visit my blog