कभी किसी जमाने में शोकेन नामक एक योद्धा रहता था. उसके घर में एक बहुत बड़ा और विशाल शैतान चूहा था. यह चूहा बड़ा ही ढीठ और उत्पाती था. शोकेन ने उसे मारने के बहुत प्रयत्न किये पर सफल नहीं हुआ. तंग आकर शोकेन एक व्यक्ति के पास गया जो चूहों को मारने के लिए बिल्लियों को प्रशिक्षण देता था. शोकेन ने उससे चूहे को मारने के लिए एक बिल्ली माँगी.
बिल्लीवाले ने शोकेन को अदरक जैसे रंगवाली बड़ी चपल बिल्ली दी जिसके दांत और नाखून बेहद नुकीले थे. उस बिल्ली ने जब चूहे का सामना किया तो चूहा उसे देखकर निर्भय खड़ा रहा और उल्टे बिल्ली भयभीत हो गयी. शोकेन बिल्ली को वापस बिल्लीवाले के पास ले गया.
"चूहा वाकई बड़ा बदमाश है", बिल्लीवाले ने कहा और शोकेन को एक दुबली चितकबरी बिल्ली दी. "इस बिल्ली को मैंने कई वर्ष सिखाया है और यह बहुत कुशल है".
दूसरी बिल्ली ने चूहे का डटकर सामना किया पर चूहे ने उसे भी आसानी से हरा दिया.
शोकेन वापस बिल्लीवाले के पास गया और इसबार एक खूंखार काली बिल्ली लेकर आया. यह बिल्ली दिखने में आत्मविश्वास से परिपूर्ण लगती थी. बिल्लीवाले ने कहा, "इस बिल्ली ने ध्यान के द्वारा अपने मन को एकाग्र करना सीखा है. इसकी तकनीक अचूक है. यह उस चूहे को ज़रूर मार भगायेगी." लेकिन वह बिल्ली भी चूहे से हार बैठी.
अबकी बार जब शोकेन बिल्लीवाले के पास गया तो बिल्लीवाले ने कहा, "कोई बात नहीं, इस बार मैं तुम्हें अपनी सभी बिल्लियों की बूढ़ी गुरु बिल्ली देता हूँ." यह बिल्ली बूढ़ी और बेढब थी. उसमें ज़रा भी आकर्षण नहीं था. शोकेन उस बिल्ली को चूहे के पास ले गया. चूहा बिल्ली के पास आया पर बिल्ली ने उसकी ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया. अचानक ही चूहा उसे देखकर भय से जड़वत हो गया. बूढ़ी बिल्ली ने इत्मीनान से अपना पंजा उठाया और एक वार में ही चूहे को ढ़ेर कर दिया.
शोकेन बिल्ली को बिल्लीवाले के पास लेकर गया और उससे पूछा, "इस बिल्ली ने चूहे को इतनी आसानी से कैसे मार दिया जबकि अन्य बिल्लियाँ युवा और मजबूत होते हुए भी हार गयीं?"
बिल्लीवाले ने कहा, "आप मेरे साथ आइये, मुझे यकीन है कि बिल्लियाँ इस बारे में बात ज़रूर करेंगी, और चूंकि वे मार्शल आर्ट के बारे में गहराई से जानती हैं इसलिए यह बात उनसे सुनना बहुत रोचक होगा". वे छुपकर बिल्लियों की बातचीत सुनने लगे.
पहली बिल्ली ने कहा, "मैं बहुत कठोर हूँ".
"तो फिर तुम चूहे को क्यों नहीं हरा पाईं?", बूढ़ी बिल्ली ने कहा, "क्योंकि कठोर होना ही पर्याप्त नहीं है. किसी कठोर बिल्ली को उससे कठोर चूहा कभी भी मिल सकता है."
चितकबरी बिल्ली ने कहा, "मैंने कई साल चूहे मारने के अचूक तरीके सीखे, फिर भी मैं उस चूहे से क्यों हार गयी?". बूढ़ी बिल्ली ने जवाब दिया, "ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तुम सालों तक कुछ-एक ही दांव आजमाती रहीं और उस मुकाबले में वे दांव काम नहीं आये".
"लेकिन मैंने तो ध्यान साधना के द्वारा अपने मन और शरीर को परिपूर्ण कर लिया था", काली बिल्ली ने कहा, "मेरा कौशल अपरिमित होने और मुझे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो जाने के बाद भी मैं उस चूहे से कैसे हार गयी?"
"तुम्हारा कौशल निस्संदेह परिपूर्ण है और तुमने शारीरिक और आध्यात्मिक शक्तियां अर्जित कर ली हैं तिसपर भी तुम विषयों एवं कामनाओं से रिक्त नहीं हो. जब तुमने उस चूहे का सामना किया तब तुम्हारे मन में उसका वध करने की इच्छा प्रबल हो उठी. तुम अपनी इच्छा का अधिक्रमण नहीं कर सकीं और चूहे ने इसे भांप लिया. इस बात में वह तुमसे अधिक परिपक्व था. चूंकि तुम अपने मन को निर्विकार नहीं कर सकीं इसलिए तुम्हारी शक्तियों, तकनीकों, और चेतना का एकीकरण नहीं हुआ. चूहे को मारते समय मैंने इन तीनों तत्वों को साध लिया इसलिए मैं उसे निष्प्रयास ही मार सकी. यही मेरी सफलता का कारण है."
"लेकिन मैं एक और बिल्ली को जानती हूँ जो यहाँ से कुछ दूर एक गाँव में रहती है. पकी उम्र की होने के कारण उसके बाल सन जैसे सफ़ेद हो गए हैं. वह देखने में बिलकुल कठोर नहीं लगती. वह मांस नहीं खाती बल्कि चावल सब्जी से अपना पेट भरती है. उसने कई सालों से एक भी चूहा नहीं मारा है क्योंकि चूहे उससे अत्यंत भयभीत रहते हैं और जैसे ही वह किसी घर में दाखिल होती है तो वहां के सारे चूहे फ़ौरन घर छोड़ देते हैं. वह बिल्ली अपनी नींद में भी चूहों को अचेत कर देती है. हम सभी को उस बिल्ली जैसा ही होना चाहिए - वह हिंसा व अहिंसा के परे है. उसकी कोई तकनीक नहीं है, उसके मन में चूहों को मारने की इच्छा तक नहीं है."
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मंगलवार, 26 जुलाई 2011
सोमवार, 11 अप्रैल 2011
काश ये २० बातें मुझे पहले पता होतीं
अनुवादक : मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि लियो की बताई हुई बातों में कुछ नया नहीं है और हमारे यहाँ के कई लोग जैसे शिव खेडा आदि ने भी ऐसी ही प्रेरक और ज्ञानवर्धक बातें लिखी-कही है। मैं अपने मित्र से १००% सहमत हूँ लेकिन लियो जो कुछ भी कहते या लिखते हैं वह उनके अपने अनुभव पर जांचा-परखा है. आर्थिक और पारिवारिक मोर्चे पर चोट खाया हुआ व्यक्ति जो कुछ कहता है उसमें उसका अपना गहरा अनुभव होता है. वैसे भी हम भारतवासी यह मानते हैं कि ज्ञान जहाँ से भी और जिससे भी मिले ले लेना चाहिए. इसलिए लियो की बातें अर्थ रखती हैं.
