बुधवार, 31 अगस्त 2011

युधिष्ठिर का न्याय

विजय कुमार

एक बार राजा युद्धिष्ठिर के पास एक किसान का मामला आया। उसके खेत में चोरी करते हुए चार लोग पकड़े गये थे। उनमें से एक अध्यापक था, दूसरा पुलिसकर्मी, तीसरा व्यापारी और चौथा मजदूर। किसान ने युद्धिष्ठिर से उन्हें समुचित दंड देने को कहा।

युद्धिष्ठिर ने मजदूर को एक महीने, व्यापारी को एक साल, सैनिक को पांच साल और अध्यापक को दस साल सश्रम कारावास का दंड दिया। जब लोगों ने एक ही अपराध के लिए चारों को अलग-अलग दंड का रहस्य पूछा, तो युद्धिष्ठिर ने बहुत न्यायपूर्ण उत्तर दिया।

उन्होंने कहा कि मजदूर स्वयं निर्धन है, हो सकता है उसके घर में खाने को अन्न न हो। ऐसे में यदि उसने चोरी कर ली, तो इसे बहुत गंभीर अपराध नहीं माना जा सकता। इसलिए उसे एक महीने का कारावास पर्याप्त है।

व्यापारी का अपराध कुछ अधिक है। उसे किसान की फसल को उचित मूल्य पर खरीदने और बेचने का अधिकार तो है; पर चोरी का नहीं। इसलिए उसे एक साल का दंड दिया गया है।

पुलिसकर्मी राज्य की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था का आधार है। यदि वह खुद ही चोरी करेगा, तो फिर चोरों को पकड़ेगा कौन; यदि जनता का देश की सुरक्षा व्यवस्था से विश्वास उठ गया, तो इस अराजकता से निबटना राज्य के लिए भी संभव नहीं है। इसलिए उसे पांच साल की सजा दी गयी है।

जहां तक अध्यापक की बात है, उसका कृत्य केवल अपराध ही नहीं, पाप भी है। उसका काम देश की नयी पीढ़ी को सुसंस्कारित करना है। यदि उसका आचरण गलत होगा, तो फिर वह नयी पीढ़ी को क्या सिखाएगा? इसलिए उसका अपराध सबसे बड़ा है और उसे दस साल की सजा दी गयी है।

इस कसौटी पर उन पांच न्यायधीशों और तीन वकीलों की सजा के बारे में विचार करें, जो प्रोन्नति और वेतन वृद्धि के लिए काकातिया विश्वविद्यालय वारंगल में दी जा रही एल.एल.एम की परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े गये हैं।

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