मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

हक और हिम्मत की प्रतीक बनी ‘मलाला यूसुफजई’



तालिबान के खिलाफ आवाज उठाकर 14वर्षीय पाकिस्‍तानी बालिका मलाला यूसुफजई आज हक और हिम्मित की मिसाल बन गई है। लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज उठाकर शांति कार्यकर्ता मलाला ने सिर्फ दहशतगर्दों के खिलाफ बड़ी आवाज बनी बल्कि उसके प्रयासों ने अंधियारे के बीच उम्मीद की एक किरण जगा दी है। यही नहीं, उसकी बहादुरी ने पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया को आतंकवाद के खतरे के खिलाफ नए सिरे से एकजुट होने की प्रेरणा दी है।

बीते दिनों तालिबानियों ने मलाला के सिर में गोली मारकर उसकी जान लेने की कोशिश की। उसकी सलामती के लिए दुनिया भर में करोड़ों हाथ दुआ में उठने लगे हैं। इस जघन्य घटना से तालिबानियों की बरबस खींझ का पता चलता है, जो जाहिर तौर पर लड़कियों और महिलाओं में शिक्षा और शांति की अलख नहीं जलने देना चाहते।

तालिबानियों के इस जघन्य कारनामे की घोर निंदा दुनिया भर में हो रही है। दरकार है इससे सबक लेने और इसके खिलाफ उठ खड़े होने की। जिसकी बानगी बीते कुछ दिनों के भीतर पाकिस्तान की सड़कों पर भी दिखी है। महिलाएं, बच्चे, छात्राएं, बुजुर्ग सभी मलाला के समर्थन में उतर गए और तालिबान के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे। यूं कहें कि हमले की इस घटना ने एक ‘क्रांति’ को जन्म दे दिया है, जो आने वाले समय में न सिर्फ पाकिस्तानी समाज बल्कि अन्य मुल्कों में भी एक नजीर बनेगी।

आज पाकिस्तान में स्कूली लड़कियां सड़कों पर उतरकर ‘मैं मलाला हूं’ के नारे लगा रही हैं। वहीं, मुंबई में भी मलाला के समर्थन में छात्राएं सड़क पर उतर गईं। विदेशों में भी मलाला के समर्थन में आवाजें बुलंद होने लगी हैं। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन ने तो दुनिया भर के लोगों से अपील की कि हर किसी को मलाला को अपनी बेटी समझना चाहिए।

मासूम मलाला ने कम उम्र में ही शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि आज हर पाकिस्तानी के दिलों में रच बस गई है। कभी किसी ने कल्‍पना नहीं की होगी कि इतनी कम उम्र में कोई बच्ची शिक्षा के प्रति इतनी संजीदा होगी। छोटे स्तर पर ही सही, पर वह अपने मुहिम में इस कदर जुटी है कि समाज और आसपास की कोई भी लड़की शिक्षा से अछूती न रहे। वह इसमें कामयाब भी हो रही थी, पर दहशतगर्दों को यह बात नागवार गुजरी। पर इसके उलट न सिर्फ पाकिस्तान और इस्ला‍मी समाज बल्कि दुनिया भर के सामने इस मासूल बाला ने एक दुर्लभ उदाहरण पेश किया।

मलाला के समर्थन में सोशल साइटों पर दुनिया भर में लाखों लोग समर्थन में उतर आए हैं। हालांकि पाकिस्तान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो रोज तालिबान और उसके जुल्मों के खिलाफ लड़ रहे हैं। लेकिन मलाला की इस ‘पाक’ मुहिम ने अब दुनिया को तालिबान के खिलाफ लड़ाई छेड़ने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

संभवत: इसी का असर है कि मलाला के साथ तालिबान के हमले में घायल हुई लड़कियां शाजिया और कायनात ने आगे भी पढ़ाई जारी रखने का संकल्प लिया है। इन हमलों से घबराए बिना वह दोनों डाक्ट़र बनने के फैसले पर अडिग है और आगे हर कठिनाइयों के बावजूद शिक्षा जारी रख एक अभूतपूर्व संदेश देने को तैयार है। इन्हीं संकल्पों का असर है कि आज विदेशों से भी उनके लिए मदद की पेशकश होने लगी है। वहीं, घायल लड़कियों की मदद के लिए पाक सरकार का आगे आना एक सकारात्मक कदम है। इससे न सिर्फ जुल्म की शिकार लड़कियां बल्कि अन्य भी अपनी जिंदगी की बेहतरी के लिए कदम उठाने से नहीं हिचकेंगी क्योंकि इन कदमों से उनमें साहस का संचार होगा। पाक के हुक्मरानों का इनके समर्थन में उतरना भी काफी प्रशंसनीय है।

वहीं, तहरीक-ए-तालिबान का यह कहना कि मलाला पर हमला इसलिए किया गया क्योंकि वह ‘पश्चिमी’ विचारों और धर्म निरपेक्ष सरकार का समर्थन कर रही थी। पर इन तालिबानियों को कौन समझाए कि शिक्षा की ज्योति जगाने से पश्चिम के किन्‍हीं विचारों का समर्थन नहीं होता। मौजूदा हालात में यदि मलाला पर फिर हमला करने का दुस्साहस किया जाता है तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे।

दूसरी तरफ, किशोरी मलाला की हत्या के प्रयास को ‘गैर इस्लामी’ करार देना और सुन्नी मौलवियों का फतवा जारी करना यह दर्शाता है कि पाक के समाज में परिवर्तन की बयार बहने लगी है और वे जुल्मों के खिलाफ अब आवाज बुलंद करने लगे हैं। संभवत: यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार है कि धर्म गुरुओं ने किसी बालिका के हक में फतवा जारी कर ‘निन्दा दिवस’ मनाया और मलाला के प्रति एकजुटता दिखाई।

हालांकि मलाला के कई गुनहगार हत्थेा तो चढ़े हैं, लेकिन इन्हें यदि कठोर दंड नहीं दिया गया तो मलाला जैसी और कई मासूमों को भी ये निशाना बनाने से बाज नहीं आएंगे। मलाला पर हमले की घटना ने लोगों को तालिबान के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया है, जोकि एक सकारात्‍मक पहल है। बीते समय में पाकिस्तान में यह देखा गया है कि तालिबान जब भी इस तरह के घृणित अपराधों को अंजाम देता है तो उनके खिलाफ कस्बों तक में भावनाएं भड़कती हैं।

गम और गुस्से के माहौल के बीच इस तरह की क्रूर मानसिकता के समर्थक लोगों के खिलाफ पूर्ण लड़ाई की सख्त जरूरत है। इसे पूरी तरह कुचलना ही एकमात्र निदान है। हम सभी मलाला के अद्वितीय साहस को सलाम करते हैं।

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