* * * * *
मैं लगभग ३५ साल का हो गया हूँ और उतनी गलतियाँ कर चुका हूँ जितनी मुझे अब तक कर लेनी चाहिए थीं। पछतावे में मेरा यकीन नहीं है… और अपनी हर गलती से मैंने बड़ी सीख ली है… और मेरी ज़िंदगी बहुत बेहतर है।
लेकिन मुझे यह लगता है कि ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो मैं यदि उस समय जानता जब मैं युवावस्था में कदम रख रहा था तो मेरी ज़िंदगी कुछ और होती।
वाकई? मैं यकीन से कुछ नहीं कह सकता। मैं क़र्ज़ के पहाड़ के नीचे नहीं दबा होता लेकिन इसके बिना मुझे इससे बाहर निकलने के रास्ते की जानकारी भी न हुई होती। मैंने बेहतर कैरियर अपनाया होता लेकिन मुझे वह अनुभव नहीं मिला होता जिसने मुझे ब्लौगर और लेखक बनाया।
मैंने शादी नहीं की होती, ताकि मेरा तलाक भी न होता… लेकिन यह न होता तो मुझे पहली शादी से हुए दो प्यारे-प्यारे बच्चे भी नहीं मिले होते।
मुझे नहीं लगता कि मैं अपने साथ हुई ये सारी चीज़ें बदल सकता था। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि मैंने ऐसे सबक सीखे हैं जो मैं ख़ुद को तब बताना चाहता जब मैं १८ साल का था। क्या अब वो सबक दुहराकर मैं थोड़ा सा पछता लूँ? नहीं। मैं उन्हें यहाँ इसलिए बाँट रहा हूँ ताकि हाल ही में अपना होश संभालनेवाले युवा लड़के और लड़कियां मेरी गलतियों से कुछ सबक ले सकें।
ये मेरी गलतियों की कोई परिपूर्ण सूची नहीं है लेकिन मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कुछ लोगों को इससे ज़रूर थोड़ी मदद मिलेगी।
खर्च करने पर नियंत्रण - यूँही पैसा उड़ा देने की आदत ने मुझे बड़े आर्थिक संकट में डाला। मैं ऐसे कपड़े खरीदता था जिनकी मुझे ज़रूरत नहीं थी। ऐसे गैजेट खरीद लेता था जिन्हें सिर्फ़ अपने पास रखना चाहता था। ऑनलाइन खरीददारी करता था क्योंकि ये बहुत आसान है। अपनी बड़ी स्पोर्ट्स यूटिलिटी वेहिकल मैंने सिर्फ़ औरतों को आकर्षित और प्रभावित करने के चक्कर में खरीद ली। मुझे अब ऐसे किसी भी चीज़ पर गर्व नहीं होता। मैंने आदतन पैसा खर्च करने के स्वभाव पर काबू पा लिया है। अब कुछ भी खरीदने से पहले मैं थोड़ा समय लगाता हूँ। मैं यह देखता हूँ कि क्या मेरे पास उसे खरीदने के लिए पैसे हैं, या मुझे उसकी वाकई ज़रूरत है या नहीं। १५ साल पहले मुझे इसका बहुत लाभ मिला होता।
सक्रिय-गतिमान जीवन – जब मैं हाईस्कूल में था तब भागदौड़ और बास्केटबाल में भाग लेता था। कॉलेज पहुँचने के बाद मेरा खेलकूद धीरे-धीरे कम होने लगा। यूँ तो मैं चलते-फिरते बास्केटबाल हाईस्कूल के बाद भी खेलता रहा पर वह भी एक दिन बंद हो गया और ज़िंदगी से सारी गतिशीलता चली गयी। बच्चों के साथ बहार खेलने में ही मेरी साँस फूलने लगी। मैं मोटा होने लगा। अब मैंने बहुत दौड़भाग शुरू कर दी है पर बैठे-बैठे सालों में जमा की हुई चर्बी को हटाने में थोड़ा वक़्त लगेगा।
आर्थिक नियोजन करना – मैं हमेशा से यह जानता था कि हमें अपने बजट और खर्चों पर नियंत्रण रखना चाहिए। इसके बावजूद मैंने इस मामले में हमेशा आलस किया। मुझे यह ठीक से पता भी नहीं था कि इसे कैसे करते हैं। अब मैंने इसे सीख लिया है और इसपर कायम रहता हूँ। हां, कभी-कभी मैं रास्ते से थोड़ा भटक भी जाता हूँ पर दोबारा रास्ते पर आना भी मैंने सीख लिया है। ये सब आप किसी किताब से पढ़कर नहीं सीख सकते। इसे व्यवहार से ही जाना जा सकता है। अब मैं यह उम्मीद करता हूँ कि अपने बच्चों को मैं यह सब सिखा पाऊँगा।
जंक फ़ूड पेट पर भारी पड़ेगा – सिर्फ़ ठहरी हुई लाइफस्टाइल के कारण ही मैं मोटा नहीं हुआ। बाहर के तले हुए भोजन ने भी इसमें काफी योगदान दिया। हर कभी मैं बाहर पिज्जा, बर्गर, और इसी तरह की दूसरी चर्बीदार तली हुई चीज़ें खा लिया करता था। मैंने यह कभी नहीं सोचा कि इन चीज़ों से कोई समस्या हो सकती है। अपने स्वास्थ्य के बारे में तो हम तभी सोचना शुरू करते हैं जब हम कुछ प्रौढ़ होने लगते हैं। एक समय मेरी जींस बहुत टाइट होने लगी और कमर का नाप कई इंच बढ़ गया। उस दौरान पेट पर चढी चर्बी अभी भी पूरी तरह से नहीं निकली है। काश किसी ने मुझे उस समय ‘आज’ की तस्वीर दिखाई होती जब मैं जवाँ था और एक साँस में सोडे की बोतल ख़त्म कर दिया करता था।
धूम्रपान सिर्फ़ बेवकूफी है – धूम्रपान की शुरुआत मैंने कुछ बड़े होने के बाद ही की। क्यों की, यह बताना ज़रूरी नहीं है लेकिन मुझे हमेशा यह लगता था कि मैं इसे जब चाहे तब छोड़ सकता हूँ। ऐसा मुझे कई सालों तक लगता रहा जब एक दिन मैंने छोड़ने की कोशिश की लेकिन छोड़ नहीं पाया। पाँच असफल कोशिशों के बाद मुझे यह लगने लगा कि मेरी लत वाकई बहुत ताकतवर थी। आखिरकार १८ नवम्बर २००५ को मैंने धूम्रपान करना पूरी तरह बंद कर दिया लेकिन इसने मेरा कितना कुछ मुझसे छीन लिया।
रिटायरमेंट की तैयारी – यह बात और इससे पहले बताई गयी बातें बहुत आम प्रतीत होती हैं। आप यह न सोचें कि मुझे इस बात का पता उस समय नहीं था जब मैं १८ साल का था। मैं इसे बखूबी जानता था लेकिन मैंने इसके बारे में कभी नहीं सोचा। जब तक मैं ३० की उम्र पार नहीं कर गया तब तक मैंने रिटायर्मेंट प्लानिंग के बारे में कोई चिंता नहीं की। अब मेरा मन करता है कि उस १८ वर्षीय लियो को इस बात के लिए एक चांटा जड़ दिया जाए। खैर। अब तक तो मैं काफी पैसा जमा कर चुका होता! मैंने भी रिटायर्मेंट प्लान बनाया था लेकिन मैंने तीन बार जॉब्स बदले और अपना जमा किया पैसा यूँही उड़ा दिया।
जो कुछ भी आपको कठिन लगता है वह आपके काम का होता है – यह ऐसी बात है जो ज्यादा काम की नहीं लगती। एक समय था जब मुझे काम मुश्किल लगता था। मैंने काम किया ज़रूर, लेकिन बेमन किया। अगर काम न करने की छूट होती तो मैं नहीं करता। परिश्रम ने मुझे बहुत तनाव में डाला। मैं कभी भी परिश्रम नहीं करना चाहता था। लेकिन मुझे मिलने वाला सबक यह है कि जितना भी परिश्रम मैंने अनजाने में किया उसने मुझे सदैव दूर तक लाभ पहुँचाया। आज भी मैं उन तनाव के दिनों में कठोर परिश्रम करते समय सीखे हुए हुनर और आदतों की कमाई खा रहा हूँ। उनके कारण मैं आज वह बन पाया हूँ जो मैं आज हूँ। इसके लिए मैं युवक लियो का हमेशा अहसानमंद रहूँगा।
बिना जांचे-परखे कोई पुराना सामान नहीं खरीदें – मैंने एक पुरानी वैन खरीदी थी। मुझे यह लग रहा था की मैं बहुत स्मार्ट था और मैंने उसे ठीक से जांचा-परखा नहीं। उस खटारा वैन के इंजन में अपार समस्याएँ थीं। उसका एक दरवाजा तो चलते समय ही गिर गया। खींचते समय दरवाजे का हैंडल टूट गया। कांच भी कहीं टपक गया। टायर बिगड़ते गए, खिड़कियाँ जाम पडी थीं, और एक दिन रेडियेटर भी फट गया। अभी भी मैं ढेरों समस्याएँ गिना सकता हूँ। वह मेरे द्वारा ख़रीदी गयी सबसे घटिया चीज़ थी। यह तो मैं अभी भी मानता हूँ की पुरानी चीज़ों को खरीदने में समझदारी है लेकिन उन्हें देख-परख के ही खरीदना चाहिए।
बेचने से पहले ही सारी बातें तय कर लेने में ही भलाई है – अपने दोस्त के दोस्त को मैंने अपनी एक कार बेची। मुझे यकीन था कि बगैर लिखा-पढी के ही वह मुझे मेरी माँगी हुई उचित कीमत अदा कर देगा। यह मेरी बेवकूफी थी। अभी भी मुझे वह आदमी कभी-कभी सड़क पर दिख जाता है लेकिन अब मुझमें इतनी ताक़त नहीं है कि मैं अपना पैसा निकलवाने के लिए उसका पीछा करूँ।
कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, अपना शौक पूरा करो – मैं हमेशा से ही लेखक बनना चाहता था। मैं चाहता था कि एक दिन लोग मेरी लिखी किताबें पढ़ें लेकिन मेरे पास लिखने का समय ही नहीं था। पूर्ण-कालिक नौकरी और पारिवारिक जिम्मेदारियां होने के कारण मुझे लिखने का वक़्त नहीं मिल पाता था। अब मैं यह जान गया हूँ कि वक़्त तो निकालना पड़ता है। दूसरी चीज़ों से ख़ुद को थोड़ा सा काटकर इतना समय तो निकला ही जा सकता है जिसमें हम वो कर सकें जो हमारा दिल करना चाहता है। मैंने अपनी ख्वाहिश के आड़े में बहुत सी चीज़ों को आने दिया। यह बात मैंने १५ साल पहले जान ली होती तो आजतक मैं १५ किताबें लिख चुका होता। सारी किताबें तो शानदार नहीं होतीं लेकिन कुछेक तो होतीं!
