सोमवार, 29 अगस्त 2011

तीसरी मंजिल

बुद्ध अपने प्रवचनों में उनके शिष्यों को बहुत सी कथाएं सुनाते थे. यह कथा भी उन्हीं में से एक है.

कभी किसी काल में किसी नगर में दो धनी व्यापारी रहते थे. वे दोनों ही अपने धन और वैभव का बड़ा प्रदर्शन करते थे. सुविधा के लिए हम उनके नाम ‘क’ और ‘ख’ रख लेते हैं.

एक दिन व्यापारी ‘क’ अपने मित्र ‘ख’ के घर उससे भेंट करने के लिए गया. ‘क’ ने देखा कि ‘ख’ का घर बहुत विशाल और तीन मंजिला था. 2,500 साल पहले तीन मंजिला घर होना बड़ी बात थी और उसे बनाने के लिए बहुत धन और कुशल वास्तुकार की आवश्यकता होती थी. ‘क’ ने यह भी देखा कि नगर में सभी निवासी ‘ख’ के घर को बड़े विस्मय से देखते थे और उसकी बहुत बड़ाई करते थे.

अपने घर वापसी पर ‘क’ बहुत उदास था कि ‘ख’ के घर ने सभी का ध्यान खींच लिया था. उसने उसी वास्तुकार को बुलवाया जिसने ‘ख’ का घर बनाया था. उसने वास्तुकार से ‘ख’ के घर जैसा ही तीन मंजिला घर बनाने को कहा. वास्तुकार ने इस काम के लिए हामी भर दी और काम शुरू हो गया.

कुछ दिनों बाद ‘क’ काम का मुआयना करने के लिए निर्माणस्थल पर गया. जब उसने नींव खोदे जाने के लिए मजदूरों को गहरा गड्ढा खोदते देखा तो वास्तुकार को बुलाया और पूछा कि इतना गहरा गड्ढा क्यों खोदा जा रहा है.

“मैं आपके बताये अनुसार तीन मंजिला घर बनाने के लिए काम कर रहा हूँ”, वास्तुकार ने कहा, “सबसे पहले मैं मजबूत नींव बनाऊँगा, फिर क्रमशः पहली मंजिल, दूसरी मंजिल और तीसरी मंजिल बनाऊंगा.”

“मुझे इस सबसे कोई मतलब नहीं है!”, ‘क’ ने कहा, “तुम सीधे ही तीसरी मंजिल बनाओ और उतनी ही ऊंची बनाओ जितनी ऊंची तुमने ‘ख’ के लिए बनाई थी. नींव की और बाकी मंजिलों की परवाह मत करो!”

“ऐसा तो नहीं हो सकता”, वास्तुकार ने कहा.

“ठीक है, यदि तुम यह नहीं करोगे तो मैं किसी और से करवा लूँगा”, ‘क’ ने नाराज़ होकर कहा.

उस नगर में कोई भी वास्तुकार नींव के बिना वह घर नहीं बना सकता था, फलतः वह घर कभी न बन पाया.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thanks for visit my blog