गुरुवार, 1 सितंबर 2011

पति-परायणा महारानी कलावती

राजा कर्णसिंह की पत्नी कलावती युद्ध-कौशल में अत्यंत निपुण, साहसी तथा दृढ़-स्वभाव की पति-परायणा नारी थी। एक बार अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति ने दक्षिण भारत पर विजय हासिल करने से पहले मार्ग में राजा कर्णसिंह को समर्पण करने का संदेश भेजा। युद्ध किए बिना अधीनता स्वीकार करना क्षत्रिय-धर्म और स्वभाव के विपरीत था, अत: कर्णसिंह ने अलाउद्दीन खिलजी के प्रत्युत्तर में युद्ध की घोषणा कर दी।

युद्ध की तैयारी कर जब कर्णसिंह महल में अपनी पत्नी से विदा लेने पहुंचा, तब रानी कलावती ने निवेदन करते हुए कहा- “नाथ मैं आपकी जीवन-संगिनी हूं, अत: इस अवसर पर मुझे साथ रहने की अनुमति प्रदान करें। यह ठीक है कि सिंहनी के आघात, बनराज की तुलना में हलके हो सकते हैं, किंतु गीदड़ों के विनाश के लिए तो पर्याप्त हैं।" राजा ने अपनी वीर-संगिनी के विचारों और भावों को समझते हुए तथा उसे आदर देते हुए साथ चलने की आज्ञा दे दी।

शत्रु-सेना की तुलना में कर्णसिंह का सैन्यबल बहुत कम था, किंतु वेतन भोगी यवनों की तुलना में देशभक्त राजपूत वीरों का मनोबल कहीं ऊंचा तथा दृढ़ था। रानी कलावती अपने स्वामी की छाया के समान युद्धभूमि में शत्रु दल का संहार करती हुई स्वामी के पार्श्व की रक्षा कर रही थी। अचानक एक कटोर आघात से कर्णसिंह अचेत होकर गिर पड़ा। रानी ने दोनों हाथों से शस्त्र-संचालन कर शत्रुओं का सफाया कर दिया। रानी के शौर्य और युद्ध-कौशल से राजपूत सेना के वीरों का उत्साह भी दूना हो गया। परिणामस्वरूप शत्रु-सेना पराजित हो पीछे हट गई।




विजय प्राप्त कर रानी कलावती अपने घायल वीर पति को लेकर महल लौटी। राजवैद्य ने परीक्षण कर बताया कि घातक विष बुझे शस्त्र के आघात से महाराज अचेत हुए हैं, इनका निराकरण केवल विष चूसकर ही किया जा सकता है। विष बहुत तीव्र गति से शरीर में फैल रहा है, किंतु यह भी ध्यान रखने की बात है कि चूसने वाले के प्राणों की रक्षा संभव नहीं है।

इससे पूर्व की किसी विष-चूसक की खोज की जाती, विष चूसने की विधि न जानते हुए भी रानी कलावती ने विष चूसना प्रारंभ कर दिया। कुछ समय पश्चात् राजा कर्णसिंह की अचेतना दूर हुई, उसने जैसे ही नेत्र खोले तो देखा कि उसकी जीवन-संगिनी के प्राण-पखेरू उड़ चुके हैं। पति का प्राण-रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति देने वाली भारतीय ललनाओं में रानी कलावती का अनयतम स्थान है।

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