जिसकी खातिर इतना तनाव उठा रहे हैं वो बात हमेशा नहीं रहेगी – जब हमारा बुरा वक़्त चल रहा होता है तब हमें पूरी दुनिया बुरी लगती है। मुझे समयसीमा में काम करने होते थे, कई प्रोजेक्ट एक साथ चल रहे थे, लोग मेरे सर पर सवार रहते थे और मेरे तनाव का स्तर खतरे के निशान के पार जा चुका था। मुझे मेहनत करने का कोई पछतावा नहीं है (जैसा मैंने ऊपर कहा) लेकिन यदि मुझे इस बात का पता होता कि इतनी जद्दोजहद और माथापच्ची १५ साल तो क्या अगले ५ साल बाद बेमानी हो जायेगी तो मैं अपने को उसमें नहीं खपाता। परिप्रेक्ष्य हमें बहुत कुछ सिखा देता है।
काम के दौरान बनने वाले दोस्त काम से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं – मैंने कई जगहों में काम किया और बहुत सारी चीज़ें खरीदीं और इसी प्रक्रिया में बहुत सारे दोस्त भी बनाये। काश मैं यहाँ-वहां की बातों में समय लगाने के बजाय अपने दोस्तों और परिजनों के साथ बेहतर वक़्त गुज़र पाता!
टी वी देखना समय की बहुत बड़ी बर्बादी है – मुझे लगता है कि साल भर में हम कई महीने टी वी देख चुके होते हैं। रियालिटी टी वी देखने में क्या तुक है जब रियालिटी हाथ से फिसली जा रही हो? खोया हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता – इसे टी वी देखने में बरबाद न करें।
बच्चे समय से पहले बड़े हो जायेंगे। समय नष्ट न करें – बच्चे देखते-देखते बड़े हो जाते हैं। मेरी बड़ी बेटी क्लो कुछ ही दिनों में १५ साल की हो जायेगी। तीन साल बाद वह वयस्क हो जायेगी और फ़िर मुझसे दूर चली जायेगी। तीन साल! ऐसा लगता है कि यह वक़्त तो पलक झपकते गुज़र जाएगा। मेरा मन करता हूँ कि १५ साल पहले जाकर ख़ुद को झिड़क दूँ – दफ्तर में रात-दिन लगे रहना छोडो! टी वी देखना छोडो! अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करो! – पिछले १५ साल किती तेजी से गुज़र गए, पता ही न चला।
दुनिया के दर्द बिसराकर अपनी खुशी पर ध्यान दो – मेरे काम में और निजी ज़िंदगी में मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ जब मुझे लगने लगा कि मेरी दुनिया बस ख़त्म हो गयी। जब समस्याएँ सर पे सवार हो जाती थीं तो अच्छा खासा तमाशा बन जाता था। इस सबके कारण मैं कई बार अवसाद का शिकार हुआ। वह बहुत बुरा वक़्त था। सच तो यह था कि हर समस्या मेरे भीतर थी और मैं सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर खुश रह सकता था। मैं यह सोचकर खुश हो सकता था कि मेरे पास कितना कुछ है जो औरों के पास नहीं है। अपने सारे दुःख-दर्द मैं ताक पर रख सकता था।
ब्लॉग्स केवल निजी पसंद-नापसंद का रोजनामचा नहीं है – पहली बार मैंने ब्लॉग्स ७-८ साल पहले पढ़े। पहली नज़र में मुझे उनमें कुछ ख़ास रूचि का नहीं लगा – बस कुछ लोगों के निजी विचार और उनकी पसंद-नापसंद! उनको पढ़के मुझे भला क्या मिलता!? मुझे अपनी बातों को दुनिया के साथ बांटकर क्या मिलेगा? मैं इन्टरनेट पर बहुत समय बिताता था और एक वेबसाईट से दूसरी वेबसाईट पर जाता रहता था लेकिन ब्लॉग्स से हमेशा कन्नी काट जाता था। पिछले ३-४ सालों के भीतर ही मुझे लगने लगा कि ब्लॉग्स बेहतर पढने-लिखने और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने और जानकारी बांटने का बेहतरीन माध्यम हैं। ७-८ साल पहले ही यदि मैंने ब्लॉगिंग शुरू कर दी होती तो अब तक मैं काफी लाभ उठा चुका होता।
याददाश्त बहुत धोखा देती है – मेरी याददाश्त बहुत कमज़ोर है। मैं न सिर्फ़ हाल की बल्कि पुरानी बातें भी भूल जाता हूँ। अपने बच्चों से जुडी बहुत सारी बातें मुझे याद नहीं हैं क्योंकि मैंने उन्हें कहीं लिखकर नहीं रखा। मुझे ख़ुद से जुडी बहुत सारी बातें याद नहीं रहतीं। ऐसा लगता है जैसे स्मृतिपटल पर एक गहरी धुंध सी छाई हुई है। यदि मैंने ज़रूरी बातों को नोट कर लेने की आदत डाली होती तो मुझे इसका बहुत लाभ मिलता।
शराब बुरी चीज़ है – मैं इसके विस्तार में नहीं जाऊँगा। बस इतना कहना ही काफी होगा कि मुझे कई बुरे अनुभव हुए हैं। शराब और ऐसी ही कई दूसरी चीज़ों ने मुझे बस एक बात का ज्ञान करवाया है – शराब सिर्फ़ शैतान के काम की चीज़ है।
आप मैराथन दौड़ने का निश्चय कभी भी कर सकते हैं – इसे अपना लक्ष्य बना लीजिये – यह बहुत बड़ा पारितोषक है। स्कूल के समय से ही मैं मैराथन दौड़ना चाहता था। यह एक बहुत बड़ा सपना था जिसे साकार करने में मैंने सालों लगा दिए। मैराथन दौड़ने पर मुझे पता चला कि यह न सिर्फ़ सम्भव था बल्कि बहुत बड़ा पारितोषक भी था। काश मैंने दौड़ने की ट्रेनिंग उस समय शुरू कर दी होती जब मैं हल्का और तंदरुस्त था, मैं तब इसे काफी कम समय में पूरा कर लेता!
