गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

रावण के जीवन की वो बातें जो अधिकतर लोग नहीं जानते....

 दशहरा पर्व राम की विजय और रावण की हार का दिन है। दस सिर और नाभि में अमृत कलश होने के बाद भी रावण पराजित हुआ। बुराई का प्रतीक माने जाने वाले रावण में कई बुरी आदतें थी, जो उसके लिए विनाश का कारण बनी। साथ ही कुछ ऐसे गुण भी थे जो उसे महान विद्वान बनाते थे।





रावण जितना दुष्ट था, उसमें उतनी खुबियां भी थीं, शायद इसीलिए कई बुराइयों के बाद भी रावण को महाविद्वान और प्रकांड पंडित माना जाता था। रावण से जुड़ी कई रोचक बातें हैं, जो आम कहानियों में सुनने को नहीं मिलती। विभिन्न ग्रंथों में रावण को लेकर कई बातें लिखी गई हैं। फिर भी रावण से जुड़ी कुछ रोचक बातें हैं, जो कई लोगों को अभी भी नहीं पता है।





आज हम जानते हैं कि किन बुराइयों के कारण रावण का पतन हुआ। किन अच्छाइयों के कारण उसे विद्वान माना जाता है।

महिलाओं के प्रति दुर्भावना - रावण के मन में महिलाओं के प्रति हमेशा दुर्भावना रही। वो उन्हें सिर्फ उपभोग की वस्तु मानता था। जिसके कारण उसे रंभा और सीता सहित कई महिलाओं के शाप भी लगे, जो उसके लिए विनाशकारी बने। भगवान महिलाओं का अपमान करने वालों को कभी माफ नहीं करता क्योंकि दुनिया में जो पहली पांच संतानें पैदा हुई थीं, उनमें से पहली तीन संतानें लड़कियां ही थीं। भगवान ने महिलाओं को पुरुषों से आगे रखा है। रावण अपनी शक्ति के अहंकार में ये बात समझ नहीं पाया।
सिर्फ तारीफ सुनना - रावण की दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि उसे अपनी बुराई पसंद नहीं थीष गलती करने पर भी वह दूसरों के मुंह से अपने लिए सिर्फ तारीफ ही सुनना चाहता था। जिसने भी उसे उसकी गलतियां दिखाईं, उसने उन्हें अपने से दूर कर दिया, जैसे भाई विभीषण, नाना माल्यवंत, मंत्री शुक आदि। वो हमेशा चापलूसों से घिरा रहता था। 
शराब से दुर्गंध मिटाना - रावण शराब से बदबू भी मिटाना चाहता था। ताकि संसार में शराब का सेवन करके लोग अधर्म को बढ़ा सके।
स्वर्ग तक सीढ़ियां बनाना - भगवान की सत्ता को चुनौती देने के लिए रावण स्वर्ग तक सीढ़ियां बनाना चाहता था ताकि जो लोग मोक्ष या स्वर्ग पाने के लिए भगवान को पूजते हैं वे पूजा बंद कर रावण को ही भगवान माने। 
अपने बल पर अति विश्वास - रावण को अपनी शक्ति पर इतना भरोसा था कि वो बिना सोचे-समझे किसी को भी युद्ध के लिए ललकार देता था। जिससे कई बार उसे हार का मुंह देखना पड़ा। रावण युद्ध में भगवान शिव, सहस्त्रबाहु अर्जुन, बालि और राजा बलि से हारा। जिनसे रावण बिना सोचे समझे युद्ध करने पहुंच गया।
रथ में गधे होते थे - वाल्मीकि रामायण के मुताबिक सभी योद्धाओं के रथ में अच्छी नस्ल के घोड़े होते थे लेकिन रावण के रथ में गधे हुआ करते थे। वे बहुत तेजी से चलते थे। 
खून का रंग सफेद हो जाए - रावण चाहता था कि मानव रक्त का रंग लाल से सफेद हो जाए। जब रावण विश्वविजयी यात्रा पर निकला था तो उसने सैकड़ों युद्ध किए। करोड़ों लोगों का खून बहाया। सारी नदियां और सरोवर खून से लाल हो गए थे। प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा था और सारे देवता इसके लिए रावण को दोषी मानते थे। तो उसने विचार किया कि रक्त का रंग लाल से सफेद हो जाए तो किसी को भी पता नहीं चलेगा कि उसने कितना रक्त बहाया है वो पानी में मिलकर पानी जैसा हो जाएगा।
काला रंग गोरा करना - रावण खुद काला था इसलिए वो चाहता था कि मानव प्रजाति में जितने भी लोगों का रंग काला है वे गौरे हो जाएं, जिससे कोई भी महिला उनका अपमान ना कर सके। 
संगीत और विद्वान - रावण संगीत का बहुत बड़ा जानकार था, सरस्वती के हाथ में जो वीणा है उसका अविष्कार भी रावण ने किया था। रावण ज्योतिषी तो था ही तंत्र, मंत्र और आयुर्वेद का भी विशेषज्ञ था।
सोने में सुगंध डालना - रावण चाहता था कि सोने (स्वर्ण) में खुश्बु होनी चाहिए। रावण दुनियाभर के स्वर्ण पर खुद कब्जा जमाना चाहता था। सोना खोजने में कोई परेशानी नहीं हो इसलिए वो उसमें सुगंध डालना चाहता था। 
समुद्र के पानी को मीठा बनाना - रावण सातों समुद्रों के पानी को मीठा बनाना चाहता था।
संसार से हरि पूजा को निर्मूल करना - रावण का इरादा था कि वो संसार से भगवान की पूजा की परंपरा को ही समाप्त कर दे ताकि फिर दुनिया में सिर्फ उसकी ही पूजा हो।
वीर योद्धा भी था रावण - रावण जब भी युद्ध करने निकलता तो खुद बहुत आगे चलता था और बाकी सेना पीछे होती थी। उसने कई युद्ध तो अकेले ही जीते थे। रावण ने यमपुरी जाकर यमराज को भी युद्ध में हरा दिया था और नर्क की सजा भुगत रही जीवात्माओं को मुक्त कराकर अपनी सेना में शामिल किया था। 
ऐसा था रावण का वैभव - रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि रावण के दरबार में सारे देवता और दिग्पाल हाथ जोड़कर खड़े रहते थे। रावण के महल में जो अशोक वाटिका थी उसमें अशोक के एक लाख से ज्यादा वृक्ष थे। इस वाटिका में सिवाय रावण के किसी अन्य पुरुष को जाने की अनुमति नहीं थी।
कैसे-कैसे हारा रावण - बालि ने रावण को अपनी बाजू में दबा कर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी। बालि इतना ताकतवर था कि वो रोज सवेरे चार समुद्रों की परिक्रमा कर सूर्य को अर्घ्य देता था। रावण जब पाताल के राजा बलि से युद्ध करने पहुंचा तो बलि के महल में खेल रहे बच्चों ने ही उसे पकड़कर अस्तबल में घोड़ों के साथ बांध दिया था। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने अपनी हजार हाथों से नर्मदा के बहाव को रोक कर पानी इकट्ठा किया और उस पानी में रावण को सेना सहित बहा दिया। बाद में जब रावण युद्ध करने पहुंचा तो सहस्र्बाहु ने उसे बंदी बनाकर जेल में डाल दिया। रावण ने शिव से युद्ध में हारकर उन्हें अपना गुरु बनाया था। 

