स्व. प्रकाशवीर शास्त्री
मैं प्रधानमंत्री जी से केवल दो बातें जानना चाहता हूं कि इस बात की चर्चा मैं नहीं करना चाहता कि जब शेख अब्दुल्ला को सत्ता सँभालने में केवल एक रात बीच में रह जाती है, अब तक ये सारी चर्चाएँ संसद को पृष्ठभूमि में रखकर, संसद से पृथक रहकर कैसे चलती रहीं और संसद को विश्वास में क्यों नहीं लिया गया। न मैं उस चीज की चर्चा करना चाहता हूँ कि जब शेख साहब चार्ज सँभालने जा रहे हैं तो आज जम्मू-कश्मीर में क्यों हड़ताल है।
मैं केवल यह जानना चाहता हूँ कि जो जम्मू-कश्मीर का संविधान है उसमें स्पष्ट रूप से यह लिखा हुआ है- जो आप शेख साहब को यह श्रेय देने जा रहे हैं कि उन्होंने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग माना है- उसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा किसी कानून में इतने प्रतिशत मतों के आधार पर परिवर्तन कर सकती है, लेकिन इस विधानसभा को कभी यह अधिकार नहीं होगा कि जम्मू-कश्मीर का जो भारत में विलय है, यह इस बारे में कोई निर्णय ले। यह जम्मू-कश्मीर के संविधान में है। हमारे संविधान की स्थिति यह है कि श्री गोपालस्वामी आयंगर ने संविधानसभा में यह बात कही थी कि वहाँ लड़ाई होकर चुकी है, इसलिए जम्मू-कश्मीर में जो स्थिति है उसको देखते हुए यह विशेष उपबंध रखा जा रहा है। जब भी स्थिति सामान्य होगी इसको हटा दिया जायेगा।
पंडित जवाहर लाल नेहरू, जो हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री थे स्वयं उन्होंने ये शब्द कहे, पंडित गोविंदवल्लभ पंत ये शब्द कहे और भूतपूर्व गृहमंत्री श्री गुलजारी लाल नंदा ने एक विधेयक पर ये शब्द कहे कि अनुच्छेद 370 काफी घिस चुका है और वह घिसते-घिसते और घिस जायेगा। ये उनके अपने शब्द थे। लेकिन जो मैं प्रधानमंत्री जी से जानना चाहता हूँ वह यह है कि मिर्जा अफजल बेग, जो शेख साहब के प्रतिनिधि थे, आपके प्रतिनिधि पार्थ सारथी से बात करते रहे, उन्होंने वक्तव्य दिया है कि अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान के अंदर सदा के लिये स्थायी होने जा रहा है, अब इसको हटाने के लिए को प्रश्न नहीं रहेगा। मैं आपसे जानना चाहता हूँ, इसमें वास्तविकता क्या है?
दूसरी बात यह है कि शेख साहब ने दक्षिण प्रांतों का भ्रमण करते हुए कई स्थानों पर वक्तव्य दिये हैं। उन्होंने एक स्थान पर वक्तव्य देते हुए यह कहा कि 1953 के बाद जितने कानून बने हैं, एक बार चुनाव हो जाने दीजिये, उनमें एक-एक को देखेंगे कि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा किनको स्वीकार करती है और किनको नहीं करती है। भारतीय संसद ने जो निर्णय लिये हैं उनको भी अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने चुनौती दी है। एक बात उन्होंने स्पष्ट कही है कि विदेश, रक्षा और संचार तीनों को छोड़कर बाकी विषयों के अंदर जम्मू-कश्मीर की जो स्वायत्तता है, या स्वतंत्रता है, इसका निर्णय जम्मू-कश्मीर की विधानसभा लेगी। इन वक्तव्यों के बाद प्रधानमंत्री से शेख अब्दुल्ला मिले हैं और दो बार उनकी मुलाकात हुई है, तो मैं यह जानना चाहता हूँ कि यह जो प्रधानमंत्री जी के साथ उनकी मुलाकात हुई तो क्या प्रधानमंत्री जी ने उन वक्तव्यों की पृष्ठभूमि में शेख अब्दुल्ला से किसी प्रकार का स्पष्टीकरण मांगने की कोशिश की या नहीं की? यही नहीं, शेख अब्दुल्ला के अभी से सत्ता सँभालने से पहले पूत के पाँव पालने में नजर आने लगे हैं। पहली बार रफी अहमद किदवई और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के कहने पर उनको गिरफ्तार करना पड़ा। इस बार देखें क्या होता है?
आप तो कहती हैं कि भारत के लिए यह सौभाग्य का समझौता है, मैं कहता हूँ कि भारत के इतिहास में यह काला दिन है जो इस प्रकार का समझौता हुआ है।
(राज्यसभा में 24 फरवरी 1975 को जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में प्रधानमंत्री के बयान पर चर्चा के दौरान प्रकाशवीर शास्त्री द्वारा व्यक्त विचारों का सम्पादित अंश)
http://vhv.org.in/story.aspx?aid=7342
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