इतना पढने के बाद भी मेरी गलतियाँ दुहराएंगे तो पछतायेंगे – १८ वर्षीय लियो ने इस पोस्ट को पढ़के यही कहा होता – “अच्छी सलाह है।” और इसके बाद वह न चाहते हुए भी वही गलतियाँ दुहराता। मैं बुरा लड़का नहीं था लेकिन मैंने किसी की सलाह कभी नहीं मानी। मैं गलतियाँ करता गया और अपने मुताबिक ज़िंदगी जीता गया। मुझे इसका अफ़सोस नहीं है। मेरा हर अनुभव (शराब का भी) मुझे मेरी ज़िंदगी की उस राह पर ले आया है जिसपर आज मैं चल रहा हूँ। मुझे अपनी ज़िंदगी से प्यार है और मैं इसे किसी के भी साथ हरगिज नहीं बदलूँगा। दर्द, तनाव, तमाशा, मेहनत, परेशानियाँ, अवसाद, हैंगओवर, क़र्ज़, मोटापा – सलाह न मानने के इन नतीजों का पात्र था मैं।
http://hindizen.com/2009/03/17/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6-%E0%A4%AF%E0%A5%87-%E0%A5%A8%E0%A5%A6-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%9D%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%AA/
31 यह पोस्ट कैसी लगी?
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मैं लगभग ३५ साल का हो गया हूँ और उतनी गलतियाँ कर चुका हूँ जितनी मुझे अब तक कर लेनी चाहिए थीं। पछतावे में मेरा यकीन नहीं है… और अपनी हर गलती से मैंने बड़ी सीख ली है… और मेरी ज़िंदगी बहुत बेहतर है।
लेकिन मुझे यह लगता है कि ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो मैं यदि उस समय जानता जब मैं युवावस्था में कदम रख रहा था तो मेरी ज़िंदगी कुछ और होती।
वाकई? मैं यकीन से कुछ नहीं कह सकता। मैं क़र्ज़ के पहाड़ के नीचे नहीं दबा होता लेकिन इसके बिना मुझे इससे बाहर निकलने के रास्ते की जानकारी भी न हुई होती। मैंने बेहतर कैरियर अपनाया होता लेकिन मुझे वह अनुभव नहीं मिला होता जिसने मुझे ब्लौगर और लेखक बनाया।
मैंने शादी नहीं की होती, ताकि मेरा तलाक भी न होता… लेकिन यह न होता तो मुझे पहली शादी से हुए दो प्यारे-प्यारे बच्चे भी नहीं मिले होते।
मुझे नहीं लगता कि मैं अपने साथ हुई ये सारी चीज़ें बदल सकता था। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि मैंने ऐसे सबक सीखे हैं जो मैं ख़ुद को तब बताना चाहता जब मैं १८ साल का था। क्या अब वो सबक दुहराकर मैं थोड़ा सा पछता लूँ? नहीं। मैं उन्हें यहाँ इसलिए बाँट रहा हूँ ताकि हाल ही में अपना होश संभालनेवाले युवा लड़के और लड़कियां मेरी गलतियों से कुछ सबक ले सकें।
ये मेरी गलतियों की कोई परिपूर्ण सूची नहीं है लेकिन मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कुछ लोगों को इससे ज़रूर थोड़ी मदद मिलेगी।
खर्च करने पर नियंत्रण - यूँही पैसा उड़ा देने की आदत ने मुझे बड़े आर्थिक संकट में डाला। मैं ऐसे कपड़े खरीदता था जिनकी मुझे ज़रूरत नहीं थी। ऐसे गैजेट खरीद लेता था जिन्हें सिर्फ़ अपने पास रखना चाहता था। ऑनलाइन खरीददारी करता था क्योंकि ये बहुत आसान है। अपनी बड़ी स्पोर्ट्स यूटिलिटी वेहिकल मैंने सिर्फ़ औरतों को आकर्षित और प्रभावित करने के चक्कर में खरीद ली। मुझे अब ऐसे किसी भी चीज़ पर गर्व नहीं होता। मैंने आदतन पैसा खर्च करने के स्वभाव पर काबू पा लिया है। अब कुछ भी खरीदने से पहले मैं थोड़ा समय लगाता हूँ। मैं यह देखता हूँ कि क्या मेरे पास उसे खरीदने के लिए पैसे हैं, या मुझे उसकी वाकई ज़रूरत है या नहीं। १५ साल पहले मुझे इसका बहुत लाभ मिला होता।
सक्रिय-गतिमान जीवन – जब मैं हाईस्कूल में था तब भागदौड़ और बास्केटबाल में भाग लेता था। कॉलेज पहुँचने के बाद मेरा खेलकूद धीरे-धीरे कम होने लगा। यूँ तो मैं चलते-फिरते बास्केटबाल हाईस्कूल के बाद भी खेलता रहा पर वह भी एक दिन बंद हो गया और ज़िंदगी से सारी गतिशीलता चली गयी। बच्चों के साथ बहार खेलने में ही मेरी साँस फूलने लगी। मैं मोटा होने लगा। अब मैंने बहुत दौड़भाग शुरू कर दी है पर बैठे-बैठे सालों में जमा की हुई चर्बी को हटाने में थोड़ा वक़्त लगेगा।
आर्थिक नियोजन करना – मैं हमेशा से यह जानता था कि हमें अपने बजट और खर्चों पर नियंत्रण रखना चाहिए। इसके बावजूद मैंने इस मामले में हमेशा आलस किया। मुझे यह ठीक से पता भी नहीं था कि इसे कैसे करते हैं। अब मैंने इसे सीख लिया है और इसपर कायम रहता हूँ। हां, कभी-कभी मैं रास्ते से थोड़ा भटक भी जाता हूँ पर दोबारा रास्ते पर आना भी मैंने सीख लिया है। ये सब आप किसी किताब से पढ़कर नहीं सीख सकते। इसे व्यवहार से ही जाना जा सकता है। अब मैं यह उम्मीद करता हूँ कि अपने बच्चों को मैं यह सब सिखा पाऊँगा।
जंक फ़ूड पेट पर भारी पड़ेगा – सिर्फ़ ठहरी हुई लाइफस्टाइल के कारण ही मैं मोटा नहीं हुआ। बाहर के तले हुए भोजन ने भी इसमें काफी योगदान दिया। हर कभी मैं बाहर पिज्जा, बर्गर, और इसी तरह की दूसरी चर्बीदार तली हुई चीज़ें खा लिया करता था। मैंने यह कभी नहीं सोचा कि इन चीज़ों से कोई समस्या हो सकती है। अपने स्वास्थ्य के बारे में तो हम तभी सोचना शुरू करते हैं जब हम कुछ प्रौढ़ होने लगते हैं। एक समय मेरी जींस बहुत टाइट होने लगी और कमर का नाप कई इंच बढ़ गया। उस दौरान पेट पर चढी चर्बी अभी भी पूरी तरह से नहीं निकली है। काश किसी ने मुझे उस समय ‘आज’ की तस्वीर दिखाई होती जब मैं जवाँ था और एक साँस में सोडे की बोतल ख़त्म कर दिया करता था।
