बुधवार, 31 अगस्त 2011

स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास का महत्वपूर्ण दिवस

23 जुलाई का दिवस भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास का महत्वपूर्ण दिवस है क्योंकि इस दिन राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों का जन्मदिवस है। इनमें से पहले है बालगंगाधर तिलक जो आज से ठीक 155 वर्ष पूर्व सन् 1856 में पैदा हुये थे और दूसरे है पं चंद्रशेखर तिवारी जिन्हें हम सब उनके प्रचलित नाम चन्द्रशेखर आजाद के नाम से जानते हैं।

इनका जन्म बाल गंगाधर तिलक से 50 वर्ष बाद सन् 1906 में मध्य प्रदेश के भाबरा (झाबुआ) नामक स्थान पर पंडित सीताराम तिवारी और श्रीमती जगरानी देवी के घर हुआ। जनपद उन्नाव का बदरका नामक ग्राम आजाद जी की कर्मस्थली रहा है।

शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से सन् 1921 में मात्र 15 वर्ष की आयु में पंडित चंद्रशेखर का प्रवास स्थल काशी बना जहाँ रहकर वे महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन के माध्यम से राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से जुडे । इस आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण जब किशोर चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी हुयी तो उसने पुलिस को अपना नाम ‘‘आजाद’’ बताया। पुलिस को बताया उनका यह नाम उनकी पहचान बन गया।

असहयोग आन्दोलन के दौरान जब फरवरी 1922 में चौरी चौरा की घटना के पश्चात् बिना किसे से पूछे गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल,शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ (एच० आर० ए०) का गठन किया। अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध सीधी लडाई लडने के पक्षधर चन्द्रशेखर आजाद क्रन्तिकारी दल के मुखिया थे। जिन्होंने अग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाकर रख दिया था।

26 फरवरी 1931 को जब आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने कुछ क्रांतिकारी सहयोगियों के साथ आगे के कार्यक्रमों की योजना बना रहे थे, तब पुलिस ने पार्क को चारों ओर से घेर लिया। इस विषम परिस्थिति में भी अपने साथियों के लिये निकल जाने का सुरक्षित मार्ग बनाते हुये, पुलिस का मुकाबला करते रहे। अन्त में जब उनके पास रिवाल्वर में एक गोली शेष रह गयी तब उसे अपनी कनपटी में लगाकर अपनी इहलीला समाप्त करते हुये भारत माता की गोद में चिरनिद्रा में सो गये।

पुलिस ने इस मुठभेड को उपद्रवियों के हुयी मुठभेड़ बताकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। बाद में पता लगने पर उनकी अस्थि भस्म के साथ संपूर्ण नगर में यात्रा निकाली गयी जिसमें एतिहासिक भीड एकत्रित हुयी। जिसमें पं0 जवाहरलाल नेहरू, संपूणानन्द, कमला नेहरू, पुरूषोत्मदास टंडन आदि अनेक नेताओं ने भाग लेकर उन्हे भावभीनी श्रंद्धाँजलि अर्पित की।

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