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मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012





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हक और हिम्मत की प्रतीक बनी ‘मलाला यूसुफजई’



तालिबान के खिलाफ आवाज उठाकर 14वर्षीय पाकिस्‍तानी बालिका मलाला यूसुफजई आज हक और हिम्मित की मिसाल बन गई है। लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज उठाकर शांति कार्यकर्ता मलाला ने सिर्फ दहशतगर्दों के खिलाफ बड़ी आवाज बनी बल्कि उसके प्रयासों ने अंधियारे के बीच उम्मीद की एक किरण जगा दी है। यही नहीं, उसकी बहादुरी ने पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया को आतंकवाद के खतरे के खिलाफ नए सिरे से एकजुट होने की प्रेरणा दी है।

बीते दिनों तालिबानियों ने मलाला के सिर में गोली मारकर उसकी जान लेने की कोशिश की। उसकी सलामती के लिए दुनिया भर में करोड़ों हाथ दुआ में उठने लगे हैं। इस जघन्य घटना से तालिबानियों की बरबस खींझ का पता चलता है, जो जाहिर तौर पर लड़कियों और महिलाओं में शिक्षा और शांति की अलख नहीं जलने देना चाहते।

तालिबानियों के इस जघन्य कारनामे की घोर निंदा दुनिया भर में हो रही है। दरकार है इससे सबक लेने और इसके खिलाफ उठ खड़े होने की। जिसकी बानगी बीते कुछ दिनों के भीतर पाकिस्तान की सड़कों पर भी दिखी है। महिलाएं, बच्चे, छात्राएं, बुजुर्ग सभी मलाला के समर्थन में उतर गए और तालिबान के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे। यूं कहें कि हमले की इस घटना ने एक ‘क्रांति’ को जन्म दे दिया है, जो आने वाले समय में न सिर्फ पाकिस्तानी समाज बल्कि अन्य मुल्कों में भी एक नजीर बनेगी।