धूम्रपान सिर्फ़ बेवकूफी है – धूम्रपान की शुरुआत मैंने कुछ बड़े होने के बाद ही की। क्यों की, यह बताना ज़रूरी नहीं है लेकिन मुझे हमेशा यह लगता था कि मैं इसे जब चाहे तब छोड़ सकता हूँ। ऐसा मुझे कई सालों तक लगता रहा जब एक दिन मैंने छोड़ने की कोशिश की लेकिन छोड़ नहीं पाया। पाँच असफल कोशिशों के बाद मुझे यह लगने लगा कि मेरी लत वाकई बहुत ताकतवर थी। आखिरकार १८ नवम्बर २००५ को मैंने धूम्रपान करना पूरी तरह बंद कर दिया लेकिन इसने मेरा कितना कुछ मुझसे छीन लिया।
रिटायरमेंट की तैयारी – यह बात और इससे पहले बताई गयी बातें बहुत आम प्रतीत होती हैं। आप यह न सोचें कि मुझे इस बात का पता उस समय नहीं था जब मैं १८ साल का था। मैं इसे बखूबी जानता था लेकिन मैंने इसके बारे में कभी नहीं सोचा। जब तक मैं ३० की उम्र पार नहीं कर गया तब तक मैंने रिटायर्मेंट प्लानिंग के बारे में कोई चिंता नहीं की। अब मेरा मन करता है कि उस १८ वर्षीय लियो को इस बात के लिए एक चांटा जड़ दिया जाए। खैर। अब तक तो मैं काफी पैसा जमा कर चुका होता! मैंने भी रिटायर्मेंट प्लान बनाया था लेकिन मैंने तीन बार जॉब्स बदले और अपना जमा किया पैसा यूँही उड़ा दिया।
जो कुछ भी आपको कठिन लगता है वह आपके काम का होता है – यह ऐसी बात है जो ज्यादा काम की नहीं लगती। एक समय था जब मुझे काम मुश्किल लगता था। मैंने काम किया ज़रूर, लेकिन बेमन किया। अगर काम न करने की छूट होती तो मैं नहीं करता। परिश्रम ने मुझे बहुत तनाव में डाला। मैं कभी भी परिश्रम नहीं करना चाहता था। लेकिन मुझे मिलने वाला सबक यह है कि जितना भी परिश्रम मैंने अनजाने में किया उसने मुझे सदैव दूर तक लाभ पहुँचाया। आज भी मैं उन तनाव के दिनों में कठोर परिश्रम करते समय सीखे हुए हुनर और आदतों की कमाई खा रहा हूँ। उनके कारण मैं आज वह बन पाया हूँ जो मैं आज हूँ। इसके लिए मैं युवक लियो का हमेशा अहसानमंद रहूँगा।
बिना जांचे-परखे कोई पुराना सामान नहीं खरीदें – मैंने एक पुरानी वैन खरीदी थी। मुझे यह लग रहा था की मैं बहुत स्मार्ट था और मैंने उसे ठीक से जांचा-परखा नहीं। उस खटारा वैन के इंजन में अपार समस्याएँ थीं। उसका एक दरवाजा तो चलते समय ही गिर गया। खींचते समय दरवाजे का हैंडल टूट गया। कांच भी कहीं टपक गया। टायर बिगड़ते गए, खिड़कियाँ जाम पडी थीं, और एक दिन रेडियेटर भी फट गया। अभी भी मैं ढेरों समस्याएँ गिना सकता हूँ। वह मेरे द्वारा ख़रीदी गयी सबसे घटिया चीज़ थी। यह तो मैं अभी भी मानता हूँ की पुरानी चीज़ों को खरीदने में समझदारी है लेकिन उन्हें देख-परख के ही खरीदना चाहिए।
बेचने से पहले ही सारी बातें तय कर लेने में ही भलाई है – अपने दोस्त के दोस्त को मैंने अपनी एक कार बेची। मुझे यकीन था कि बगैर लिखा-पढी के ही वह मुझे मेरी माँगी हुई उचित कीमत अदा कर देगा। यह मेरी बेवकूफी थी। अभी भी मुझे वह आदमी कभी-कभी सड़क पर दिख जाता है लेकिन अब मुझमें इतनी ताक़त नहीं है कि मैं अपना पैसा निकलवाने के लिए उसका पीछा करूँ।
कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, अपना शौक पूरा करो – मैं हमेशा से ही लेखक बनना चाहता था। मैं चाहता था कि एक दिन लोग मेरी लिखी किताबें पढ़ें लेकिन मेरे पास लिखने का समय ही नहीं था। पूर्ण-कालिक नौकरी और पारिवारिक जिम्मेदारियां होने के कारण मुझे लिखने का वक़्त नहीं मिल पाता था। अब मैं यह जान गया हूँ कि वक़्त तो निकालना पड़ता है। दूसरी चीज़ों से ख़ुद को थोड़ा सा काटकर इतना समय तो निकला ही जा सकता है जिसमें हम वो कर सकें जो हमारा दिल करना चाहता है। मैंने अपनी ख्वाहिश के आड़े में बहुत सी चीज़ों को आने दिया। यह बात मैंने १५ साल पहले जान ली होती तो आजतक मैं १५ किताबें लिख चुका होता। सारी किताबें तो शानदार नहीं होतीं लेकिन कुछेक तो होतीं!
जिसकी खातिर इतना तनाव उठा रहे हैं वो बात हमेशा नहीं रहेगी – जब हमारा बुरा वक़्त चल रहा होता है तब हमें पूरी दुनिया बुरी लगती है। मुझे समयसीमा में काम करने होते थे, कई प्रोजेक्ट एक साथ चल रहे थे, लोग मेरे सर पर सवार रहते थे और मेरे तनाव का स्तर खतरे के निशान के पार जा चुका था। मुझे मेहनत करने का कोई पछतावा नहीं है (जैसा मैंने ऊपर कहा) लेकिन यदि मुझे इस बात का पता होता कि इतनी जद्दोजहद और माथापच्ची १५ साल तो क्या अगले ५ साल बाद बेमानी हो जायेगी तो मैं अपने को उसमें नहीं खपाता। परिप्रेक्ष्य हमें बहुत कुछ सिखा देता है।
काम के दौरान बनने वाले दोस्त काम से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं – मैंने कई जगहों में काम किया और बहुत सारी चीज़ें खरीदीं और इसी प्रक्रिया में बहुत सारे दोस्त भी बनाये। काश मैं यहाँ-वहां की बातों में समय लगाने के बजाय अपने दोस्तों और परिजनों के साथ बेहतर वक़्त गुज़र पाता!
