बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

करुणा


एक परमधार्मिक बौद्ध महिला हर संभव प्रयास करती थी कि वह अपने मन, वचन, और कर्मों से किसी का भी अहित न कर दे. लेकिन जब कभी वह बाज़ार में समान खरीदने जाती, एक दुकानदार उससे कुछ अश्लील बातें करने लगता.

एक बारिशवाले दिन जब दुकानदार ने पुनः उससे अभद्रतापूर्वक बात की तो महिला आत्मनियंत्रण खो बैठी और उसने दुकानदार के सर पर छाते से प्रहार कर दिया.

इस घटना से ग्लानिवश, वह उसी दिन एक मठ में गयी और वहां प्रधान भिक्षु को सारा वृत्तान्त सुनाया.

“मैं बहुत दुखी हूँ” – महिला ने कहा – “आज पता नहीं कैसे मैं अपने मन पर नियंत्रण खो बैठी”.

“देखो” – भिक्षु ने कहा – “अपने मन में इस प्रकार ग्लानि का भाव रखना उचित नहीं है. जीवन में हमें एक-दूसरे को अपनी मन की भावनाएं बताने के लिए उनसे संवाद करना ही पड़ता है. और तुम इसमें कुछ कर भी नहीं सकतीं क्योंकि हर व्यक्ति का स्वभाव भिन्न होता है”.

“अब भविष्य में तुम यह करना कि अगली बार यदि वह कोई अभद्रता करे, तो तुम अपने ह्रदय में असीम करुणा एकत्र करना”.

“और पहले से भी अधिक जोर से उसे छाते से मारना, क्योंकि वह इसकी भाषा ही समझता है”.

(कहानी पाउलो कोएलो के ब्लॉग से)

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