आज पाकिस्तान में स्कूली लड़कियां सड़कों पर उतरकर ‘मैं मलाला हूं’ के नारे लगा रही हैं। वहीं, मुंबई में भी मलाला के समर्थन में छात्राएं सड़क पर उतर गईं। विदेशों में भी मलाला के समर्थन में आवाजें बुलंद होने लगी हैं। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन ने तो दुनिया भर के लोगों से अपील की कि हर किसी को मलाला को अपनी बेटी समझना चाहिए।

मासूम मलाला ने कम उम्र में ही शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि आज हर पाकिस्तानी के दिलों में रच बस गई है। कभी किसी ने कल्‍पना नहीं की होगी कि इतनी कम उम्र में कोई बच्ची शिक्षा के प्रति इतनी संजीदा होगी। छोटे स्तर पर ही सही, पर वह अपने मुहिम में इस कदर जुटी है कि समाज और आसपास की कोई भी लड़की शिक्षा से अछूती न रहे। वह इसमें कामयाब भी हो रही थी, पर दहशतगर्दों को यह बात नागवार गुजरी। पर इसके उलट न सिर्फ पाकिस्तान और इस्ला‍मी समाज बल्कि दुनिया भर के सामने इस मासूल बाला ने एक दुर्लभ उदाहरण पेश किया।

मलाला के समर्थन में सोशल साइटों पर दुनिया भर में लाखों लोग समर्थन में उतर आए हैं। हालांकि पाकिस्तान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो रोज तालिबान और उसके जुल्मों के खिलाफ लड़ रहे हैं। लेकिन मलाला की इस ‘पाक’ मुहिम ने अब दुनिया को तालिबान के खिलाफ लड़ाई छेड़ने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

संभवत: इसी का असर है कि मलाला के साथ तालिबान के हमले में घायल हुई लड़कियां शाजिया और कायनात ने आगे भी पढ़ाई जारी रखने का संकल्प लिया है। इन हमलों से घबराए बिना वह दोनों डाक्ट़र बनने के फैसले पर अडिग है और आगे हर कठिनाइयों के बावजूद शिक्षा जारी रख एक अभूतपूर्व संदेश देने को तैयार है। इन्हीं संकल्पों का असर है कि आज विदेशों से भी उनके लिए मदद की पेशकश होने लगी है। वहीं, घायल लड़कियों की मदद के लिए पाक सरकार का आगे आना एक सकारात्मक कदम है। इससे न सिर्फ जुल्म की शिकार लड़कियां बल्कि अन्य भी अपनी जिंदगी की बेहतरी के लिए कदम उठाने से नहीं हिचकेंगी क्योंकि इन कदमों से उनमें साहस का संचार होगा। पाक के हुक्मरानों का इनके समर्थन में उतरना भी काफी प्रशंसनीय है।

वहीं, तहरीक-ए-तालिबान का यह कहना कि मलाला पर हमला इसलिए किया गया क्योंकि वह ‘पश्चिमी’ विचारों और धर्म निरपेक्ष सरकार का समर्थन कर रही थी। पर इन तालिबानियों को कौन समझाए कि शिक्षा की ज्योति जगाने से पश्चिम के किन्‍हीं विचारों का समर्थन नहीं होता। मौजूदा हालात में यदि मलाला पर फिर हमला करने का दुस्साहस किया जाता है तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे।

दूसरी तरफ, किशोरी मलाला की हत्या के प्रयास को ‘गैर इस्लामी’ करार देना और सुन्नी मौलवियों का फतवा जारी करना यह दर्शाता है कि पाक के समाज में परिवर्तन की बयार बहने लगी है और वे जुल्मों के खिलाफ अब आवाज बुलंद करने लगे हैं। संभवत: यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार है कि धर्म गुरुओं ने किसी बालिका के हक में फतवा जारी कर ‘निन्दा दिवस’ मनाया और मलाला के प्रति एकजुटता दिखाई।

हालांकि मलाला के कई गुनहगार हत्थेा तो चढ़े हैं, लेकिन इन्हें यदि कठोर दंड नहीं दिया गया तो मलाला जैसी और कई मासूमों को भी ये निशाना बनाने से बाज नहीं आएंगे। मलाला पर हमले की घटना ने लोगों को तालिबान के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया है, जोकि एक सकारात्‍मक पहल है। बीते समय में पाकिस्तान में यह देखा गया है कि तालिबान जब भी इस तरह के घृणित अपराधों को अंजाम देता है तो उनके खिलाफ कस्बों तक में भावनाएं भड़कती हैं।

गम और गुस्से के माहौल के बीच इस तरह की क्रूर मानसिकता के समर्थक लोगों के खिलाफ पूर्ण लड़ाई की सख्त जरूरत है। इसे पूरी तरह कुचलना ही एकमात्र निदान है। हम सभी मलाला के अद्वितीय साहस को सलाम करते हैं।

http://zeenews.india.com/hindi/news/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%B2/%E0%A4%B9%E0%A4%95-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE/150426
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