टी वी देखना समय की बहुत बड़ी बर्बादी है – मुझे लगता है कि साल भर में हम कई महीने टी वी देख चुके होते हैं। रियालिटी टी वी देखने में क्या तुक है जब रियालिटी हाथ से फिसली जा रही हो? खोया हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता – इसे टी वी देखने में बरबाद न करें।
बच्चे समय से पहले बड़े हो जायेंगे। समय नष्ट न करें – बच्चे देखते-देखते बड़े हो जाते हैं। मेरी बड़ी बेटी क्लो कुछ ही दिनों में १५ साल की हो जायेगी। तीन साल बाद वह वयस्क हो जायेगी और फ़िर मुझसे दूर चली जायेगी। तीन साल! ऐसा लगता है कि यह वक़्त तो पलक झपकते गुज़र जाएगा। मेरा मन करता हूँ कि १५ साल पहले जाकर ख़ुद को झिड़क दूँ – दफ्तर में रात-दिन लगे रहना छोडो! टी वी देखना छोडो! अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करो! – पिछले १५ साल किती तेजी से गुज़र गए, पता ही न चला।
दुनिया के दर्द बिसराकर अपनी खुशी पर ध्यान दो – मेरे काम में और निजी ज़िंदगी में मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ जब मुझे लगने लगा कि मेरी दुनिया बस ख़त्म हो गयी। जब समस्याएँ सर पे सवार हो जाती थीं तो अच्छा खासा तमाशा बन जाता था। इस सबके कारण मैं कई बार अवसाद का शिकार हुआ। वह बहुत बुरा वक़्त था। सच तो यह था कि हर समस्या मेरे भीतर थी और मैं सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर खुश रह सकता था। मैं यह सोचकर खुश हो सकता था कि मेरे पास कितना कुछ है जो औरों के पास नहीं है। अपने सारे दुःख-दर्द मैं ताक पर रख सकता था।
ब्लॉग्स केवल निजी पसंद-नापसंद का रोजनामचा नहीं है – पहली बार मैंने ब्लॉग्स ७-८ साल पहले पढ़े। पहली नज़र में मुझे उनमें कुछ ख़ास रूचि का नहीं लगा – बस कुछ लोगों के निजी विचार और उनकी पसंद-नापसंद! उनको पढ़के मुझे भला क्या मिलता!? मुझे अपनी बातों को दुनिया के साथ बांटकर क्या मिलेगा? मैं इन्टरनेट पर बहुत समय बिताता था और एक वेबसाईट से दूसरी वेबसाईट पर जाता रहता था लेकिन ब्लॉग्स से हमेशा कन्नी काट जाता था। पिछले ३-४ सालों के भीतर ही मुझे लगने लगा कि ब्लॉग्स बेहतर पढने-लिखने और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने और जानकारी बांटने का बेहतरीन माध्यम हैं। ७-८ साल पहले ही यदि मैंने ब्लॉगिंग शुरू कर दी होती तो अब तक मैं काफी लाभ उठा चुका होता।
याददाश्त बहुत धोखा देती है – मेरी याददाश्त बहुत कमज़ोर है। मैं न सिर्फ़ हाल की बल्कि पुरानी बातें भी भूल जाता हूँ। अपने बच्चों से जुडी बहुत सारी बातें मुझे याद नहीं हैं क्योंकि मैंने उन्हें कहीं लिखकर नहीं रखा। मुझे ख़ुद से जुडी बहुत सारी बातें याद नहीं रहतीं। ऐसा लगता है जैसे स्मृतिपटल पर एक गहरी धुंध सी छाई हुई है। यदि मैंने ज़रूरी बातों को नोट कर लेने की आदत डाली होती तो मुझे इसका बहुत लाभ मिलता।
शराब बुरी चीज़ है – मैं इसके विस्तार में नहीं जाऊँगा। बस इतना कहना ही काफी होगा कि मुझे कई बुरे अनुभव हुए हैं। शराब और ऐसी ही कई दूसरी चीज़ों ने मुझे बस एक बात का ज्ञान करवाया है – शराब सिर्फ़ शैतान के काम की चीज़ है।
आप मैराथन दौड़ने का निश्चय कभी भी कर सकते हैं – इसे अपना लक्ष्य बना लीजिये – यह बहुत बड़ा पारितोषक है। स्कूल के समय से ही मैं मैराथन दौड़ना चाहता था। यह एक बहुत बड़ा सपना था जिसे साकार करने में मैंने सालों लगा दिए। मैराथन दौड़ने पर मुझे पता चला कि यह न सिर्फ़ सम्भव था बल्कि बहुत बड़ा पारितोषक भी था। काश मैंने दौड़ने की ट्रेनिंग उस समय शुरू कर दी होती जब मैं हल्का और तंदरुस्त था, मैं तब इसे काफी कम समय में पूरा कर लेता!
इतना पढने के बाद भी मेरी गलतियाँ दुहराएंगे तो पछतायेंगे – १८ वर्षीय लियो ने इस पोस्ट को पढ़के यही कहा होता – “अच्छी सलाह है।” और इसके बाद वह न चाहते हुए भी वही गलतियाँ दुहराता। मैं बुरा लड़का नहीं था लेकिन मैंने किसी की सलाह कभी नहीं मानी। मैं गलतियाँ करता गया और अपने मुताबिक ज़िंदगी जीता गया। मुझे इसका अफ़सोस नहीं है। मेरा हर अनुभव (शराब का भी) मुझे मेरी ज़िंदगी की उस राह पर ले आया है जिसपर आज मैं चल रहा हूँ। मुझे अपनी ज़िंदगी से प्यार है और मैं इसे किसी के भी साथ हरगिज नहीं बदलूँगा। दर्द, तनाव, तमाशा, मेहनत, परेशानियाँ, अवसाद, हैंगओवर, क़र्ज़, मोटापा – सलाह न मानने के इन नतीजों का पात्र था मैं।
http://hindizen.com/2009/03/17/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6-%E0%A4%AF%E0%A5%87-%E0%A5%A8%E0%A5%A6-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%9D%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%AA/
31 यह पोस्ट कैसी लगी?
शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011
सपने सच होंगे
कहीं किसी शहर में एक छोटा लड़का रहता था. उसके पिता एक अस्तबल में काम करते थे. लड़का रोजाना देखता था कि उसके पिता दिन-रात घोड़ों की सेवा में खटते रहते हैं जबकि घोड़ों के रैंच का मालिक आलीशान तरीके से ज़िंदगी बिताता है और खूब मान-सम्मान पाता है. यह सब देखकर लड़के ने यह सपना देखना शुरू कर दिया कि एक दिन उसका भी एक बहुत बड़ा रैंच होगा जिसमें सैंकड़ों बेहतरीन घोड़े पाले और प्रशिक्षित किये जायेंगे.
एक दिन लड़के के स्कूल में सभी विद्यार्थियों से यह निबंध लिखने के लिए कहा गया कि ‘वे बड़े होकर क्या बनना और करना चाहते हैं’. लड़के ने रात में जागकर बड़ी मेहनत करके खूब लंबा निबंध लिखा जिसमें उसने बताया कि वह बड़ा होकर घोड़ों के रैंच का मालिक बनेगा. उसने अपने सपने को पूरे विस्तार से लिखा और 200 एकड़ के रैंच की एक तस्वीर भी खींची जिसमें उसने सभी इमारतों, अस्तबलों, और रेसिंग ट्रैक की तस्वीर बनाई. उसने अपने लिए एक बहुत बड़े घर का खाका भी खींचा जिसे वह अपने रैंच में बनाना चाहता था.
लड़के ने उस निबंध में अपना दिल खोलकर रख दिया और अगले दिन शिक्षक को वह निबंध थमा दिया. तीन दिन बाद सभी विद्यार्थियों को अपनी कापियां वापस मिल गयीं. लड़के के निबंध का परिणाम बड़े से लाल शब्द से ‘फेल’ लिखा हुआ था. लड़का अपनी कॉपी लेकर शिक्षक से मिलने गया. उसने पूछा – “आपने मुझे फेल क्यो किया?” – शिक्षक ने कहा – “तुम्हारा सपना मनगढ़ंत है और इसके साकार होने की कोई संभावना नहीं है. घोड़ों के रैंच का मालिक बनने के लिए बहुत पैसों की जरुरत होती है. तुम्हारे पिता तो खुद एक साईस हैं और तुम लोगों के पास कुछ भी नहीं है. बेहतर होता यदि तुम कोई छोटा-मोटा काम करने के बारे में लिखते. मैं तुम्हें एक मौका और दे सकता हूँ. तुम इस निबंध को दोबारा लिख दो और कोई वास्तविक लक्ष्य बना लो तो मैं तुम्हारे ग्रेड पर दोबारा विचार कर सकता हूँ”.
वह लड़का घर चला गया और पूरी रात वह यह सब सोचकर सो न सका. बहुत विचार करने के बाद उसने शिक्षक को वही निबंध ज्यों-का-त्यों दे दिया और कहा – “आप अपने ‘फेल’ को कायम रखें और मैं अपने सपने को कायम रखूंगा”.
बीस साल बाद शिक्षक को एक घुड़दौड़ का एक अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला देखने का अवसर मिला. दौड़ ख़त्म हुई तो एक वयक्ति ने आकर शिक्षक को आदरपूर्वक अपना परिचय दिया. घुड़दौड़ की दुनिया में एक बड़ा नाम बनचुका यह वयक्ति वही छोटा लड़का था जिसने अपना सपना पूरा कर लिया था.
कहते हैं यह एक सच्ची कहानी है. होगी. न भी हो तो क्या! असल बात तो यह है कि हमें किसी को अपना सपना चुराने नहीं देना है और न ही किसी के सपने की अवहेलना करनी है. हमेशा अपने दिल की सुनना है, कहनेवाले कुछ भी कहते रहें. खुली आंखों से जो सपने देखा करते हैं उनके सपने पूरे होते हैं.
