शनिवार, 17 मार्च 2012

बृहस्पति और मोटापा

बृहस्पति आशावाद के प्रतीक हैं, गुरू हैं, ग्रह हैं तथा देवताओं के मुख्य सलाहकार हैं। वे उपदेशक हैं, प्रवाचक हैं तथा सन्मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं। वे विज्ञान हैं, दृष्टा हैं तथा उपाय बताते हैं जिनसे मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो। यदि गुरू अपने सम्पूर्ण अंश दे दें तो व्यक्ति महाज्ञानी हो जाता है।
मैंने बृहस्पति को लेकर जब परीक्षण करने शुरू किये तो ब़डे अजीब पैरामीटर्स मैंने तय किये यथा जब बृहस्पति नीच राशि में हों तब व्यक्ति की चर्बी कम होगी या अधिक होगी। मुझे यह देखकर ब़डा आश्चर्य हुआ कि जिन çस्त्रयों की कुंडलियों में बृहस्पति नीच राशि में हैं उनमें मोटापा अधिक बढ़ता है। जिनमें बृहस्पति अत्यन्त शुभ अंशों में हों उनमें भी ऎसा देखने को मिल सकता है। जो लोग बृहस्पति के लगन में जन्म लेते हैं उनमे भी वसा तत्व अधिक मिलेगा और मोटापे को रोक नहीं पायेंगे। जिन लोगों की धनु या मीन राशि है उनको भी कालान्तर में यह समस्या उत्पन्न होगी। बृहस्पति एक तरफ ज्ञान, विज्ञान व विद्वत्ता देते हैं, दूसरी तरफ इस तरह के कष्ट भी देते हैं। हम सब जानते हैं कि परिश्रम करने से या कसरत करने से मोटापा कम होता है अर्थात् बृहस्पति के अंश अधिक होने से कसरत करनी प़डती है यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है। आधुनिक गुरूओं ने कसरत को योगा बना दिया है। कसरत का फैशन उत्पन्न नहीं हुआ बल्कि योगा का फैशन हो गया है। टी.वी. के पर्दे पर भांति-भांति की बालाएं जब योगा प्रस्तुत करती हैं तो लोगों को यकीन हो जाता है कि इसे कर लेना चाहिए। महर्षि पातंजलि के मन पर क्या बीत रही होगी जब वे योगा के इस विचित्र प्रसार को देख रहे होंगे। अब योगा आश्रम से बाहर निकल कर बाजार में आ गया है और दुनिया की सबसे अधिक बिकाऊ वस्तुओं में से एक हो गया है। जितने अधिक रूपये जलेंगे उतनी ही अधिक चर्बी जलेगी। शरीर को कष्ट नहीं हो इसलिए यंत्र भी बिक रहे हैं परन्तु बृहस्पति देवता हैं कि कुछ खास कृपा ही नहीं करते। मैं बहुत ऑर्थोडॉक्स कहलाऊंगा यदि यह प्रस्ताव मैं करूं कि यदि बृहस्पति का पूजा-पाठ करेंगे तो अवश्य ही मोटापा घटाने के लौकिक उपाय सफल हो जायेंगे अन्यथा बार-बार व्यायाम शालाओं में जाना पडे़गा और खर्चे का मीटर भी बढे़गा।
मैंने जो बहुत मजेदार परीक्षण किया वह यह कि जन्मचक्र में बृहस्पति का गोचर प्रयोग करते हुऎ यह देखा कि बृहस्पति किस भाव पर दृष्टि डाल रहे हैं तथा वह भाव किस दिशा में प़डता है। उदाहरण के लिए बृहस्पति जन्म चक्र के तीसरे भाव में भ्रमण कर रहे हैं तथा सातवें भाव पर, नवें भाव पर व एकादश भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं तो इनमें से सातवां भाव पत्नी से सम्बन्धित हैं व उसकी भाव की दिशा पश्चिम है। बृहस्पति की अमृत दृष्टि है अत: वह सप्तम भाव पर शुभ प्रभाव डालते हुऎ पत्नी के जीवन में शुभ लायेंगे। पत्नी का पद बढे़गा, उसको सुख बढे़गा, उनके जेवर बनेंगे व साथ के साथ उनका स्वास्थ्य भी बढे़गा। इसका अर्थ यह निकला कि उनको भोजन भी अच्छा मिलेगा, दावतों में भी शामिल होंगे व पति का सानिध्य अधिक मिलेगा। जिन लोगों के तलाक की स्थितियां हैं उनके तलाक रूक जायेंगे परन्तु जिनके तलाक सम्बन्धित कार्यवाहियां सप्तम भाव पर बृहस्पति की दृष्टि से पूर्व ही हो चुकी हैं उनके पुनर्विवाह के योग बनेंगे। ठीक इसी समय आप पायेंगे कि मकान के पश्चिम दिशा में या तो निर्माण होंगे या निर्माण कराने जैसी परिस्थितियां नहीं हैं तो पश्चिम दिशा में स्थित शयन कक्षों में इन्टीरियर अर्थात आंतरिक सज्जा में परिवर्तन आयेगा। इन कक्षों में रहने वालों के जीवन स्तर में परिवर्तन आयेगा। उनके सुख में वृद्धि होगी और उसके परिणामस्वरूप उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा। यह परिस्थितियां तब तक रहेंगी जब तक बृहस्पति देवता की दृष्टि सप्तम भाव पर अर्थात पश्चिम दिशा पर है।बृहस्पति आशावाद के प्रतीक हैं, गुरू हैं, ग्रह हैं तथा देवताओं के मुख्य सलाहकार हैं। वे उपदेशक हैं, प्रवाचक हैं तथा सन्मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं। वे विज्ञान हैं, दृष्टा हैं तथा उपाय बताते हैं जिनसे मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो। यदि गुरू अपने सम्पूर्ण अंश दे दें तो व्यक्ति महाज्ञानी हो जाता है।
