शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011
इतिहास एक याद [काकोरी कांड]
1924 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' चंद युवा क्रांतिकारियों द्वारा बनाया गया एक ऐसा संगठन जो
संगठित सशस्त्र क्रांति पर विश्वास रखता था | 9 अगस्त सन 1925 को इस संगठन ने उत्तर रेलवे के
लखनऊ सहारनपुर संभाग के काकोरी नाम के स्टेशन पर 8 डाउन ट्रेन पर डकैती डाल कर सरकारी खजाने
को लूटा |
यही घटना इतिहास में काकोरी कांड कहलाई| इस पूरे मामले में कुल 29 लोगों की गिरफ़्तारी हुई| जिनमे से
राम प्रसाद बिस्मिल , राजेंद्र लाहिड़ी , रोशन सिंह और अशफाकुल्ला खां को दिसंबर 1927 में फांसी हुई |
शचीन्द्रनाथ सान्याल को आजीवन कारावास की सजा हुई | मन्मथ नाथ गुप्ता को 14 साल की सजा हुई |
कई और क्रांतिकारियों को भी लंबी सजाए हुई |
इस कांड में चंद्रशेखर आजाद भी शामिल थे पर वो अंग्रेजों के
हाँथ नहीं आये | बाद में लाहौर केस में भी वो अपनी चतुराई से बच निकले , लेकिन 27 फरवरी सन 1931
को इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में पुलिस से हुई मुटभेड में वो शहीद हो गए | इतिहास में युवा क्रांतिकारियों
का ये अध्याय आज भी युवाओं की पहली पसंद है | आज भी ना जाने कितनी फिल्मों में इस क्रांति को बेहद
ही खूबसूरती से दिखाया जाता है |
हम भारतीय है और हमारा ये फ़र्ज़ है की आज हम सब उन शहीदों को एक श्रधांजलि दें , और याद करें उनके
बलिदान | और दुनिया को ये विश्वास दिला दें की क्रांतिकारी आज भी पैदा होते हैं |
राम प्रसाद बिस्मिल
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।
रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।
यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
--राम प्रसाद बिसमिल
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