(A motivational/inspirational story on seeing dreams and making them real – in Hindi)
http://hindizen.com/2010/01/09/dreams-come-true/
एक दिन लड़के के स्कूल में सभी विद्यार्थियों से यह निबंध लिखने के लिए कहा गया कि ‘वे बड़े होकर क्या बनना और करना चाहते हैं’. लड़के ने रात में जागकर बड़ी मेहनत करके खूब लंबा निबंध लिखा जिसमें उसने बताया कि वह बड़ा होकर घोड़ों के रैंच का मालिक बनेगा. उसने अपने सपने को पूरे विस्तार से लिखा और 200 एकड़ के रैंच की एक तस्वीर भी खींची जिसमें उसने सभी इमारतों, अस्तबलों, और रेसिंग ट्रैक की तस्वीर बनाई. उसने अपने लिए एक बहुत बड़े घर का खाका भी खींचा जिसे वह अपने रैंच में बनाना चाहता था.
लड़के ने उस निबंध में अपना दिल खोलकर रख दिया और अगले दिन शिक्षक को वह निबंध थमा दिया. तीन दिन बाद सभी विद्यार्थियों को अपनी कापियां वापस मिल गयीं. लड़के के निबंध का परिणाम बड़े से लाल शब्द से ‘फेल’ लिखा हुआ था. लड़का अपनी कॉपी लेकर शिक्षक से मिलने गया. उसने पूछा – “आपने मुझे फेल क्यो किया?” – शिक्षक ने कहा – “तुम्हारा सपना मनगढ़ंत है और इसके साकार होने की कोई संभावना नहीं है. घोड़ों के रैंच का मालिक बनने के लिए बहुत पैसों की जरुरत होती है. तुम्हारे पिता तो खुद एक साईस हैं और तुम लोगों के पास कुछ भी नहीं है. बेहतर होता यदि तुम कोई छोटा-मोटा काम करने के बारे में लिखते. मैं तुम्हें एक मौका और दे सकता हूँ. तुम इस निबंध को दोबारा लिख दो और कोई वास्तविक लक्ष्य बना लो तो मैं तुम्हारे ग्रेड पर दोबारा विचार कर सकता हूँ”.
वह लड़का घर चला गया और पूरी रात वह यह सब सोचकर सो न सका. बहुत विचार करने के बाद उसने शिक्षक को वही निबंध ज्यों-का-त्यों दे दिया और कहा – “आप अपने ‘फेल’ को कायम रखें और मैं अपने सपने को कायम रखूंगा”.
बीस साल बाद शिक्षक को एक घुड़दौड़ का एक अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला देखने का अवसर मिला. दौड़ ख़त्म हुई तो एक वयक्ति ने आकर शिक्षक को आदरपूर्वक अपना परिचय दिया. घुड़दौड़ की दुनिया में एक बड़ा नाम बनचुका यह वयक्ति वही छोटा लड़का था जिसने अपना सपना पूरा कर लिया था.
कहते हैं यह एक सच्ची कहानी है. होगी. न भी हो तो क्या! असल बात तो यह है कि हमें किसी को अपना सपना चुराने नहीं देना है और न ही किसी के सपने की अवहेलना करनी है. हमेशा अपने दिल की सुनना है, कहनेवाले कुछ भी कहते रहें. खुली आंखों से जो सपने देखा करते हैं उनके सपने पूरे होते हैं.
(A motivational/inspirational story on seeing dreams and making them real – in Hindi)
http://hindizen.com/2010/01/09/dreams-come-true/
शुक्रवार, 18 मार्च 2011
बुधवार, 2 मार्च 2011
15 सबक
इस पोस्ट में ज़िंदगी के लिए ज़रूरी सबक दिए गए हैं जिसे मैंने प्रसिद्द ब्लॉग प्लगइन - आईडी (hindizen.com) से लिया है. इस तरह की पोस्टें हिंदीज़ेन पर पहले भी आ चुकी हैं पर हर पोस्ट में कुछ-न-कुछ अलग तो होता ही है. वैसे भी, अच्छी बातें जितनी ज्यादा पढ़ने को मिलें उतना ही बेहतर. यदि उनपर अमल नहीं कर पायें तो मन पे कोई बोझ न रहे - बस एक हौसला और एक उम्मीद बनी रहे कि देरसबेर हमें नकारात्मकता से निकलना ही है ताकि हम भी कुछ बेहतर कर सकें, बेहतर बन सकें. ये हैं ज़िंदगी जीने के लिए ज़रूरी पंद्रह सबक:
तुम्हारे बारे में लोग कुछ भी कहते रहें, उससे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए. लोगों का क्या है, वे तुम्हारे सामने या फिर पीठे पीछे कुछ-न-कुछ कहते ही रहेंगे.
यदि तुम लोगों से सहृदयता से पेश आओगे तो वे तुम्हें अच्छाई से ज़रूर नवाजेंगे. यह बात 99% लोगों पर ठीक बैठती है.
कभी-कभी तुम्हारी सलाह और सुझाव सकारात्मक और प्रोत्साहक होने के बाद भी लोग तुम्हें सुनने के लिए तैयार नहीं होंगे. तुम्हें इस स्थिति को स्वीकार करना है और सामनेवाले के प्रतिरोध को दिल से नहीं लगाना है.
तुम्हारे सामने यह विकल्प है कि तुम किसी भी बात को सकारात्मक लो या नकारात्मक लो. तुम अपने इस अधिकार का सदैव उपयोग करो ताकि तुम्हारा जीवन खुशहाल रहे.
ऐसे लोग हमेशा मौजूद रहेंगे जो तुम्हें पीछे धकेलना चाहेंगे. ऐसा उनकी असुरक्षा की भावना के कारण है. वे यह नहीं चाहते कि वे ठहरे हुए पानी की तरह गंदला जाएँ और दूसरे लोग आगे निकल जाएँ.
आज, इस वक़्त, यही तुम्हारी ज़िंदगी है. तुम इसका जितना फायदा उठा सकते हो उठा लो. तुम अपने आसपास मौजूद लोगों का दिन खुशगवार बना सकते हो और ठान लो तो लाखों-करोड़ों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने की कोशिश भी कर सकते हो.
तुम अपनी राह के कंटकों और अवरोधों को नए नज़रिए से देखो. वे तुम्हारे लिए रुकने का संकेत नहीं हैं बल्कि तुम्हें यह बताते है कि तुम किसी चीज़ को कितनी शिद्दत से पाना चाहते हो.
तुम सदैव वह काम करो जिसे तुम करते आये हो, भले ही तुम्हें एक-जैसे परिणाम मिलें. यह कॉमन सेन्स है पर बहुत से लोग एक ही गति पर चलकर अलग-अलग मंजिल पर पहुँचने की उम्मीद करते हैं. ऐसे लोग बहुत कम लेकिन बहुत प्रसिद्द हैं और वे इसे पागलपन कहते हैं.
किसी से ईर्ष्या करने पर किसी और को नहीं वरन तुम्हें ही सबसे ज्यादा नुकसान होगा. अपने समय और ऊर्जा को किसी बेहतर काम में लगाओ.
यदि तुम्हें यात्रा में आनंद नहीं आ रहा है तो शायद तुम गलत लेन में चल रहे हो. पिछले चौराहे तक जाने में झिझको नहीं और दोबारा कोशिश करो. गलत राह पर दूर तक बढ़ते चले जाने से बेहतर यही है.
अपने अहंकार को कहीं आड़े नहीं आने दो. जिन चीजों को तुम पसंद करो उन्हें लपक लो और जिन लोगों से प्रेम करो उन्हें यह जताओ. अवसर चूकने के लिए यह जीवन बहुत छोटा है. यदि लोग इस बात के लिए तुम्हारे आलोचना करें तो... यह उनकी समस्या है, तुम्हारी नहीं.
पुरानी कहावत है कि जिससे तुम पिंड छुडाना चाहते हो वही तुम्हारे गले पड़ता है. अतीत और भविष्य के सारे पछतावों से छुटकारा पाने के लिए यह ज़रूरी है कि तुम किसी से भी एक सीमा से अधिक न बंधो और स्वयं को शनैः-शनैः मुक्त करते जाओ. हर किसी को सब कुछ नहीं मिलता.