मैंने बृहस्पति को लेकर जब परीक्षण करने शुरू किये तो ब़डे अजीब पैरामीटर्स मैंने तय किये यथा जब बृहस्पति नीच राशि में हों तब व्यक्ति की चर्बी कम होगी या अधिक होगी। मुझे यह देखकर ब़डा आश्चर्य हुआ कि जिन çस्त्रयों की कुंडलियों में बृहस्पति नीच राशि में हैं उनमें मोटापा अधिक बढ़ता है। जिनमें बृहस्पति अत्यन्त शुभ अंशों में हों उनमें भी ऎसा देखने को मिल सकता है। जो लोग बृहस्पति के लगन में जन्म लेते हैं उनमे भी वसा तत्व अधिक मिलेगा और मोटापे को रोक नहीं पायेंगे। जिन लोगों की धनु या मीन राशि है उनको भी कालान्तर में यह समस्या उत्पन्न होगी। बृहस्पति एक तरफ ज्ञान, विज्ञान व विद्वत्ता देते हैं, दूसरी तरफ इस तरह के कष्ट भी देते हैं। हम सब जानते हैं कि परिश्रम करने से या कसरत करने से मोटापा कम होता है अर्थात् बृहस्पति के अंश अधिक होने से कसरत करनी प़डती है यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है। आधुनिक गुरूओं ने कसरत को योगा बना दिया है। कसरत का फैशन उत्पन्न नहीं हुआ बल्कि योगा का फैशन हो गया है। टी.वी. के पर्दे पर भांति-भांति की बालाएं जब योगा प्रस्तुत करती हैं तो लोगों को यकीन हो जाता है कि इसे कर लेना चाहिए। महर्षि पातंजलि के मन पर क्या बीत रही होगी जब वे योगा के इस विचित्र प्रसार को देख रहे होंगे। अब योगा आश्रम से बाहर निकल कर बाजार में आ गया है और दुनिया की सबसे अधिक बिकाऊ वस्तुओं में से एक हो गया है। जितने अधिक रूपये जलेंगे उतनी ही अधिक चर्बी जलेगी। शरीर को कष्ट नहीं हो इसलिए यंत्र भी बिक रहे हैं परन्तु बृहस्पति देवता हैं कि कुछ खास कृपा ही नहीं करते। मैं बहुत ऑर्थोडॉक्स कहलाऊंगा यदि यह प्रस्ताव मैं करूं कि यदि बृहस्पति का पूजा-पाठ करेंगे तो अवश्य ही मोटापा घटाने के लौकिक उपाय सफल हो जायेंगे अन्यथा बार-बार व्यायाम शालाओं में जाना पडे़गा और खर्चे का मीटर भी बढे़गा।
मैंने जो बहुत मजेदार परीक्षण किया वह यह कि जन्मचक्र में बृहस्पति का गोचर प्रयोग करते हुऎ यह देखा कि बृहस्पति किस भाव पर दृष्टि डाल रहे हैं तथा वह भाव किस दिशा में प़डता है। उदाहरण के लिए बृहस्पति जन्म चक्र के तीसरे भाव में भ्रमण कर रहे हैं तथा सातवें भाव पर, नवें भाव पर व एकादश भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं तो इनमें से सातवां भाव पत्नी से सम्बन्धित हैं व उसकी भाव की दिशा पश्चिम है। बृहस्पति की अमृत दृष्टि है अत: वह सप्तम भाव पर शुभ प्रभाव डालते हुऎ पत्नी के जीवन में शुभ लायेंगे। पत्नी का पद बढे़गा, उसको सुख बढे़गा, उनके जेवर बनेंगे व साथ के साथ उनका स्वास्थ्य भी बढे़गा। इसका अर्थ यह निकला कि उनको भोजन भी अच्छा मिलेगा, दावतों में भी शामिल होंगे व पति का सानिध्य अधिक मिलेगा। जिन लोगों के तलाक की स्थितियां हैं उनके तलाक रूक जायेंगे परन्तु जिनके तलाक सम्बन्धित कार्यवाहियां सप्तम भाव पर बृहस्पति की दृष्टि से पूर्व ही हो चुकी हैं उनके पुनर्विवाह के योग बनेंगे। ठीक इसी समय आप पायेंगे कि मकान के पश्चिम दिशा में या तो निर्माण होंगे या निर्माण कराने जैसी परिस्थितियां नहीं हैं तो पश्चिम दिशा में स्थित शयन कक्षों में इन्टीरियर अर्थात आंतरिक सज्जा में परिवर्तन आयेगा। इन कक्षों में रहने वालों के जीवन स्तर में परिवर्तन आयेगा। उनके सुख में वृद्धि होगी और उसके परिणामस्वरूप उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा। यह परिस्थितियां तब तक रहेंगी जब तक बृहस्पति देवता की दृष्टि सप्तम भाव पर अर्थात पश्चिम दिशा पर है।
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