तुम्हारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता हो उसपर पैनी निगाह रखो. अपनी भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को सीमायें नहीं लांघने दो. तुम्हारी जागरूकता ही बदलते वक़्त उतार-चढ़ाव के साथ तुम्हें संयत रख सकेगी.
तुम्हारी समस्या जैसी भी हो, यह बहुत संभव है कि दूसरों के जीवन में भी वैसी ही समस्या आई हो और उन्होंने इसका कोई हल निकाल लिया हो. अपने मन को दिलासा दो कि तुम अकेले नहीं हो और तुम्हारी दिक्कतों का भी कोई-न-कोई हल कहीं ज़रूर होगा.
हर उस बात पर सवाल उठाओ जो तुम कहीं भी पढ़ते या सुनते हो, यहाँ तक कि इन पंद्रह बिन्दुओं पर भी. महत्वपूर्ण विचारों को हम बहुधा इस लिए नहीं समझ पाते क्योंकि हम उनमें छुपे हुए सत्य को देख ही नहीं पाते हैं.
तुम्हारे बारे में लोग कुछ भी कहते रहें, उससे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए. लोगों का क्या है, वे तुम्हारे सामने या फिर पीठे पीछे कुछ-न-कुछ कहते ही रहेंगे.
यदि तुम लोगों से सहृदयता से पेश आओगे तो वे तुम्हें अच्छाई से ज़रूर नवाजेंगे. यह बात 99% लोगों पर ठीक बैठती है.
कभी-कभी तुम्हारी सलाह और सुझाव सकारात्मक और प्रोत्साहक होने के बाद भी लोग तुम्हें सुनने के लिए तैयार नहीं होंगे. तुम्हें इस स्थिति को स्वीकार करना है और सामनेवाले के प्रतिरोध को दिल से नहीं लगाना है.
तुम्हारे सामने यह विकल्प है कि तुम किसी भी बात को सकारात्मक लो या नकारात्मक लो. तुम अपने इस अधिकार का सदैव उपयोग करो ताकि तुम्हारा जीवन खुशहाल रहे.
ऐसे लोग हमेशा मौजूद रहेंगे जो तुम्हें पीछे धकेलना चाहेंगे. ऐसा उनकी असुरक्षा की भावना के कारण है. वे यह नहीं चाहते कि वे ठहरे हुए पानी की तरह गंदला जाएँ और दूसरे लोग आगे निकल जाएँ.
आज, इस वक़्त, यही तुम्हारी ज़िंदगी है. तुम इसका जितना फायदा उठा सकते हो उठा लो. तुम अपने आसपास मौजूद लोगों का दिन खुशगवार बना सकते हो और ठान लो तो लाखों-करोड़ों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने की कोशिश भी कर सकते हो.
तुम अपनी राह के कंटकों और अवरोधों को नए नज़रिए से देखो. वे तुम्हारे लिए रुकने का संकेत नहीं हैं बल्कि तुम्हें यह बताते है कि तुम किसी चीज़ को कितनी शिद्दत से पाना चाहते हो.
तुम सदैव वह काम करो जिसे तुम करते आये हो, भले ही तुम्हें एक-जैसे परिणाम मिलें. यह कॉमन सेन्स है पर बहुत से लोग एक ही गति पर चलकर अलग-अलग मंजिल पर पहुँचने की उम्मीद करते हैं. ऐसे लोग बहुत कम लेकिन बहुत प्रसिद्द हैं और वे इसे पागलपन कहते हैं.
किसी से ईर्ष्या करने पर किसी और को नहीं वरन तुम्हें ही सबसे ज्यादा नुकसान होगा. अपने समय और ऊर्जा को किसी बेहतर काम में लगाओ.
यदि तुम्हें यात्रा में आनंद नहीं आ रहा है तो शायद तुम गलत लेन में चल रहे हो. पिछले चौराहे तक जाने में झिझको नहीं और दोबारा कोशिश करो. गलत राह पर दूर तक बढ़ते चले जाने से बेहतर यही है.
अपने अहंकार को कहीं आड़े नहीं आने दो. जिन चीजों को तुम पसंद करो उन्हें लपक लो और जिन लोगों से प्रेम करो उन्हें यह जताओ. अवसर चूकने के लिए यह जीवन बहुत छोटा है. यदि लोग इस बात के लिए तुम्हारे आलोचना करें तो... यह उनकी समस्या है, तुम्हारी नहीं.
पुरानी कहावत है कि जिससे तुम पिंड छुडाना चाहते हो वही तुम्हारे गले पड़ता है. अतीत और भविष्य के सारे पछतावों से छुटकारा पाने के लिए यह ज़रूरी है कि तुम किसी से भी एक सीमा से अधिक न बंधो और स्वयं को शनैः-शनैः मुक्त करते जाओ. हर किसी को सब कुछ नहीं मिलता.
तुम्हारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता हो उसपर पैनी निगाह रखो. अपनी भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को सीमायें नहीं लांघने दो. तुम्हारी जागरूकता ही बदलते वक़्त उतार-चढ़ाव के साथ तुम्हें संयत रख सकेगी.
तुम्हारी समस्या जैसी भी हो, यह बहुत संभव है कि दूसरों के जीवन में भी वैसी ही समस्या आई हो और उन्होंने इसका कोई हल निकाल लिया हो. अपने मन को दिलासा दो कि तुम अकेले नहीं हो और तुम्हारी दिक्कतों का भी कोई-न-कोई हल कहीं ज़रूर होगा.
हर उस बात पर सवाल उठाओ जो तुम कहीं भी पढ़ते या सुनते हो, यहाँ तक कि इन पंद्रह बिन्दुओं पर भी. महत्वपूर्ण विचारों को हम बहुधा इस लिए नहीं समझ पाते क्योंकि हम उनमें छुपे हुए सत्य को देख ही नहीं पाते हैं.
Shakespeare.....
"Never Play With The Feelings Of Others
Because You May Win The Game
But The Risk Is That You Will Surely Lose
The Person For A Life Time".
Napoleon........
"The world suffers a lot. Not because of
the violence of bad people,
But because of the silence of good people!"
Einstein.........
"I am thankful to all those who said NO to me
Its because of them I did it myself.."
Abraham Lincoln.........
"If friendship is your weakest point then
you are the strongest person in the world"
Shakespeare..........
"Laughing Faces Do Not Mean That There Is
Absence Of Sorrow!
But It Means That They Have The Ability To
Deal With It".
Hitler.....
"When You Are In The Light, Everything
Follows You,
But When You Enter Into The Dark, Even
Your Own Shadow Doesn't Follow You."
Shakespeare.............
"Coin Always Makes Sound But The Currency
Notes Are Always Silent. So When Your Value Increases Keep
Yourself Calm and Silent"
Dr Abdul Kalaam........
"It Is Very Easy To Defeat Someone, But It
Is Very Hard To Win Someone.....
"Never Play With The Feelings Of Others
Because You May Win The Game
But The Risk Is That You Will Surely Lose
The Person For A Life Time".
Napoleon........
"The world suffers a lot. Not because of
the violence of bad people,
But because of the silence of good people!"
Einstein.........
"I am thankful to all those who said NO to me
Its because of them I did it myself.."
Abraham Lincoln.........
"If friendship is your weakest point then
you are the strongest person in the world"
Shakespeare..........
"Laughing Faces Do Not Mean That There Is
Absence Of Sorrow!
But It Means That They Have The Ability To
Deal With It".
Hitler.....
"When You Are In The Light, Everything
Follows You,
But When You Enter Into The Dark, Even
Your Own Shadow Doesn't Follow You."
Shakespeare.............
"Coin Always Makes Sound But The Currency
Notes Are Always Silent. So When Your Value Increases Keep
Yourself Calm and Silent"
Dr Abdul Kalaam........
"It Is Very Easy To Defeat Someone, But It
Is Very Hard To Win Someone.....
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